Lucknow। जन संस्कृति मंच की ओर से राष्ट्रीय पुस्तक मेला लखनऊ के मंच पर भगवान स्वरूप कटियार की नयी काव्य कृति 'भीड़ के पांव ' का लोकार्पण हुआ। यह उनका आठवां कविता संग्रह है। असगर मेहदी, चन्द्रेश्वर, शैलेश पंडित, अशोक चंद्र, कौशल किशोर और तस्वीर नक़वी ने इस संग्रह को जारी किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने की।
इस मौके पर भगवान स्वरूप कटियार ने संग्रह की शीर्षकभगवान स्वरूप कटियार के कविता संग्रह 'Bheed Ke Paav ' का लोकार्पणभगवान स्वरूप कटियार के कविता संग्रह 'Bheed Ke Paav ' का लोकार्पण कविता 'भीड़ के पांव ' का पाठ किया जिसमें वे कहते हैं 'भीड़ ने हमेशा दिया है पैगाम /मनुष्य और मनुष्यता को बचाए रखने का.....भीड़ महज़ भीड़ नहीं होती /सही मायने में वही होती है /असल देश /और देश का मुस्तकबिल इतिहास'। उन्होंने 'दुनिया एक कैदखाना ' भी सुनाई। कविताओं पर चर्चा भी हुई। कवि व लेखक अशोक चन्द्र ने कहा कि वाम धारा के कवि होने के नाते कटियार जी की कविताओं के सरोकार आमजन के संघर्षों और सपनों से बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं। कटियार जी की चिन्ताएं बहुमुखी हैं। कवि व आलोचक शैलेश पंडित ने संग्रह की कुछ कविताओं जैसे बेफिक्री, शरारती ईश्वर एवं स्त्रियों के लोकतंत्र को कोट करते हुए कहा कि छोटी छोटी चीजों के जरिए बड़ी बात कहते हैं जो कटियार जी के काव्य रचना को विशेष बनाती है। इनकी कविताएं भीड़ में अलग से पहचानी जा सकती हैं।
कवि व समीक्षक कौशल किशोर ने कहा कि कटियार जी ने लंबी काव्य यात्रा में अपने समकाल को रचा है। व जीवन की अनेक घटनाएं दर्ज हुई हैं। यहां आम आदमी का दुख-दर्द, संघर्ष और उसका स्वप्न व्यक्त हुआ है। सहजता और सरलता इनकी कविता का खास गुण है। यह पाठकों से संवाद करती हैं। कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर का कहना था कि कटियार जी के व्यक्तित्व की तरह उनकी कविताओं में स्पष्टता है, भ्रम और उलझाव नहीं हैं। वो खुद भी अपनी कविताओं की तरह तरोताजा और सक्रिय हैं। कटियार जी का गद्य लेखन भी विपुल है। इसमें समाज
कार्यक्रम का दूसरा सत्र कविता पाठ का था। इस सत्र में मधुसूदन मगन, ईरा श्रीवास्तव, रेनू शुक्ला, अशोक श्रीवास्तव, रोहिणी जान, तस्वीर नक़वी, विमल किशोर और मुहम्मद कलीम इकबाल ने अपनी कविताओं से समां बांधा। कविताएं जो पढ़ीं गईं, वे स्त्री जीवन के प्रश्न, उनके प्रति बरती जा रही नृशंसता, बढ़ती हिंसा व युद्ध, अमानवीयता, आम लोगों के दुःख दर्द को उकेरती हैं। कार्यक्रम का समापन चन्द्रेश्वर के अध्यक्षीय वक्तव्य तथा कविता पाठ से हुआ। उनका कहना था कि 1990 के बाद कविता का परिदृश्य बदला है। उसका दायरा बढ़ा है। यहां पढ़ीं गईं कविताएं उसका उदाहरण है। चन्द्रेश्वर ने अपनी चर्चित कविता 'हत्यारे' सुनाई जिसमें कहते हैं कि यह ऐसा खराब समय है जब हत्यारों को समाज और राजनीति में प्रतिष्ठा मिल रही है। उन्होंने दो और कविताओं का पाठ किया।
दोनों सत्रों का कुशल और काव्यात्मक संचालन किया कलीम खान ने तथा सभी के प्रति आभार व्यक्त किया अरविन्द शर्मा ने। इस मौके पर रफत फातिमा, वीरेंद्र सारंग, सुभाष राय, हेमंत कुमार, प्रतुल जोशी, उग्रनाथ नागरिक, आलोक कुमार, इंदु पांडेय, अनिल कुमार श्रीवास्तव, बंधु कुशावर्ती, के के शुक्ला, नगीना खान, ओ पी सिन्हा, लता राय, वीरेंद्र त्रिपाठी, तरुण निशांत, प्रमोद प्रसाद, तारा कटियार, अदिति आदि मौजूद थे।