गालूडीह : सोहराय की तैयारियां जोरों पर, दीवारों पर कलाकृतियां बनाने में जुटे ग्रामीण
सोहराय पर्व की तैयारी में आदिवासी समुदाय जुट गए हैं. गांवों में मिट्टी के रंगों का अनोखा संसार दिखने लगा है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोहराय पर्व की तैयारी में आदिवासी समुदाय जुट गए हैं. गांवों में मिट्टी के रंगों का अनोखा संसार दिखने लगा है. घरों की दीवारों व जमीन पर तरह-तरह की कलाकृतियां बनाए जा रहे हैं. संथाली समाज अपने सबसे बड़े त्योहार सोहराय की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं. हर गांव की गलियां माटी और गोबर की लेप से चमकने लगी है. युवतियां दीवारों पर माटी के लेप में रंगों की कलाकृतियां बनाकर सजा रही हैं. गालूडीह के सुसनीगाड़िया, सिदाडांगा, हुपुडीह, सुन्दरकानाली, निश्चिन्तपुर, गिधिबिल, केशरपुर आदि आदिवासी बहुल गांवों की चमक अभी देखते बन रही है.
पूस महीने में मकर संक्रांति से पहले होता है सोहराय
विदित हो कि संथाली समाज द्वारा सोहराय को हाथी लेकान परोब कहा जाता है. यानी त्योहारों में यह सबसे बड़ा है. सोहराय पूस महीने में मकर संक्रांति से पहले होता है. तीन दिन तक आदिवासी समाज के लोग इसके उत्सव में डूबे रहते हैं. वहीं, संथाली समाज सोहराय में प्रकृति के साथ घर की लक्ष्मी यानी अपनी बहन की पूजा करते हैं. यह देश का इकलौता त्योहार है, जिसमें बहनों को अपने भाई के घर अनिवार्य रूप से आना होता है.
पहले दिन गोड़ टंडी में पूजा से होती है त्योहार की शुरुआत
इसके लिए हर भाई त्योहार शुरू होने से एक दिन पहले अपनी बहनों के घर जाकर उसे आदर पूर्वक आमंत्रण देते हैं. फिर बहन के पहुंचते ही घर में तीन दिनों का त्योहार शुरू हो जाता है. साथ ही बहनों को नए कपड़ा और उपहार दिए जाते हैं. घर में भाई ही बहन की पूजा की रस्म पूरी करता है. वहीं, रात को स्वादिष्ट भोजन के साथ देर रात तक परंपरागत नाच-गान का कार्यक्रम चलता है. त्योहार की शुरुआत पहले दिन गोड़ टंडी में पूजा से होती है.