गिरिडीह लोकसभा सीट पर जारी है रस्साकशी, जानें प्रत्याशी कौन होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन तीसरी बार देश की सत्ता में आने की कवायद में जुटा हुआ है.

Update: 2024-03-11 08:15 GMT

गिरिडीह : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन तीसरी बार देश की सत्ता में आने की कवायद में जुटा हुआ है. यह गठबंधन अबकी बार 400 पर का नारा देकर एक-एक सीट पर जीत हार का आंकलन कर रहा है और फूंक फूंक कर कदम रख रहा है ताकि किसी भी हाल में तीसरी बार उसे सत्ता हासिल हो सके. पर जहां एनडीए गठबंधन का यह हाल है वहीं लोकसभा की गिरिडीह लोकसभा सीट को लेकर रस्साकस्सी जारी है. 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सीटिंग एमपी रविंद्र पांडे का टिकट काटकर इस सीट को आजसू को थमा दिया था और आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी ने जीत भी दर्ज की थी,पर इस बार इस सीट को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है. कहिए कि एक अनार सौ बीमार की हालत बन गई है. इस बार भी आजसू के चंद्र प्रकाश चौधरी ही इस सीट से चुनाव लड़ेंगे या आजसू किसी और को मैदान में उतारेगी यह अभी तय नहीं है,पर इस सीट को लेकर जिस तरीके से दावेदारी की जाने लगी है इस बार कठिन होगी डगर पनघट की. वैसे भी कहा जाता है कि गिरिडीह संसदीय सीट से एकमात्र रविंद्र पांडे को छोड़कर आज तक किसी नेलगातार दोबारा जीत दर्ज नहीं की है. रविंद्र पांडे ही ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिन्हें इस सीट से 5 बार चुनाव जीत कर लोकसभा में जाने और जनता की आवाज बनने का अवसर मिला था.

इस बार इस सीट को लेकर तैलिक समाज ने भी अपनी दावेदारी ठोकी है और राजनीति में अपनी जायज हिस्सेदारी की आवाज उठायी है और नहीं मिलने पर विरोध में खड़ा होने की चेतावनी दी है. इस बीच प्रजापति समाज ने भी अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी की बात कहते हुए गिरिडीह लोकसभा सीट से अपनी दावेदारी पेश की है. इधर बोकारो जिला परिषद के अध्यक्ष सुनीता देवी के पति और भारतीय जनता पार्टी ओबीसी मोर्चा के जिलाध्यक्ष चितरंजन साब मजबूत दावेदारी के साथ क्षेत्र में फील्डिंग कर रहे है. उन्होंने टिकट के लिए नयी दिल्ली से लेकर रांची तक एक कर दिया है. हाल ही में बेरमो जिला बनाने की मांग पर जोरदार आंदोलन में भी उन्होंने बढ़ चढकर हिस्सा लिया था. चितरंजन साहू आंदोलनकारी के रूप में अपने को पेश कर रहे है. जाहिर सी बात है जब इतने दावेदार होंगे और टिकट किसी एक को मिलेगा तो बाकियों में निराशा होगी और यह निराशा चुनाव में पैर खिंचवौल के तौर पर दिख जाए तो आश्चर्य नहीं होगा.
कुल मिलाकर गिरिडीह सीट को लेकर जो हालात है वह विद्रोह की स्थिति पैदा कर सकती है. गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र का इतिहास रहा है कि 1952 से लेकर अब तक लगातार दूसरी बार किसी को जीत मिली है तो वह रविंद्र पांडे ही है. उनकी साख, उनकी रणनीति, उनकी पहचान और उनकी कार्य शैली लोगों का दिल जीतती रही है. कोरोना कल में जब लोगों की सेवा की जरूरत थी, रविंद्र पांडे ने हर क्षेत्र में राहत पहुंचाई और सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अभी यह तय नहीं हैं, कि इस बार भी एनडीए की अनदेखी के बाद वह अपनी राजनीतिक अनदेखी पर चुप बैठे रहेंगे या कोई कदम उठाएंगे लेकिन जिस तरीके से गिरिडीह संसदीय सीट को लेकर हालात बनते जा रहे है. एनडीए की झोली में इस सीट का आना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल भरा जरूर है. इस सीट पर पिछली बार जनता को जो विकास का माडल दिखाया गया था,वैसा नहीं होने से निराशा छंटी नहीं है. अब देखने लायक बात होगी कि भाजपा और एनडीए गठबंधन अबकी बार जिस 400 पार की बात कर रहा हैं, उसमें गिरिडीह का योगदान हो पाता है या नहीं. गिरिडीह लोकसभा सीट की चर्चा करें तो 1952 में यहां से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागेश्वर प्रसाद सिन्हा ने जीत दर्ज की थी.
1957 में छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी के काजी ऐस ए मतीन, 1962 में स्वतंत्र पार्टी के बटेश्वर सिंह ,1967 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इम्तियाज अहमद ,1971 में चप्पलेंदू भट्टाचार्य, 1977 में जनता पार्टी के रामदास सिंह, 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आई के बिंदेश्वरी दुबे, 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सरफराज अहमद,1989 में भारतीय जनता पार्टी के रामदास सिंह, 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विनोद बिहारी महतो, 1996, 1998, और 1999 में भारतीय जनता पार्टी के रविंद्र कुमार पांडे, 2004 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के टेक लाल महतो, 2009 में और 2014 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के रविंद्र पांडे को जीत का इतिहास बनाने में सफलता मिली. 2019 में आजसू पार्टी के चंद्र प्रकाश चौधरी ने यहा से जीत दर्ज की है. अब 2024 के चुनाव में टिकट पर दावेदारी,अलग अलग संगठनों की मांग और फिर इस सीट पर जीत को लेकर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है. वैसे अन्य जातियों की गिरिडीह सीट पर अलग-अलग दावेदारी से उम्मीदवार के सामने परेशानी आयेगी, जो चुनाव में अपनी भूमिका निभा कर संकट गहरा सकती है. वैसे गिरिडीह सीट पर चुनाव के पहले ही जिस तरीके से आजसू और भारतीय जनता पार्टी में टूट हुई. वह भी चुनाव में असर दिखा सकती है.


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