सेवानिवृत्ति का विकल्प न भरना ग्रेच्युटी न देने का आधार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सहायक अध्यापक की 60 साल से पहले मृत्यु होने पर इस आधार पर भी ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता है कि उसने 60 साल में सेवानिवृत्त होने का विकल्प नहीं दिया था।

Update: 2022-06-30 01:18 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सहायक अध्यापक की 60 साल से पहले मृत्यु होने पर इस आधार पर भी ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता है कि उसने 60 साल में सेवानिवृत्त होने का विकल्प नहीं दिया था। कोर्ट ने मामले में सभी याचियों को 6 सप्ताह के भीतर आठ फीसदी की दर से ग्रेच्युटी भुगतान का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने शिखा शर्मा, मंजू कुमारी सहित 28 याचिकाओं की एकसाथ सुनवाई करते हुए दिया।

याची की ओर से तर्क दिया गया कि उनके पति की मृत्यु सेवानिवृत्ति होने से पहले ही हो गई है। उन्होंने सेवा के दौरान विकल्प का चुनाव नहीं किया था। इस आधार पर डीआईओएस ने ग्रेच्युटी के भुगतान करने से मना कर दिया। याचियों ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने पाया कि ऐसी बहुत सी याचिकाएं हैं, जिसमें सहायक अध्यापकों ने विकल्प का चुनाव नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा कि विकल्प का चुनाव न करना ग्रेच्युटी के भुगतान का आधार नहीं हो सकता। याचियों को उनकी ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने डीआईओएस के आदेश को भी रद्द कर दिया और कहा कि शिक्षकों की ग्रेच्युटी 6 सप्ताह के भीतर दे दी जाए। याची मंजू कुमारी की ओर से अधिवक्ता स्वयं जीत शर्मा ने पक्ष रखा था।
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