मेरठ न्यूज़: ईमानदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीरो टोलरेंस नीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन सरकारी सिस्टम ने भ्रष्टाचार की तमाम सीमाएं लांघ दी है। सरकारी सिस्टम को भ्रष्टाचार का ऐसा घून लगा है कि पूरे सिस्टम को चटकर रहा हैं। भ्रष्टाचार के मामले में वैसे तो नगर निगम अक्सर सुर्खियों में बना रहता है, लेकिन वर्तमान में वार्ड 49 वार्ड में घंटाघर से किशनपुरी तक रिटेर्निंग वॉल का निर्माण 600 मीटर हुआ है।
यह रिटेनिंग वॉल 15 फीट गहरी नाले के दोनों तरफ आरसीसी की बनाई जानी थी, ऐसा ठेकेदार और नगर निगम के बीच एग्रीमेंट था। इसमें आरसीसी का बेड और तीन पुलिया का निर्माण भी शामिल है। इसका टेंडर ढाई करोड़ का था, लेकिन 15 प्रतिशत बिलों पर टेंडर छोड़ा गया। भ्रष्टाचार का खेल नगर निगम निर्माण अनुभाग का पहला नहीं, बल्कि इससे पहले भी भ्रष्टाचार का खेल सामने आ चुका हैं, बल्कि इससे पहले भी स्वीकृति से ज्यादा सड़क के नाम निर्माण का भुगतान की फाइल तैयार कर ली गई थी, जिसका भेद खुलने पर भुगतान रुक गया था।
अब इसमें बड़ा फर्जीवाड़ा निगम की इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने ठेकेदार से मिलकर रिटेर्निंग वॉल कुछ जगह पर आरसीसी की बनाई, बाकी जगह पर र्इंट की दीवार बना दी गई। 15 फीट की गहराई नाले के दोनों तरफ बनाई जानी थी और साथ ही आरसीसी की दीवार बननी चाहिए थी, जो आठ फीट गहरी ही बनाई गई। क्योंकि पहले से नाले पर दीवार बनी हुई थी। उसी दीवार से ठेकेदार ने नाले की चिनाई करा दी, जबकि 15 फीट नीचे से आरसीसी की दीवार बनकर आनी थी। एग्रीमेंट में स्पष्ट था कि पुरानी दीवार को हटाया जाएगा और नई दीवार आरसीसी के रूप में बनेगी।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि नाले के निचले स्तर पर 10 फीट चौड़ा आरसीसी का बेड बनाया जाना था, जो बनाया ही नहीं गया। इसके नाम पर भुगतान तो नगर निगम के खजाने से ले लिया गया, लेकिन बेड बना ही नहीं। नगर आयुक्त अरविंद चौरसिया के कार्यकाल में 14वें वित्त से इस नाले के निर्माण के लिए टेंडर हुआ था। टेंडर ढाई करोड़ का हुआ, जबकि बिलों 15 प्रतिशत जाने के बाद टेंडर 2.12 करोड़ का रह गया।
इस दौरान अरविंद चौरसिया का तबादला हुआ, फिर मनोज चौहान का कार्यकाल चला तथा इसी बीच मनीष बंसल भी आए। तीनों के कार्यकाल में नगर निगम के निर्माण विभाग के अधिकारियों और ठेकेदार की मिलीभगत के चलते रनिंग पेमेंट लिया गया। इस तरह से जो नाला छह माह में बनकर तैयार होना था,
उसको ढाई साल निर्माण में लगा दिए गए। किश्तों में पैसा नगर निगम से निकाला गया, ताकि किसी को भी भ्रष्टाचार का शक नहीं होगा। इस नाले के निर्माण की शुरुआत 21 मार्च 2020 में हुई थी। हाल ही में एक लाख की फाइनल भुगतान की फाइल नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा के पास भी भेजी गई, जिसको नगर आयुक्त ने फिलहाल पेंडिंग डाल रखा है।
यही नहीं, भ्रष्टाचार पर किसी को शक नहीं हो इसी वजह से 38 लाख रुपये के कार्य की इस टेंडर में बचत दिखाई गई, ताकि घोटाला उजागर नहीं हो सके। करीब दो करोड़ का भुगतान नगर निगम ने किया है और देखा जाए तो जिस तरह से ईंट की दीवार बनाई गई है। उससे स्पष्ट होता है कि 25 से 30 लाख रुपये ही नगर निगम के खर्च हुए हैं,
बाकी को नगर निगम के अधिकारी डकार गए। घंटाघर से किशनपुरी 600 मीटर का नाले का निर्माण रिटेर्निंग वॉल के रूप में नगर निगम ने दर्शाया है। घंटाघर से जैसे ही किशनपुरी की तरफ बढ़ते हैं, वहां पर एक तरफ दीवार बनी हुई हैं, दूसरी साइड में मकानों की दीवार हैं। घंटाघर से गुरु ट्रेडर्स तक एक तरफ दीवार का निर्माण हुआ।
एक तरफ 400 मीटर ही रिटर्निंग वॉल बनी। पैसा 600 मीटर का जारी कर दिया, वो भी आरसीसी की दीवार का और बना दी र्इंटों की दीवार। यही नहीं, इससे भी बड़ा खेल कर दिया पुरानी दीवार पर ही प्लास्टर कर दिया, ताकि ये नई निर्माण में पैमाइश हो सके और पैमाइश भी कर दी गई।
ये हैं जिम्मेदार: भ्रष्टाचार की इस दीवार के लिए नगर निगम निर्माण अनुभाग के एक्सईएन विकास कुरील, अमित शर्मा, नीना सिंह, एई नानक चंद, राजवीर सिंह, जेई मदन कुमार आदि जिम्मेदार हैं। भुगतान की सीट पर अलग-अलग समय में इन सभी अधिकारियों के हस्ताक्षर हैं। क्या इन अफसरों के खिलाफ एसटीएफ या फिर ईओडब्ल्यू से नगरायुक्त अमित पाल शर्मा जांच कराने के लिए सिफारिश करेंगे तथा एजेंसी से जांच के लिए लिखेंगे।
कहां बना भ्रष्टाचार के नाले का बेड?
