शिमला: उत्तर पुस्तिका गुम होने पर अब दोबारा से परीक्षा देने की जरूरत नहीं है। प्रदेश हाई कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के ऑर्डिनेंस 6.67 को अनुचित ठहराते हुए खारिज कर दिया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि उत्तर पुस्तिका गुम होने की स्थिति में छात्र को आनुपातिक भागफल के हिसाब से नंबर दिया जाना उचित है। इस हिसाब से छात्र को अन्य विषयों में प्राप्त अंकों का अनुपात लगाकर गुम हुई उत्तर पुस्तिका वाले विषय में माक्र्स दिए जाते हैं। कोर्ट ने बीएड छात्र नेहर सिंह की याचिका को स्वीकारते हुए यह आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि विश्विद्यालय द्वारा उत्तर पुस्तिका गुम होने की स्थिति में छात्र को उस विषय की पुन: परीक्षा देने के लिए बाध्य करता है। इस बाध्यता को तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता क्योंकि छात्र पहले ही उक्त परीक्षा दे चुका होता है और उत्तर पुस्तिका गुम होने में उसका कोई कसूर नहीं होता।
मामले के अनुसार प्रार्थी ने अगस्त 2022 में बीएड के चौथे सेमेस्टर की परीक्षा दीन दयाल महेश पब्लिक कालेज ऑफ एजुकेशन सुघ भटौली जिला कांगड़ा के छात्र के तौर पर दी थी। 22 अगस्त, 2022 को विवि ने परिणाम घोषित किया परंतु एक विषय में प्रार्थी का परिणाम आरएलए (रिजल्ट लेट डियू टू अवार्ड) बताया गया। प्रार्थी द्वारा छानबीन करने पर बताया गया कि उसकी उत्तर पुस्तिका विश्वविद्यालय द्वारा प्राप्त नहीं की गई है। विश्विद्यालय ने यह भी बताया कि उसके संस्थान ने उत्तर पुस्तिका भेजी ही नहीं। विश्वविद्यालय और संस्थान एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहे जिस कारण प्रार्थी को हाईकोर्ट के दरवाजा खटखटाना पड़ा। विश्वविद्यालय ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ऑर्डिनेंस 6.67 के अनुसार ऐसी परिस्थिति में केवल प्रार्थी को एक और मौका देकर फिर से परीक्षा देने का मौका दिया जा सकता है।