इंदौर में रहवासी सहकारी संस्थाएं हो रही फेल

Update: 2023-01-04 07:00 GMT

इंदौर न्यूज़: कॉलोनियों, टाउनशिप और बिल्डिंगों में बिल्डर के बाद में भी व्यवस्थाएं बनी रहें, इसके लिए राज्य सरकार ने सहकारिता अधिनियम के तहत रहवासी सहकारी संस्थाओं का रजिस्ट्रेशन शुरू करवाया था. पूरे प्रदेश में इंदौर में सबसे ज्यादा रहवासी संस्थाएं रजिस्टर्ड भी हुई. लेकिन इसके नतीजे भी सबसे बूरे आ रहे हैं. इंदौर में रजिस्टर्ड हुई दर्जनों संस्थाओं के संचालकों ने विवादों के बाद इस्तीफे दे दिए हैं. वहीं अब इनका कामकाज सहकारिता विभाग के अधिकारी बतौर प्रशासक संभाल रहे हैं और वे भी इनकी व्यवस्थाओं को लेकर परेशान हो चुके हैं. लगभग 5 साल पहले राज्य सरकार ने रहवासी संघों के रजिस्ट्रेशन के लिए सहकारिता विभाग को अधिकार दिए थे. जिसके साथ ही इसके नियम भी बनाए गए थे. उनके लागू होने के बाद से ही इंदौर में अभी तक 124 रहवासी सहकारी संस्थाएं रजिस्टर्ड हो चुकी हैं. वैसे तो इनके संचालकों का कार्यकाल भी 5 साल का है. लेकिन इनमें से 54 संस्थाओं के संचालकों ने मेंटेनेंस संबंधी विवादों के चलते कार्यकाल पूरा होने के पहले ही इस्तीफे दे दिए हैं. जिसके बाद इन पर प्रशासक बैठाने की नौबत आ गई है. वहीं लगभग 30 से ज्यादा संस्थाएं ऐसी हैं, जिनके अध्यक्ष और उपाध्यक्ष कार्यकाल के बीच में ही अपना पद छोड़ चुके हैं, जिन पर दोबारा से समायोजन करना पड़ा.

अधिकारी भी हो रहे परेशान:

इंदौर में वैसे ही सहकारिता विभाग में अधिकारियों की कमी है. जो अफसर हैं उन्हें ही इन 54 सहकारी संस्थाओं के प्रभारी के तौर पर भी नियुक्त किया गया है. ऐसे में कई अधिकारियों को दो से तीन संस्थाओं का प्रभारी नियुक्त किया गया है. जबकि इन्हीं अफसरों के पास पहले से ही अन्य संस्थाओं का भी काम रहता है. जिनमें संस्थाओं के ऑडिट, जांच, बयान दर्ज करने, प्रभार आदि काम शामिल हैं. अफसरों को दिए गए दूसरे ये सभी काम भी प्रभावित हो रहे हैं.

सबसे ज्यादा शिकायतें:

सहकारिता विभाग में रोजाना लगभग 100 से ज्यादा शिकायतें दर्ज होती हैं. लगभग 20 से ज्यादा शिकायतें इन्हीं रहवासी संघ से जुड़ी संस्थाओं की होती है. इनकी जांच और उसका निराकरण करने में अफसरों को परेशान होना पड़ रहा है.

ये बात सही है कि संस्थाओं की शिकायतें आ रही हैं, जिन संस्थाओं के संचालक मंडल नहीं है, उनके चुनाव के लिए हमने प्रस्ताव भेजे हैं, जल्द ही इन सभी में चुनाव हो जाएंगे.

- एमएल गजभिए, उपायुक्त सहकारिता

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