घंटाघर से लेकर किशनपुरी तक 600 मीटर नाले का बेड भी बनाया जाना था। पानी रोकने के बाद बेड का निर्माण संभव हो सकता था। इसमें पानी रोका ही नहीं गया, तो फिर कैसे बेड बन गया? बेड तो बना, लेकिन कागजों में। धरातल पर बेड नहीं बना। ये बेड आरसीसी लिंटर ही होता हैं, जो ग्राउंड स्तर पर पन्द्रह फुट नीचे बनाया जाना था। ये तभी संभव हो सकता हैं, जब नाले के पानी को पपिंग सेट लगाकर दूसरे नाले में डाला जाता तथा इस नाले को पूरी तरह से क्लीन किया जाता।
इसके बाद ही बेड बनाया जा सकता था। यहां तो नाले की सफाई नहीं हुई। पानी भी पपिंग सेट से नहीं निकाला गया। इसमें सुनियोजित ढंग से भ्रष्टाचार किया गया। जेई से लेकर एक्सईएन तक लिप्त रहे, तभी तो रनिंग पेमेंट किया जाता रहा। ऐसा करने से किसी को शक भी नहीं हुआ और 14 वें वित्त की धनराशि को नगर निगम के अधिकारियों ने आसानी से ठिकाने लगा दिया।
\इसकी जांच अधिकारी टीम भेजकर नाला निर्माण की दीवार जहां बनाई गयी, वहां की जनता से बातचीत करके पता किया जा सकता हैं कि बेड बना या फिर नहीं। आखिर सरकारी धन का कैसे बंदरबाट हुआ? कौन-कौन इसमें संलप्ति हैं? क्या इन सभी अफसरों पर भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत एफआइआर दर्ज कराई जाएगी?
कागजों में बन गई पुलिया: नगर निगम का खेल भी निराला हैं। जहां पर शहर का प्रत्येक व्यक्ति सफर करता हैं, वहां भ्रष्टाचार हो सकता हैं, ये किसी ने विचार भी नहीं किया होगा, लेकिन यहां पर भी नगर निगम ने बड़ा भ्रष्टाचार कर दिया। भ्रष्टाचार भी ऐसा कि आप भी सुनकर दांतों तले उंगली दबा जाएंगे। घंटाघर से लेकर किशनपुरी के बीच 600 मीटर नाले के दोनों तरफ दीवार बनाई गयी।
दीवार के साथ नाले के बीच में तीन पुलिया भी आती हैं, ये पुलिया का भी निर्माण सरकारी दस्तावेज में दर्शाया गया, लेकिन धरातल पर एक भी पुलिया का निर्माण नहीं हुआ। पुलिया जर्जर अवस्था में हैं। पुलिया के सरिये भी अब बाहर दिखाई देने लगे हैं। सरकारी सिस्टम ही ऐसा कर सकता है कि निर्माण हुआ नहीं, कागजों में पुलिया बनकर तैयार हो गई। आखिर इस पूरे भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदारों पर कब होगी कार्रवाई?
