रिम्स : ओपीडी से लेकर अस्पताल के वार्ड तक है दलालों का कब्जा, हर दिन मरीज हो रहे शिकार

बड़ी उम्मीद लेकर मरीज राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स पहुंचते हैं कि उनका सस्ता और बेहतर इलाज होगा, मगर यहां उन्हें हर कदम पर दलाल रूपी मुसीबत नजर आती है.

Update: 2022-09-22 01:49 GMT

न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बड़ी उम्मीद लेकर मरीज राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स पहुंचते हैं कि उनका सस्ता और बेहतर इलाज होगा, मगर यहां उन्हें हर कदम पर दलाल रूपी मुसीबत नजर आती है. यहां दलालों से सावधान रहने की सूचना धरी की धरी रह जाती है. सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों के नाक के नीचे दलाल मरीजों को अपने झांसे में फंसा कर ठगी का शिकार बना रहे हैं. दलाल यहां आने वाले मरीजों को ऐसे झांसे में लेते हैं कि लगता है बिना इसके उसका इलाज ही नहीं होगा. ठीक होने की ललक और मजबूरी में मरीज उनके झांसे में फंस जाते हैं. आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आते रहती है. शोर-शराबे और हंगामे के बीच मामला शांत हो जाता है और फिर से दलाल सक्रिय हो जाते हैं और अपने काम में लग जाते हैं. कभी जल्दी दिखवा देने तो कभी दवा दिलाने के नाम पर तो कभी जांच करवाने के नाम पर. कुछ ऐसे भी दलाल हैं जो एंबुलेंस दिलाने के नाम पर बीमार मरीजों को अपने झांसे में लेने का काम करते हैं.

ओपीडी से लेकर अस्पताल के वार्ड तक है दलालों का कब्जा
रिम्स में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को ओपीडी से ही दलाल अपना निशाना बनाना शुरू कर देते हैं. डॉक्टरों के द्वारा लिखी हुई दवाई दिलाने का झांसा देते हैं और उनकी पर्ची को लेकर अपने पहचान के दुकान में पहुंच जाते हैं. दवा दुकान से कमिशन लेकर दलाल चंपत हो जाते हैं और मरीजों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है.
ब्लड बैंक के पास भी दलाल सक्रिय
अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों को जब खून की जरूरत पड़ती है, तो वह बदहवास ब्लड बैंक पहुंचते हैं. डोनर नहीं होने का फायदा उठाकर दलाल परिजनों को अपने झांसे में फंसाते हैं. इसके साथ ही सौदा शुरू हो जाता है. एक यूनिट ब्लड की कीमत आठ हजार से शुरू होती है और चार-पांच हजार रुपए पर सौदा तय हो जाता है.
प्राइवेट लैब के दलालों की भी रहती है नजर
रिम्स में पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी जांच की व्यवस्था है, लेकिन रिपोर्ट में लेटलतीफी का फायदा प्राइवेट लैब के दलाल उठाते हैं. जैसे ही किसी मरीज को पैथोलॉजी या फिर रेडियोलॉजी जांच के लिए डॉक्टर सलाह देते हैं, दलाल को इसकी भनक लग जाती है. वह अस्पताल के इर्द-गिर्द ही रहते हैं. कागज देखते हैं और मरीज को अपने साथ लेकर बाहर के लैब में पहुंच जाते हैं.
अक्सर होती है पॉकेटमारी-गाड़ी चोरी
रिम्स एक ऐसा अस्पताल है, जहां न सिर्फ झारखंड बल्कि पड़ोसी राज्य के लोग भी अपना इलाज के लिए पहुंचते हैं. अस्पताल में भीड़भाड़ रहती है और आए दिन इसका फायदा पॉकेटमार और गाड़ी चोर उठाते हैं. रिम्स के पुराने इमरजेंसी के पास स्थित प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में जब मरीज दवा खरीदने के लिए पहुंचते हैं तो वहां भीड़ का फायदा उठाकर पॉकेटमार मरीजों की जेब काट लेते हैं. जबकि अस्पताल परिसर में सैकड़ों दोपहिया वाहन लगी रहती है. चोर मौके की ताक में रहते हैं और गाड़ी लेकर रफूचक्कर हो जाते. 17 सितंबर को भी रिम्स परिसर से 3 गाड़ियों की चोरी हुई है.
Tags:    

Similar News

-->