बंजार। फाल्गुन मास के आरंभ होते ही बुधवार को उपमंडल बंजार के करीब एक दर्जन से ज्यादा गांवों में पुरातन फागली उत्सव का आरंभ हो गया है। इस पर्व में विशेष लोग मुंह में मुखौटे डालकर नृत्य करते हैं और इस पर्व को मनाने के लिए लोग एक विशेष घास को धारण करते हैं, जिसे सरूली कहा जाता है। इसे विशेष घास तथा मुखौटे को पहनकर के विशेष स्थान पर नृत्य किया जाता है। यह पर्व लक्ष्मीनारायण देवता के लिए समर्पित है। यह पर्व उन स्थानों में मनाया जाता है, जहां पर देवता लक्ष्मीनारायण और नाग देवता वास करते हैं। विशेषकर इस पर्व को मनाने के लिए लोग कई दिनों से तैयारियों में जुट जाते हैं और इस पर्व में जो विशेष मुखौटा होता है उसे राणा कहा जाता है। इसे पहनने वाला नृत्य में सबसे आगे चलता है और उसके साथ अन्य लोग मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। कहा जाता है कि इस नृत्य करने व देखने से लोगों के कई पाप कट जाते और मनोकामना पूर्ण होती है तथा क्षेत्र में धन धान्य अनेक प्रकार की समृद्धि या तथा यश बढ़ता है। देव समाज से जुड़े हुए लोग बालक राम, कुंजलाल राणा, गोपाल सिंह,विश्व देव शर्मा, शेर सिंह,गंगाधर, वेद प्रकाश, गोविंद राम, लीलाधर, हर्षित, हर्षवर्धन व प्रवीण कुमार आदि का कहना है कि यह पर्व सैंकड़ों वर्षों से मनाते आ रहे हैं।
इस पर्व में लक्ष्मीनारायण स्वरूप मुखौटे को धारण करके और विशेष घास को पहन कर गांव में लोगों के घर जाते हैं और उन्हें आशीर्वाद दिया जाता है और अंत में सभी लोग बाजे-गाजे व लाव लश्कर के साथ देवता के एक विशेष स्थान पर पहुंचते और वहां पर नृत्य करते हैं। बुधवार को यह पुरातन परंपरा का निर्वहन ग्राम पंचायत कोठीचैहनी के गांव बीनी, चेहणी, बेहलो, घाट पुजाली, देओठा तथा अन्य गांव में इस परंपरा का निर्वहन किया गया। वहीं पर इस परंपरा का निर्वाह बंजार आदि क्षेत्रों में यह पर्व 4 दिन तक चलता है। इस 3 दिवसीय फागली उत्सव में परिवार के कुछ चयनित पुरुष सदस्य अपने अपने मुंह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते हैं तथा 3 दिन तक हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे बाजे के साथ करते हैं तथा अंतिम दिन देव पूजा-अर्चना के पश्चात देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इसमें अश्लील गीतों के साथ गालियां देकर अश्लील हरकतें भी की जाती हैं। वहीं पर इस मौके पर बेहलो व चहनी तथा अन्य क्षेत्रों में बीहट का कार्यक्रम किया गया। यह बीहट मोहिनी अवतार के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर बीहट को सजाया जाता है और उसे एक विशेष स्थान में लाकर विशेष आदमी द्वारा फैंका जाता और जो इस बीहट के नरगिस फूल को पकड़ता है। उसकी 1 वर्ष में मनोकामना पूर्ण होती है। इस अवसर पर भी अश्लील गालियां दी जाती हैं और इसका भाव है कि क्षेत्र से बुरी आत्माओं को भगाया जाता है।