Varanasi: गंगा के सुरम्य तट पर नई पीढ़ी ने सीखी सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि

Update: 2024-06-23 16:55 GMT
Varanasi वाराणसी: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी ,काशी के गंगा नदी के सुप्रसिद्ध घाट अस्सी में आये दिन देश की संस्कृति,ज्ञान विज्ञान से संबंधित भव्य आयोजन होते रहते हैं । उसी श्रृंखला में काशी की ब्राह्मी लिपि विशेषज्ञा विदुषी डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन एवं दिल्ली की डॉ. इन्दु जैन राष्ट्र गौरव (दिल्ली) ने नई पीढ़ी को सभी लिपियों की जननी, विश्व की सबसे प्राचीन ब्राह्मी लिपि को सिखाने के उद्देश्य से मां गंगा के अस्सी घाट पर सांयकाल सर्वप्राचीन ब्राह्मी लिपि की कार्यशाला का आयोजन किया। दूसरे दिन की कार्यशाला भी सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई। ज्ञातव्य है कि जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ने राजा ऋषभदेव के रूप में प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम अयोध्या पर राज्य किया था ।
उन्होंने ही सर्वप्रथम सभी प्रजा जन को असि-मसि-कृषि-विद्या-वाणिज्य-शिल्प आदि छह कलाएं सिखाकर जीवन जीने की एवं निर्वहन करने की कला सिखाई थी और राजा ऋषभदेव ने सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा का उद्घोष करते हुए अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या एवं पुत्री सुंदरी को अंक (गणित) विद्या सिखाई थी । अंक विद्या का विकास आज गणित के रूप में है और अक्षर विद्या ब्राह्मी लिपि के नाम से प्रसिद्ध हुई और इसी लिपि से देवनागरी आदि सभी लिपियों का जन्म और विकास हुआ है । इस तरह उन्होंने छात्रों-छात्राओं को लिपि के इतिहास एवं विकास की परम्परा को समझाया । उन्होंने बताया कि भारत का नाम भी राजा ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर पड़ा था ।
BHU, काशी विद्यापीठ, हरिश्चन्द्र महाविद्यालय Harishchandra College आदि के विद्यार्थियों एवं पूना , मुम्बई, बलिया, राजस्थान आदि बाहर से आए पर्यटकों ने बेहद उत्सुकता के साथ ब्राह्मी लिपि सीखी और सभी ब्राह्मी लिपि में अपना नाम लिखकर प्रसन्न हुए। नई पीढ़ी ने ब्राह्मी लिपि को सीखकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस किया और कहा कि वो अब प्राचीन शिलालेख को पढ़ सकते हैं। युवाओं ने ब्राह्मी लिपि को रोज अभ्यास करने एवं इसका प्रचार-प्रसार करने का संकल्प लिया। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, जैनदर्शन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. फूलचंद जैन 'प्रेमी' की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। ज्ञातव्य है कि जैन दंपति भारतीय संस्कृति-भाषा एवं लिपि का संरक्षण-संवर्धन के लिए ही समर्पित हैं । उन्होंने बताया कि गंगा तट पर समय-समय पर ब्राह्मी लिपि की ऐसी ही कार्यशाला का आयोजन होता रहेगा एवं नई पीढ़ी को सिखाने का यह क्रम जारी रहेगा। इस कार्यशाला के लिए निशांत,विनय,सत्यम सपना आदि सभी विद्यार्थियों ने अपनी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं भी दीं ।
Tags:    

Similar News

-->