चंडीगढ़। 3 जून यानि विश्व साइकिलिंग दिवस। शहर में कई जगह साइकिलिंग इवैंट्स हुए। शहर की सडक़ों और साइकिल ट्रैकों पर साइकिलिंग का संदेश देने कई साइकिलिस्ट उतरे। मगर शहर में कई ऐसे साइकिलिस्ट हैं, जो हर रोज यह काम कर रहे हैं। साइकिल उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है और वे लोगों को खासकर युवाओं को साइकिलिंग के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कोई पर्यावरण बचाने, कोई फिटनैस तो कोई बच्चों को नशे से बचाने के लिए उन्हें साइकिल को अपनाने का संदेश दे रहा है।
बेटे की याद में साइकिलिंग शुरू की, अब आदत बन गई
बेटा 19 साल का था, वह माऊंटेन साइकिलिस्ट था। मई 2007 में एक एक्सीडैंट में मैंने उसे खो दिया। 18 सितम्बर को उसका बर्थ-डे होता है, उसी दिन उसकी याद में मैंने अपनी पहली राइड मनसा देवी मंदिर के लिए की व उसके बर्थडे को समर्पित की। बस उसके बाद यह सिलसिला थमा नहीं, बल्कि आदत बन गई। दोनों घुटने बदलने और हर्निया ऑपरेशन होने के बावजूद फिटनैस के लिए रोज कम से कम 30 किलोमीटर साइकिलिंग करती हूं। वीकैंड पर 100-150 किलोमीटर भी हो जाता है। अकाऊंट्स लैक्चरर हूं, घर पर ऑल्टो कार है, मगर छोटे-मोटे काम के लिए साइकिल से जाती हूं। मुझसे प्रेरित होकर कॉलेज के कई लैक्चरर्स ने साइकिलिंग शुरू कर दी है।
अनूप किरण (59), लैक्चरर, सैक्टर-40 निवासी।
सोचा था लाइसैंस बनने तक साइकिल से ड्यूटी जाऊंगी, अब मेरे प्रोफैशन का अटूट हिस्सा
फिजियोथैरेपिस्ट हूं, 2019 में मैंने जॉब ज्वाइन की तो मेरे पास ड्राइविंग लाइसैंस नहीं था, सोचा जब तक लाइसैंस बनेगा, साइकिल से ही ड्यूटी पर जाया करूंगी। हम अपने मरीजों को उनके घर जाकर फिजियोथैरेपी की सेवाएं देते हैं। मगर अब लोग मुझे फिजियो ऑन व्हील्स के नाम से जानते हैं। होम केयर नामक कंपनी में जॉब करती हूं। मुझे साइकिल पर आते-जाते देख मेरे कई पेशैंट्स और उनके बच्चों ने साइकिलिंग शुरू कर दी। गर्व महसूस करती हूं यह बताने में कि मुझसे प्रेरित होकर मेरे बहुत से जानकारों ने साइकिल चलानी शुरू की। अब साइकिलिंग मेरे प्रोफैशन का अटूट हिस्सा बन गया है। घर पर होंडा सिटी गाड़ी है, मगर मौसम ठीक हो तो काम पर जाने के लिए 50-80 किलोमीटर साइकिल से ही चली जाती हूं।
अमन (), फिजियोथैरेपिस्ट, पंचकूला निवासी।
रोज 100 किलोमीटर चलाता हूं ताकि युवा प्रेरित हों
जब साइकिलिंग शुरू की थी तो फिटनैस फोकस था, मगर फिर सोसायटी के लिए कुछ करने की ठानी। अब ज्यादा से ज्यादा युवाओं को साइकिल पर लाना मकसद है। साइकिल पर मैसेज लिखा है और ट्राईसिटी ही नहीं हरियाणा, हिमाचल और पंजाब के कई शहरों के स्कूलों में जाकर बच्चों को साइकिलिंग के लिए अवेयर कर रहा हूं। आंधी आए चाहे बारिश और भले ही तेज धूप हो, मेरी साइकिल का पहिया तब तक नहीं थमता, जब तक दिन में कम से कम 100 किलोमीटर न हो जाएं। अधिकतर काम साइकिल पर जाकर ही कर आता हूं। पिछले साल एक्सीडैंट में कंधे पर चोट के कारण डॉक्टर ने हफ्ता रैस्ट के लिए कहा था मगर मुझसे रूका न गया मैं अगले दिन अपनी साइकिल पर था। गाड़ी तो कई बार महीने बाद ही सडक़ पर निकलती है।
रूपेश कुमार बाली (52), जीरकपुर निवासी।
साइकिल मेरी जिंदगी का हिस्सा, बच्चों को नशे से बचाना मकसद
जब मैं छठी क्लास में था तो साइकिलिंग शुरू की थी। उसके बाद तो जैसे यह जिंदगी का हिस्सा ही बन गई। 37 साल से क्रिकेट अकैडमी चला रहा हूं। मेरे सिखाए कई बच्चे यू.टी.सी.ए. और यूनिवर्सिटी खेल चुके हैं। सैक्टर-27 के सीनियर सैकेंडरी स्कूल और गवर्नमैंट गल्र्स सीनियर सैकेंडरी स्कूल सैक्टर-20 में मैं बच्चों को क्रिकेट की फ्री कोचिंग देता हूं। साइकिल से अकैडमी आता-जाता हूंं और यहां आने वाले बच्चों को भी साइकिलिंग के लिए प्रेरित करता हूं। अधिकतर बच्चे साइकिल से ही क्रिकेट अकैडमी आते हैं। 15 साल पहले मैंने साइकिल पर बच्चों को नशे से बचाओ का स्लोगन लिखवाया था और बच्चों को इससे दूर रखने के लिए खेल और साइकिलिंग अपनाने को प्रेरित करना ही मेरा मकसद है।
मुकेश कुमार (66), क्रिकेट कोच, सैक्टर-19 डी, चंडीगढ़।