कानपूर: आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने एक विशेष कोटिंग विकसित की है, जिसकी मदद से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रदूषण कम होगा. इस विशेष कोटिंग में 90 फीसदी से अधिक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता है. इसका इस्तेमाल खिड़कियों में लगे शीशे पर भी किया जा सकता है. इस तकनीक का सबसे अधिक फायदा चिकित्सा व रक्षाक्षेत्र के अलावा वाणिज्यिक भवनों को होगा. इस तकनीक का पेटेंट भी मिला है.
आईआईटी कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग की वरिष्ठ शोधार्थी डॉ. काजल चौधरी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रो. जे रामकुमार, भौतिकी विभाग के प्रो. एस अनंतरामकृष्ण, सामग्री इंजीनियरिंग आईआईएससी बेंगलुरु के प्रो. प्रवीण सी राममूर्ति व कानपुर के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रो. कुमार वैभव श्रीवास्तव की देखरेख में यह शोध किया है. वैज्ञानिकों ने बताया कि अभी तक इंडियम टिन ऑक्साइड लेपित पॉलीइथाइलीन शीट्स का इस्तेमाल हो रहा है, जिसका परिणाम बेहतर नहीं है. आईआईटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने कहा कि वर्तमान तकनीक का युग है. जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें तेजी से वातावरण को प्रदूषित कर रही हैं. प्रो. कुमार वैभव ने बताया कि विभिन्न देशों में किसी भी वस्तु से परावर्तित तरंगों को महसूस करके उसका पता लगाने के लिए माइक्रोवेव फ़्रीक्वेंसी बैंड पर रडार डिटेक्शन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है.
वाईफाई, सेल फोन टावर, रडार, डायग्नोस्टिक चिकित्सा उपकरण और अन्य इलेक्ट्रॉनिक व संचार प्रणालियों से पर्यावरण में निरंतर विद्युत चुम्बकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें) तेजी से निकल रही हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं.