उत्तर प्रदेश: बलिया में सोमवार सुबह गंगा नदी में नाव पलटने से बड़ा हादसा हो गया। हादसे में 4 लोगों की मौत हो गई है। इसमें महिलाएं भी शामिल हैं। 20 से 25 लोगों के लापता होने की बात कही जा रही है। बताया जा रहा है कि नाव पर 35 से ज्यादा लोग सवार थे।
सभी मुंडन संस्कार के बाद गंगा पार पूजन करने जा रहे थे। घाट पर मौजूद नाविकों ने 6 लोगों को नदी से बाहर निकाला है। सभी को अस्पताल भेजा गया है। प्रशासन के साथ स्थानीय लोग बचाव में जुटे हुए हैं।
हादसा फेफना थाना क्षेत्र के माल्देपुर घाट पर हुआ है। बताया जा रहा है कि ओहार परंपरा के तहत ये लोग नाव से गंगा पार जा रहे थे, जबकि वहां पीपा पुल भी बना था। इस समय SDRF और NDRF की टीमें बचाव में लगी हुई हैं।
घटनास्थल पर DM रवींद्र कुमार, SP राजकरन नैय्यर सहित कई आलाधिकारी मौजूद हैं। रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। DM ने बताया कि एक ही नाव पर 5 परिवार के लोग शामिल थे। सभी परिवार गंगा के उस पार जा रहा था, तभी बीच नदी में ही हादसा हो गया। नाव पलटने के मुख्य कारण का अब तक पता नहीं चल सका है। जानकारी की जा रही है। अब तक शवों की पहचान तक नहीं हो सकी है।
''पीपा पुल की रस्सी पकड़कर बचे कुछ लोग''
एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया, "नाव में बहुत ज्यादा लोग बैठे थे। घाट से छूटकर नाव कुछ ही दूर गई थी, तभी लोगों के चिल्लाने की आवाज आई। नाव पर बैठे लोग चिल्ला-चिल्लाकर बता रहे थे कि नाव में पानी भर रहा है। देखते-देखते नाव डूबने लगी। उस वक्त कुछ लोग पास के ही पीपा पुल के रस्सी को पकड़ लिए। नाविकों और कुछ स्थानियों की मदद से इन्हें बचाया गया। जबकि करीब 20 लोग पानी में डूब गए हैं।"
क्षमता सिर्फ 20 की थी, 35 से ज्यादा लोग बैठे थे
लोगों का कहना है कि नाव की क्षमता सिर्फ 20 लोगों के बैठने की थी। बावजूद इसके नाव में क्षमता से ज्यादा लोगों को सवार किया गया। हालांकि वहां पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने इस बात का विरोध किया था, इसके बाद कुछ लोगों को नाव से उतारा भी गया था। इसे भी हादसे की वजह माना जा रहा है। फिलहाल प्रशासनिक अधिकारियों ने पुष्टि नहीं की है।
ओहार परंपरा की वजह से नाव से गए, पुल से नहीं- नाविक
माल्देपुर घाट पर पीपा पुल भी बना है। इससे लोगों में इस बात की चर्चा है कि पुल होने के बावजूद भी लोग में सवार होकर गंगा पार गए। इसके जवाब में एक नाविक ने बताया कि आज गंगा घाट पर ओहार परंपरा के तहत मुंडन संस्कार कराया जा रहा है। इस परंपरा के तहत जब बच्चे ढाई या 5 साल के होते हैं, तो लोग गंगा तट पर जाकर मुंडन संस्कार कराते हैं।
इसके लिए बच्चे के बाल को गंगा में चढ़ाया जाता है। गंगा के इस पार बच्चे का मुंडन होता है। गंगा के उस पार एक पूजन कार्यक्रम होता है। इस बीच परिवार के कुछ लोग नाव से सवार होकर गंगा पार जाते हैं, उन्हें पुल या सड़क रास्ते से नहीं, बल्कि गंगा को ही पार करके जाना होता है। गंगा के इस पार बच्चे की मां रस्सी से बंधी खूटी के पास होती है। पिता चना और गुड़ पूरे रास्ते भर फेंकता जाता है। रस्सी के सहारे गंगा पार किया जाता है। उस पार भी परिवार की कुछ महिलाएं पूजन के लिए पहले से उपस्थित होती हैं।