इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों द्वारा गुंडा एक्ट के तहत मनमाने तरीके से कार्रवाई करने और अवैधानिक नोटिस जारी करने पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने कहा कि राज्य की शक्तियों का प्रयोग कर रहे अधिकारी गुंडा एक्ट के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं. जबकि यह अदालत सरकार को पहले भी चेतावनी दे चुकी है और गुंडा एक्ट के पालन को लेकर गाइडलाइन बनाने का निर्देश दिया जा चुका है.
हाथरस के मुकेश कुमार की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह प्रथम की खंडपीठ ने याची के विरुद्ध एक ही मुकदमे के आधार पर दो बार गुंडा एक्ट की कार्रवाई करने के आदेश को रद्द कर दिया है तथा राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह याची को एक लाख रुपये हर्जाने का भुगतान करें.
याचिका में कहा गया है कि अपर जिला अधिकारी हाथरस ने याची को 14 जनवरी 22 को गुंडा एक्ट के तहत नोटिस जारी किया और उसे जिला बदर कर दिया गया. इसके खिलाफ उसने कमिश्नर के यहां अपील दाखिल की. कमिश्नर ने जिला बदर के आदेश पर रोक लगा दी. इसके बाद याची को फिर से को गुंडा एक्ट के तहत नोटिस जारी कर जिला बदर कर दिया गया. याची का कहना था कि एक बार जब उसके खिलाफ गुंडा एक्ट में आदेश जारी कर दिया गया तो फिर दोबारा उसी मामले में उसे वही दंड नहीं दिया जा सकता. याची को एक अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता.
कोर्ट का कहना था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शंकर जी शुक्ला और लालनी पांडे के केस में कहा है कि किसी व्यक्ति को एक या दो केस के आधार पर गुंडा घोषित नहीं किया जा सकता. जब तक कि वह बार-बार अपराध करने का आदि साबित ना हो जाए. कोर्ट ने कहा राज्य के अधिकारी गुंडा एक्ट के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं . जबकि यह कोर्ट पहले भी सरकार को चेतावनी दे चुकी है और इस संबंध में गाइडलाइन बनाकर सभी जिला अधिकारियों को भेजने का निर्देश दिया जा चुका है. मगर राज्य सरकार ने कोई गाइडलाइन नहीं जारी की . जिलाधिकारी और उनके मातहत अधिकारी लगातार अवैध नोटिस जारी कर रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि एडीएम हाथरस ने 30 जून 22 को अवैधानिक नोटिस जारी किया जो कि पहले से छपे छपाए प्रोफार्मा पर था. और ऐसा उन्होंने सहपऊ थाना अध्यक्ष की रिपोर्ट पर किया.