पुण्य तिथि पर याद किये गये फिराक गोरखपुरी

Update: 2023-03-03 12:36 GMT

बस्ती: ‘हो जिन्हें शक, वो करें और खुदाओं की तलाश, हम तो इंसान को दुनिया का खुदा कहते हैं ’। ‘एक मुद्दत से तेरी याद भी न आई हमें, और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं, जैसी शायरी करने वाले अजीम शायर और लेखक फिराक गोरखपुरी जिनका असली नाम रघुपति सहाय था को उनके 41 वें पुण्य तिथि पर याद किया गया। शुक्रवार को प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार सत्येन्द्रनाथ मतवाला की अध्यक्षता में कलेक्टेªट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं के फिराक गोरखपुरी के जीवन और साहित्य से जुड़े अनेक सन्दर्भों पर विमर्श किया।

मुख्य अतिथि डा. वी.के. वर्मा ने फिराक गोरखपुरी के जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुये कहा कि वे बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में एक थे। वे जितनी अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं उतने ही उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से भी मशहूर हैं। उनका जन्म 28 अगस्त सन् 1896 में गोरखपुर में हुआ था और तीन मार्च 1982 में मृत्यु हो गई थी। ‘पाल ले एक रोग नादां जिंदगी के वास्ते, सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं.’ जैसे शेर आज भी लोगों की जुबा पर आ ही जाते हैं। विशिष्ट अतिथि वी.एन. शुक्ल और सन्तोष कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि फिराक की शायरी आज भी लोगों की जुबान पर है। अध्यक्षता करते हुये सत्येन्द्रनाथ मतवाला कहा कि ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं’ मौत का भी इलाज हो शायद , जिंदगी का कोई इलाज नहीं’ जैसी शायरी को शव्द देने वाले फिराक गोरखपुरी एक शिक्षक के रूप में प्रतिष्ठित रहे। वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ और वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि गोरखपुर से ताल्लुक रखने वाले फिराक साबह को शायरी यूं कहें तो विरासत में मिली थी। रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी के पिता मुंशी गोरख प्रसाद इबरत यूं तो पेशे से वकील थे, लेकिन शायरी में उनका अच्घ्छा दखल था। फिराक साहब का जन्म 28 अगस्त, 1896 को हुआ था। उनका योगदान सदैव याद किया जायेगा।

संचालन करते हुये वी.के. मिश्र ने कहा कि स्नातक के बाद उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भी हो गया था। परंतु उस समय देश-प्रेम की भावना से ओतप्रोत होकर उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़ स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। और जंगे आजादी में पूरी शिद्दत से भाग लेने लगे। ऐसे महान शायर से प्रेरणा लेने की जरूरत है।कार्यक्रम में बाबूराम वर्मा, विनय कुमार श्रीवास्तव, दीपक सिंह प्रेमी, अजमत अली सिद्दीकी, राहुल, राघवेन्द्र शुक्ल, डा. अफजल हुसेन अफजल ने कहा कि फिराक साहब ने उर्दू साहित्य अपनी एक खास जगह बनाई वे उर्दू के ऐसे महान शायर थे जिन्होंने उर्दू गजल के क्लासिक मिजाज को नई ऊंचाई दी। उन्होंने हर विधा में लिखा। उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण आदि अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया और अंत में 3 मार्च 1982 उनका निधन हो गया। मुख्य रूप से ओम प्रकाशनाथ मिश्र, परमात्मा प्रसाद निर्दोष, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, सामईन फारूकी ओम प्रकाश धर द्विवेदी, राधेश्याम गुप्ता, डा. राजेन्द्र सिंह राही, जगदम्बा प्रसाद भावुक, असद बस्तवी, दीनानाथ, गणेश प्रसाद आदि शामिल रहे।

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