बीएचयू के हिंदी विभाग की 'हिंदी' कमजोर, मात्राओं की गलतियों के साथ अंग्रेजी के शब्दों से बनाए वाक्य
बीएचयू के हिंदी विभाग की हिंदी ही बहुत कमजोर है। यह पढ़ कर कुछ अटपटा लग रहा होगा, लेकिन हकीकत है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीएचयू के हिंदी विभाग की हिंदी ही बहुत कमजोर है। यह पढ़ कर कुछ अटपटा लग रहा होगा, लेकिन हकीकत है। इसका प्रमाण हिंदी विभाग के पुस्तकालय की ओर से जारी एक सूचना है। गलतियों की शुरुआत हिंदी विभाग के बाबू श्यामसुंदर दास पुस्तकालय के हिंदी में छपे पत्रशीर्ष (लेटर हेड) से दिखती है। श्यामसुंदर दास के नाम के आगे बाबू की जगह 'बाबु' लिखा है। लेटर हेड पर हिंदी शब्द भी सही नहीं लिखा है। हिंदी की जगह 'हिंदि' अंकित है।
आठ पंक्तियों की सूचना में कुल 59 शब्द हैं, उनमें 20 शब्द अंग्रेजी के हैं। इसमें सूचित को सुचित, कोई को कोइ, कृपया को क्पया और किया को कीया लिखा गया है। इस सूचना के पहले दो शब्द 'विभाग के समस्त' के बाद अगले 10 शब्द 'फैकेल्टी मेंबर्स, रिसर्च स्कॉलर्स एंड ऑल द स्टूडेंट्स ऑफ एमए (हिंदी)' अंग्रेजी के हैं। हिंदी विभाग की सूचना में 'इश्यूड, रिटर्न, ओवरड्यू चार्ज' जैसे अंग्रेजी के अन्य शब्द भी अंकित हैं।
सूचना के एक वाक्य में व्याकरण दोष भी है। यह सूचना डिप्टी लाइब्रेरियन और बीएचयू हिंदी विभाग के अध्यक्ष के हस्ताक्षर के बाद जारी भी कर दी गई। अंग्रेजीयुक्त त्रुटिपूर्ण हिंदी वाली यह सूचना बीएचयू कैंपस में बहुत तेजी से वायरल हो रही है। न सिर्फ हिंदी विभाग बल्कि अन्य विभागों के शिक्षक और विद्यार्थी भी वायरल हो रही इस सूचना की आड़ में तंज कस रहे हैं। इस संबंध में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि पुस्तकालय में पुस्तकें जमा करने संबंधी जारी की गई सूचना में टाइपिंग की गलती हो गई है। यह कोई विशेष बात नहीं है।
अंग्रेजी में नामकरण पर हो चुका है विवाद भी
इससे पूर्व कोरोना की पहली लहर के दौरान अंग्रेजी में नामकरण विवाद का कारण बना था। उस विवाद के केंद्र में भी पुस्तकालय ही था। उस समय हिंदी विभाग के बाबू श्यामसुंदर दास पुस्तकाल के द्वार पर यह नाम अंग्रेज में लिखा गया था। जब इसपर आपत्ति की गई तो विभागाध्क्ष डा. विजय बहादुर सिंह ने सफाई दी थी कि पुस्तकालय के नाम का अंग्रेजी में अंकन उनके कार्यकाल में नहीं हुआ है। कोरोना के कारण पेंटर नहीं मिल पा रहा है इसलिए उसे सही नहीं कराया जा सका है। स्थिति सामान्य होने पर पुस्तकालय के द्वार पर नाम का अंकन हिंदी में किया गया था।