Shimla,शिमला: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि "पासपोर्ट प्राप्त करना तथा विदेश यात्रा का अधिकार एक महत्वपूर्ण बुनियादी मानव अधिकार है तथा इस तरह के अधिकार से वंचित करना मनमाने, अन्यायपूर्ण तथा दमनकारी तरीके से नहीं होने दिया जा सकता"। न्यायालय ने यह निर्णय एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पासपोर्ट प्राधिकरण इस आधार पर उसका पासपोर्ट नवीनीकृत नहीं कर रहा है कि उसके खिलाफ एक एफआईआर लंबित है। न्यायमूर्ति रंजन शर्मा ने पासपोर्ट प्राधिकरण, शिमला को FIR-आपराधिक मामले की लंबितता को ध्यान में रखे बिना कानून के अनुसार शीघ्रता से याचिकाकर्ता का पासपोर्ट नवीनीकृत करने का निर्देश देते हुए कहा कि "पासपोर्ट का नवीनीकरण न करना या नवीनीकरण को रोकना याचिकाकर्ता को केवल आरोप-संदेह के आधार पर दंडित करने के समान है, जिसे अभी परीक्षण के दौरान साबित किया जाना है।"
न्यायमूर्ति रंजन शर्मा ने कहा कि "जब राज्य प्राधिकारियों या पासपोर्ट प्राधिकारियों ने ऐसी कोई प्रतिकूल परिस्थिति नहीं बताई है कि पासपोर्ट के नवीनीकरण और विदेश जाने के अधिकार से राज्य की सुरक्षा को नुकसान पहुंचेगा, तो नवीनीकरण न करना मनमाना है।" न्यायालय ने कहा कि "पासपोर्ट के नवीनीकरण और विदेश जाने के अधिकार के दायरे में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका कमाने और मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है और बिना किसी ठोस सबूत के पासपोर्ट के नवीनीकरण को रोकने या अस्वीकार करने में प्रतिवादियों की निष्क्रियता निश्चित रूप से दमनकारी और मनमाना है। न्यायालय ने पासपोर्ट प्राधिकारियों को आदेश प्राप्त होने के तीन सप्ताह के भीतर पूरी प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश देते हुए याचिकाकर्ता पर कुछ शर्तें भी लगाईं और उसे अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण के बाद विदेश जाने से पहले संबंधित ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 75,000 रुपये का निजी बांड और इतनी ही राशि का एक स्थानीय जमानतदार जमा करने का निर्देश दिया।