Pithoragarh पिथौरागढ़ । जिले के जौलजीबी में वनराजि जनजाति समुदाय की एक महिला के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म और दो दिन बाद उसकी मौत के बाद से हड़कंप मचा हुआ है। अब इस मामले में पुलिस ने जांच शुरू कर दी है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि मामले के संज्ञान में आने के बाद छानबीन की जा रही है। उन्हें भी स्थानीय मीडिया के जरिए घटना की जानकारी मिली है।
पुलिस क्षेत्राधिकारी परवेज अली ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला कि महिला जौलजीबी बाजार के पास स्थित किमखोला गांव की रहने वाली है। 25 नवंबर को घर में ही उसकी मौत हो गई थी और उसी दिन गांव वालों ने अंतिम संस्कार भी कर दिया। वहीं मौत के 15 दिन बाद सामूहिक दुष्कर्म के आरोप लगाए गए हैं। सीओ परवेज अली ने बताया कि अभी तक पुलिस को कोई तहरीर नहीं मिली है, गांव में भेजी गई पुलिस टीम के सामने भी अब तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं आया जिसने उस महिला के साथ अपराध होते या उसे सड़क किनारे बेसुध पड़ा देखा हो। उन्होंने कहा कि मेडिकल जांच के लिए महिला का शव मौजूद नहीं है, बावजूद इसके घटना को गैंगरेप बताया जा रहा है। अगर कोई प्रमाण नहीं मिला तो ऐसा करने वालों के खिलाफ हम मामला दर्ज करेंगे।
उधर कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक किमखोला गांव की रहने वाली 32 साल की महिला से 23 नवंबर की शाम को जौलजीबी बाजार से घर लौटते वक्त कथित रूप से कुछ कार सवार लोगों ने गैंगरेप किया। फिर बेसुध हालत में सड़क किनारे छोड़कर फरार हो गए। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि उसके गांव वाले उसे घर लाए जहां दो दिन तक बेहोश रहने के बाद उसकी मौत हो गई। उसी दिन काली नदी किनारे गांव वालों ने महिला का अंतिम संस्कार कर दिया।
पिछले 30 सालों से वनराजि समुदाय के बीच काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'अर्पण' की निदेशक रेणु ठाकुर ने कहा कि इस जनजाति के लोग बहुत शर्मीले होते हैं और इस कारण पुलिस के पास नहीं गए होंगे। उन्होंने कहा कि वनराजि एक शर्मीली जनजाति है। ये लोग गैर वनराजियों के साथ भी कोई मेलजोल नहीं रखते। अगर किसी ने अपराध होते देखा भी होगा तो वह पुलिस के पास जाने की बात से ही घबरा गया होगा।
वनराजि उत्तराखंड के जंगलों में रहने वाली जनजाति हैं जो कुछ समय पहले तक गुफाओं में रहती थी। अब धीरे-धीरे इनका रहन सहन अन्य लोगों की तरह हो गया है लेकिन अभी भी यह सबसे दूर ही रहते हैं। इनकी जनसंख्या भी सिमटती जा रही है और धारचूला व मुनस्यारी ब्लॉक के नौ गांवों में ही इस जनजाति के लोग बचे हैं।