रांची में एक ऐसा मंदिर जहां रावण की भगवान शिव के साथ होती है पूजा

दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. पूरे देश में रावण दहन अलग-अलग तरीके से किया जाता है.

Update: 2022-10-05 02:50 GMT

न्यूज़ क्रेडिट : lagatar.in

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. पूरे देश में रावण दहन अलग-अलग तरीके से किया जाता है. लेकिन राजधानी रांची से महज 17 किमी दूर पिठोरिया गांव में एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ-साथ रावण की भी पूजा की जाती है. यूं कहे तो जहां एक तरफ रावण को बुराई का प्रतीक समझकर पुतला दहन किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ भगवान भोलेनाथ के साथ रावण की भी पूजा की जाती हैं. मंदिर के पुजारी का कहना है कि रावण भोलेनाथ का परम भक्त था. इस वजह से उनकी भी पूजा इस मंदिर में की जाती है.

400 सौ पुराना मंदिर होने का दावा
मंदिर के पुजारी अवध मिश्रा ने बताया कि इस मंदिर में चार पीढ़ियों से उनके पूर्वज पूजा करते आ रहे हैं. इस मंदिर को बने हुए लगभग 400 साल हो चुके हैं. मंदिर की बाहरी दीवारों से लेकर अंदर तक कई देवी-देवताओं की मूर्ति बनी हुई है. मंदिर के अंदर शिवलिंग, नाग, देवी पार्वती, ब्रह्मा, गुरुड़ आदि की मूर्ति स्थापित हैं. पुजारी ने कहा कि रावण बहुत बड़े ज्ञानी और विद्वान थे और जब भगवान शिव गृह प्रवेश कर रहे थे तो रावण ने ब्राह्मण का रूप लेकर उनका गृह प्रवेश करवाया था.
ज्ञानी और शिवभक्त था रावण
रावण की जब भी बात आती है तो उसे हमेशा बुराइयों का प्रतीक समझा जाता है. यही कारण है कि विद्वान होने के बावजूद, उसकी अच्छाइयों को कम और बुराइयों को ज्यादा याद किया जाता है. रावण में लाख बुराइयों के बावजूद रावण में एक खासियत भी थी, वो बड़ा ज्ञानी और शिवभक्त था. इसी कारण इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ रावण की भी पूजा होती है.
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