सेवायतों ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सुझाव पर लगाई आपत्ति

Update: 2023-01-20 12:39 GMT

मथुरा न्यूज़: बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर मामला गरमाया हुआ है. एक ओर जहां व्यापारी वर्ग और वहां रहने वाले इसका विरोध कर रहे हैं, वहीं सेवायत यह नहीं चाहते कि बांके बिहारी मंदिर का पैसा सरकार कॉरिडोर के निर्माण पर खर्च करे. मंदिर सुप्रीम कोर्ट में सेवायतों द्वारा दाखिल की गई याचिका में बांके बिहारी मंदिर के खजाने की रक्षा का मामला भी रखा गया है. याचिका दायर करने वाले सेवायतों ने खुद को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आराध्य ठाकुर जी का सेवायत और संरक्षक बताते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट के उस सुझाव पर आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि मंदिर के धनकोष का इस्तेमाल क्षेत्र के विकास के लिए किया जाए. सेवायतों ने कॉरिडोर निर्माण में बांके बिहारी मंदिर का पैसा इस्तेमाल न करने और इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहे मामले में खुद (सेवायतों) को भी पार्टी बनाने की बात रखी है.

सेवायत रजत गोस्वामी ने बताया कि बांके बिहारी मंदिर का पैसा ठाकुर जी की सेवा के काम आना चाहिये. कॉरिडोर में इसका प्रयोग नहीं होना चाहिये. उन्होंने बताया कि सरकार इस पैसे को कॉरिडोर में इस्तेमाल करना चाहती है. सेवायत चाहते हैं कि बांकेबिहारी का पैसा ठाकुर जी की सेवा में ही खर्च हो, कॉरिडोर में नहीं. सेवायत चाहते हैं कि इस मामले में हाईकोर्ट उन्हें भी पार्टी के रूप में शामिल करे. इसी मसले को लेकर सेवायत हाईकोर्ट गये हैं.

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की पीठ के समक्ष वकील स्वरूपमा चतुर्वेदी ने इस मामले की मेंशिनिंग कर याचिका पर शीघ्र सुनवाई की मांग की. कोर्ट इस पर अगले सुनवाई करने पर सहमत हो गया. हुई मेंशनिंग में बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों ने इलाहबाद हाईकोर्ट के उस सुझाव पर गहरी आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि मंदिर के धनकोष का इस्तेमाल क्षेत्र के विकास के लिए किया जाए. याचिका में याचिकाकर्ताओं ने खुद को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आराध्य ठाकुर जी का सेवायत और संरक्षक बताया है, क्योंकि यहां ठाकुर बांके बिहारी की बालक के रूप में है. सेवायतों ने उच्च न्यायालय के 20 दिसंबर 2022 के आदेश में वर्णित सुझाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उस आदेश में हाईकोर्ट ने बांके बिहारी के खातों में जमा धनराशि के उपयोग के लिए विस्तृत विकास योजना तैयार करने का सुझाव दिया था. पिछले साल दिसंबर में जारी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में सेवायतों ने कहा है कि हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका पर ना तो उन्हें पक्षकार बनाने की अनुमति दी और न ही उनको सुना गया. हितधारक होने की वजह से उनको सुनना लाजिमी था, लेकिन कोर्ट ने उनको अपना पक्ष रखने जा अवसर दिए बिना ही आदेश जारी कर दिया. याचिकाकर्ता सेवायतों को आशंका है कि अदालती कार्रवाई के जरिए राज्य सरकार विकास और रखरखाव के नाम पर इस निजी मंदिर के प्रबंधन के मामलों को हथियाना चाहती है. याचिका में तर्क दिया गया है कि यदि मंदिर के धन का उपयोग करने के लिए हाईकोर्ट की पेशकश पर अमल किया जाता है. सरकार की ये कार्रवाई सेवायतों के अपनी उपासना और आराधना पद्धति के पालन और अपनी आस्था के मुताबिक अपने उपास्य देव की सेवा, पूजा के बुनियादी अधिकार का पूरी तरह हनन होगा.

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