यह बड़ा सवाल हैं। भ्रष्टाचार रोकने के लिए क्या कमिश्नर सेल्वा कुमारी के स्तर से कोई कदम उठाया जाएगा? बोर्ड बैठक में पार्षद ने इस मुद्दे का उठाया, फिर भी प्रकरण को गंभीरता से नगरायुक्त ने नहीं लिया। इससे स्पष्ट है कि इस पूरे घालमेल को अधिकारी स्तर से भी मौन स्वीकृति दी जा रही है।
इस कंपनी के पास था टेंडर: भ्रष्टाचार की कहानी लिखने वाली कंपनी विकास कंट्रेक्शन थी। इसके मालिक अतुल दीक्षित हैं। इनकी चार कंपनी नगर निगम में निर्माण के कार्य कर रही हैं। भ्रष्टाचार की कहानी लिखने वाली इसी कंपनी से नगर निगम के अधिकारियों की सेटिंग का खेल चलता हैं, तभी तो भ्रष्टाचार व्यापक स्तर पर किया गया। भ्रष्टाचार की दीवार आरसीसी की बनानी थी, जो र्इंटों की बना दी गई। नाले का बेड बनना था, वो भी नहीं बनाया। 15 फीट दीवार बनानी थी, बनाई गयी आठ फीट। कहीं पर आरसीसी की और कहीं पर र्इंटों की दीवार बना दी।
ये रहे भ्रष्टाचार के बिंदू:
नाले की दीवार का निर्माण छह माह में पूरा होना था, लेकिन लगा दिये ढाई वर्ष।
21 मार्च 20220 में इस नाले की दीवार के निर्माण का कार्य आरंभ हुआ था, ढाई वर्ष में काम पूरा हुआ।
किश्तों में नाला निर्माण का भुगतान हुआ, ढाई वर्ष तक भुगतान चलता रहा।
सीमेंटिड सड़क निर्माण टेंडर नहीं हुआ, फिर भी सड़क का निर्माण कर दिया गया।
15 फीट गहराई से दीवार आरसीसी की बनाई जानी थी, जो आठ फीट की बनाई गयी।
पार्षद ने बोर्ड में उठाया था मामला: पार्षद नागदेव ने नाले में भ्रष्टाचार का मामला नगर निगम बोर्ड की बैठक में उठाया था, फिर भी अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया तथा भ्रष्टाचार के इस मामले को फाइलो में दबा दिया गया। पार्षद नागदेव ने तब कहा था कि ठेकेदार ने अफसरों के साथ मिलकर नाला निर्माण में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ हैं, फिर भी अधिकारी नहीं समझ पाये कि इसमें कितना बड़ा खेल हुआ हैं।
नाला निर्माण में हुआ भ्रष्टाचार जिम्मेदारों पर की जाए कार्रवाई: घंटाघर से लेकर किशनपुरी तक कराये गए नाला निर्माण में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ अब जनता की आवाज भी उठने लगी हैं। जनता का कहना है कि जब इसका निर्माण आरंभ हुआ, तभी भ्रष्टाचार की शिकायत की गई थी, लेकिन इस पूरे भ्रष्टाचार को अधिकारियों के स्तर से दबा दिया गया।
पुरानी दीवार पर ही नई दीवार खड़ी कर दी गर्इं। इस पर भी आपत्ति व्यक्त की गई थी। व्यापारियों ने नये सिरे से नाले की दीवारों और नाले का ग्राउंड स्तर पर लिंटर का निर्माण करने की मांग की थी, लेकिन व्यापारियों की एक नहीं सुनी। टेंडर अनुबंध भी ठेकेदार और निगम अफसरों ने नहीं दिखाया।
शिव चौक स्थित व्यापारी सचिन का कहना है कि नगर निगम के अधिकारियों ने नाले पर जो दीवार बनी, वो र्इंटों से बनाई गयी। व्यापारी सचिन ने मौके पर र्इंटों की दीवार दिखाई भी। यही नहीं, सचिन ने ये भी कहा कि पुलिया का निर्माण अनुबंध में दर्शाया गया, लेकिन मौके पर पुलिया जर्जर अवस्था में हैं, जो पुरानी बनी हुई हैं। पुलिया के सरिया भी दिखाई दे रहे हैं। इसमें भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग जनता ने की हैं।
बादशाह लड़का कॉलोनी की जहां से शुरुआत होती हैं, वहां पर पुलिया से एंट्री होती हैं। निगम के सरकारी दस्तावेजों में इस पुलिया का नये सिरे से निर्माण दर्शाया गया हैं, लेकिन यहां इब्राहिम नामक व्यापारी का कहना है कि पुलिया का निर्माण दीवार के साथ नहीं हुआ, ये पुलिया पहले से बनी हुई हैं। पुलिया क्षतिग्रस्त भी हो चुकी हैं, जिसका पुन: निर्माण होना चाहिए, लेकिन कागजों में पुलिया का निर्माण दर्शा देने से व्यापारी वर्ग नाराज हो गया तथा इस पूरे प्रकरण की जांच उच्चस्तरीय करने की मांग कर रहे हैं।
व्यापारी माजिद का कहना है कि दीवार भी एक तरफ ही बनी हैं तथा पुलिया का निर्माण तो हुआ ही नहीं, इसमें भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भ्रष्टाचार पर पड़ा पर्दा उठ सके। ये गंभीर अपराध हैं, इसका नगरायुक्त और कमिश्नर को संज्ञान लेना चाहिए। इसमें किसी तरह की लापरवाही नहीं करनी चाहिए। भ्रष्ट अफसरों से सरकारी पैसे की वापस वसूली होनी चाहिए, तभी निगम में भ्रष्टाचार रुक सकता हैं।