सुप्रीम कोर्ट ने बिहार की शराबबंदी कानून संबंधी याचिका पर किया इन्कार, जानें क्या है पूरी खबर
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में शराबबंदी कानून के तहत अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रविधान की वैधानिकता पर टिप्पणी के बारे में राज्य सरकार के आवेदन पर विचार करने से गुरुवार को इन्कार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में शराबबंदी कानून के तहत अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध लगाने संबंधी प्रविधान की वैधानिकता पर टिप्पणी के बारे में राज्य सरकार के आवेदन पर विचार करने से गुरुवार को इन्कार कर दिया। राज्य सरकार चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट यह स्पष्ट कर दे कि उसने 11 जनवरी के आदेश में शराबबंदी कानून के तहत अग्रिम जमानत पर प्रतिबंध संबंधी प्रविधान की वैधता के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन कोर्ट ने इस अनुरोध पर विचार करने से इन्कार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में गिरफ्तारी से पहले जमानत देने के पटना हाई कोर्ट के आदेशों को मंजूरी दे दी थी। चीफ जस्टिस एनवी रमना के नेतृत्व वाली पीठ ने 11 जनवरी को राज्य के कड़े शराबबंदी कानून के तहत आरोपितों को अग्रिम और नियमित जमानत देने को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की 40 अपीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इन मामलों ने अदालतों को अवरुद्ध कर दिया है और पटना हाई कोर्ट के 14 -15 जज केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं।
इसके बाद राज्य सरकार ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देने के उसके आदेश को बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम की धारा 76 की वैधता के खिलाफ माना जा सकता है, जो अग्रिम या गिरफ्तारी से पहले जमानत देने पर रोक लगाता है। चीफ जस्टिस ने याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए कहा कि हमने आपके (बिहार) अधिनियम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। अधिनियम की वैधता का मुद्दा एक अन्य पीठ के समक्ष लंबित है। अब आप मेरी टिप्पणियों का उपयोग करना चाहते हैं। क्षमा करें।
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि हाई कोर्ट की कुछ पीठों द्वारा शराब के मामलों में अग्रिम जमानत दिए जाने के बाद एक पूर्ण पीठ का गठन किया गया था जिसने कहा था कि अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह दलील देने के लिए संविधान पीठ के एक फैसले का भी हवाला दिया कि यदि कानून विशेष रूप से इसे रोकता है तो अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। चीफ जस्टिस रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि क्या हमने आपके अधिनियम या प्रविधान की वैधता के बारे में कोई टिप्पणी की? हमने कोई टिप्पणी नहीं की है.हमने जमानत मिलने के बाद तीन-चार साल बीत जाने पर ही ध्यान दिया।
गत 11 जनवरी को, जमानत के खिलाफ राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन मामलों में हाई कोर्ट द्वारा 2017 में ही जमानत दी गई थी, और इसलिए इसके लिए अभी याचिकाओं से निपटना उचित नहीं होगा। बिहार पुलिस रिकार्ड के अनुसार, पिछले साल अक्टूबर तक बिहार मद्य निषेध और आबकारी अधिनियम के तहत 3,48,170 मामले दर्ज किए गए और 4,01,855 गिरफ्तारियां की गईं। ऐसे मामलों में लगभग 20,000 जमानत याचिकाएं हाई कोर्ट या जिला अदालतों में लंबित हैं।