राजस्थान में नहीं थम रहा है गहलोत बनाम पायलट का विवाद, अब आया यह नया मोड़

Update: 2023-05-28 11:04 GMT

जयपुर। कर्नाटक का नाटक समाप्त होने के बाद से ही, राजनीति के कैमरे का फोकस राजस्थान के उस जादुई थियेटर पर आ टिका था जिसमें किसी बालीवुड फिल्म जैसा सस्पेन्स और ड्रामा था तो दक्षिण भारतीय हिट फिल्म जैसा एक्शन और मारधाड़। बहुप्रतीक्षित इस फिल्म का एक ट्रेलर हाल ही हमने अजमेर के गोविन्दम गार्डन में देखा जहां अशोक गहलोत और सचिन पायलट समर्थकों के बीच कराटे से लेकर बाक्सिंग तक हर मार्शल विधा का एक साथ फिल्मांकन हुआ।राजस्थान में 6 महिने बाद होने जा रहे विधान सभा चुनाव की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी तैयारी में कौरव और पांडव, या यूं कहें कि भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे के कांधे से कांधा मिला कर भाग ले रहे हैं। बकौल अशोक गहलोत अब से 3 साल पहले जहां एक तरफ भाजपाई केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत नें उनकी सरकार के पाये हिलवाने में उनके पार्टी भाई सचिन पायलट का साथ दिया वहीं दूसरी तरफ भाजपाई महारानी वसुंधरा राजे नें उनके पायों की हिलती चूलों में अपनी कील लगा कर बुरे वक्त में मित्रता का सबूत दिया।उधर पायलट जहां एक तरफ राजे से सांठगांठ का आरोप लगा खुद गहलोत से हिसाब चुकता कर रहे हैं वहीं वसुंधरा के रूप में गजेन्द्र् सिंह की बिवाई का कांटा निकाल कर उनसे अपनी मित्रता का कर्ज भी अदा कर रहे हैं।

गहलोत और पायलट की पंजा लड़ाई का परिणाम सुनाने के लिये कांग्रेस हाईकमान द्वारा पहले 24 व फिर 26 मई को दिल्ली में रखी बैठक टल जाने से प्रथम दृष्टया ऐसा लगा कि हाईकमान ,बाक्सिंग रिंग के चतुर रैफरी की तरह किसी लफड़े में पड़ने के बजाय दोनों में से किसी एक का स्वत: नाँकडाउन चाहती है मगर सच्चाई यह है कि पायलट को लेकर खुद हाईकमान की हालत सांप और छछुंदर जैसी है। एक तरफ पायलट के प्रति गांधी परिवार का धृतराष्ट्र जैसा मित्रमोह है तो दूसरी तरफ इनके बढ़ते हौंसलों से पार्टी अनुशासन की उड़ती धज्जियां। एक तरफ गहलोत द्वारा पिछले सितम्बर में विधायकों के इस्तीफे दिलवा कर हाईकमान को दी गई घुड़की की टीस है तो दूसरी तरफ उनकी चर्चित योजनाओं की पृष्ठभूमि में यह डर कि अगले चुनाव में उनकी नाराजगी कांग्रेस को पायलट से ज्यादा नुक्सान पहुंचा सकती हैं।

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