राजस्थान: अंतरराष्ट्रीय स्तर के पंचकर्म सेंटर से बढ़ेगा पर्यटन, राज्य सरकार ने उठाया बड़ा कदम

राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर (Jodhpur) में अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयुर्वेद पंचकर्म सेंटर (Panchkarma Center) का जल्द निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा.

Update: 2022-03-06 18:18 GMT

राजस्थान (Rajasthan) के जोधपुर (Jodhpur) में अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयुर्वेद पंचकर्म सेंटर (Panchkarma Center) का जल्द निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा. इसके लिए जोधपुर के डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय (Dr Sarvepalli Radhakrishnan Rajasthan Ayurved University) करवड़ में स्थान चिन्हित किया गया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयुर्वेद पंचकर्म सेंटर 50 करोड़ की लागत से बनकर तैयार होगा. पंचकर्म सेंटर में अत्याधुनिक तकनीकी के उपकरणों को भी शामिल किया गया है और इसे लेकर राज्य सरकार की ओर से हरी झंडी भी मिल चुकी है. साथ ही इसे लेकर जल्द काम शुरू करने की तैयारी भी चल रही है.

पास हो चुका है बजट
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय करवट के कुलपति अभिमन्यु कुमार (Abhimanyu Kumar) ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में बताया कि बहुत जल्द अंतरराष्ट्रीय स्तर का पंचकर्म सेंटर खुलने जा रहा है. इस सेंटर को विशेष तौर पर डिजाइन किया गया है. इस पंचकर्म सेंटर में खास फैसिलिटी भी उपलब्ध कराई जाएगी, साथ ही सेंटर में तकनीकी का भी पूरा ख्याल रखा गया है. 100 कॉटेज के अंतरराष्ट्रीय स्तर के पंचकर्म सेंटर के लिए राज्य सरकार ने 50 करोड़ रुपए का बजट पास किया है. इस पंचकर्म सेंटर में तकनीकी और आयुर्वेद के जरिए असाध्य बीमारियों का इलाज होगा. मेडिटेशन, योगा सहित अन्य आयुर्वेद से जुड़े उपचार भी किए जाएंगे. पंचकर्म सेंटर को एनवायरमेंट फ्रेंडली बनाया जाएगा जिससे ये देश विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सके. पंचकर्म सेंटर को पीपीपी मोड पर चलाया जाएगा.
संभव है कई बीमारियों का इलाज
आयुर्वेद कहता है कि मनुष्य का शरीर जिन 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु) से बना है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांड भी बना है. जब शरीर में इन 5 तत्वों के अनुपात में गड़बड़ी होती है तो दोष यानी समस्याएं पैदा होती हैं. आयुर्वेद इन तत्वों को फिर से सामान्य स्थिति में लाता है और इस तरह से रोगों का निदान होता है. गठिया, लकवा, पेट से जुड़े रोग, साइनस, माइग्रेन, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, साइटिका, बीपी, डायबीटीज, लिवर संबंधी विकार, जोड़ों का दर्द, आंख और आंत की बीमारियों आदि के लिए पंचकर्म किया जाता है.

इसलिए कहते है पंचकर्म
पंचकर्म को आयुर्वेद की खास चिकित्‍सा विधि माना जाता है. ये शरीर की शुद्धि (डिटॉक्सिफिकेशन) और पुनर्जीवन (रिजुविनेशन) के लिए उपयोग किया जाता है. इस चिकित्सा विधि से तीनों शारीरिक दोषों वात, पित्त और कफ को सामान्य अवस्था में लाया जाता है और शरीर से इन्हें बाहर किया जाता है. शरीर के विभिन्न अंगों और रक्त को दूषित करने वाले अलग-अलग रसायनिक और विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालने के लिए विभिन्‍न प्रकार की प्रक्रियाएं प्रयोग में लाई जाती हैं. इन प्रक्रियायों में पांच कर्म प्रधान हैं, इसीलिए इस खास विधि को 'पंचकर्म' कहते हैं.
मानसिक रोगों का होता है इलाज
इस विधि से शरीर में मौजूद विषों (हानिकारक पदार्थों) को बाहर निकालकर शरीर का शुद्धिकरण किया जाता है. इसी से रोग निवारण भी हो जाता है. ये शरीर के शोधन की क्रिया है जो स्वस्थ मनुष्य के लिए भी फायदेमंद है. आयुर्वेद का सिद्धांत है, रोगी के रोग का इलाज करना और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखना. पंचकर्म चिकित्सा आयुर्वेद के इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है. इसीलिए सिर्फ शारीरिक रोग ही नहीं बल्कि मानसिक रोगों की चिकित्सा के लिए भी पंचकर्म को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा माना जाता है.
पूर्व कर्म-पंचकर्म से पहले शरीर को स्नेहन और स्वेदन विधियों से संस्कारित करके प्रधान कर्म के लिए तैयार किया जाता है. स्नेहन 2 प्रकार से करते हैं. इसमें घृत, तेल, वसा और मज्जा कराते हैं और वसा आदि पदार्थों से मालिश की जाती है. शरीर से पसीने के माध्यम से विकार निकालने की प्रक्रिया को स्वेदन कहते हैं, इसमें भाप स्नान का प्रयोग किया जाता है.
प्रधान कर्म- इस पद्धति में अनेक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी प्रक्रियाएं इस प्रकार हैं
वमन- पंचकर्म का पहला कर्म वमन है. कफ प्रधान रोगों को वमन करने वाली औषधियां देकर वमन करवाकर ठीक किया जाता है.
विरेचन- पित्त दोष विरेचन औषधियों के द्वारा विरेचन करवा कर ठीक किया जाता है.
वस्ति- वात दोष को बाहर करने के लिए ये विधि अपनाई जाती है, इसमें गुदा के द्वारा वस्तियंत्र से औषधि को अंदर प्रवेश कराकर बाहर निकाला जाता है.
रक्तमोक्षण- इसमें रक्त खराब हो जाने से होने वाले रोगों से मुक्ति के लिए रक्त को बाहर निकाला जाता है. शिराओं को काटकर या कनखजूरे या लीच चिपका कर अषुद्ध रक्त बाहर निकालने की कोशिश की जाती है.
नस्य- इस चिकित्सा में नाक के छिद्रों से औषधि अंदर डालकर कंठ तथा सिर के दोषों को दूर किया जाता है.
पंचकर्म चिकित्सा के लाभ

- शरीर बलवान होता है.
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.
- शरीर की क्रियाओं का संतुलन पुन: लौट आता है.
- रक्त शुद्धि से त्वचा कांतिमय होती है.
- इंद्रियों और मन को शांति मिलती है.
- दीर्घायु प्राप्त होती है और बुढ़ापा देर से आता है.
- रक्त संचार बढ़ता है.
- मानसिक तनाव में कारगर है.
- अतिरिक्त चर्बी को हटाकर वजन कम करता है.
- आर्थराइटिस, मधुमेह, तनाव, गठिया, लकवा आदि रोगों में राहत मिलती है.
- स्मरण शक्ति बढ़ती है.


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