कुमारहट्टी में बेतरतीब निर्माण से जुड़े मामले पर उपायुक्त सोलन की अध्यक्षता में टीम गठित, पहाड़ों पर भवन निर्माण की जांच करेगी कमेटी

प्रदेश हाई कोर्ट में पहाड़ों पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण से जुड़े मामले पर हुई सुनवाई के दौरान बताया गया कि कुमारहट्टी के समीप बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की जांच के लिए संयुक्त कमेटी का गठन किया गया है।

Update: 2022-09-28 04:57 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। प्रदेश हाई कोर्ट में पहाड़ों पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण से जुड़े मामले पर हुई सुनवाई के दौरान बताया गया कि कुमारहट्टी के समीप बहुमंजिला इमारतों के निर्माण की जांच के लिए संयुक्त कमेटी का गठन किया गया है। अतिरिक्त उपायुक्त सोलन की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता, जिला वन अधिकारी और टाउन एंड कंट्री प्लानर को इसका सदस्य बनाया गया है। अदालत को बताया गया कि इस कमेटी का गठन 20 सितंबर को किया गया था। अदालत को यह भी बताया गया कि कुमारहट्टी क्षेत्र को नजदीकी प्लानिंग क्षेत्र में मिलाए जाने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि इस बारे मंत्रिमंडल की ओर से अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

बड़ोग क्षेत्र नजदीक होने के कारण कुमारहट्टी को साडा बड़ोग में विलय करने की संभावना भी तलाशी जा रही है। उल्लेखनीय है कि पहाडिय़ों पर बेतरतीब व अवैध निर्माणों के मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से जवाब शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश दिए थे। मुख्य न्यायाधीश एए सैयद और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने पहाड़ों पर अवैध निर्माणों के मुद्दे को अतिमहत्त्वपूर्ण और गंभीर बताया। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिए थे कि वह अपने जवाब शपथ पत्र में यह भी स्पष्ट करे कि प्रदेश की कौन सी अथॉरिटी ने सोलन जिला के गांव खील झालसी से कोरों गांव को मिलाकर कैंथरी गांव तक के छह किलोमीटर की सडक़ के दोनों तरफ बहुमंजिला इमारतों को बनाने की अनुमति प्रदान की है। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया था कि ऐसे बेतरतीब और अंधाधुंध निर्माणों को रोकने के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है। कोर्ट का मानना था कि पर्यावरण दृष्टि से संवेदनशील इलाके में यह इमारतें पहाड़ों को काटकर बनाई गई प्रतीत होती है। प्रार्थी कुसुम बाली ने याचिका में यह भी बताया है कि यह निर्माण गैरकानूनी है। इनसे पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं। कोर्ट ने प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी पहाड़ों को काटकर इन अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माणों को रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों से अवगत करवाने के आदेश भी मुख्य सचिव को दिए थे।
पूर्व न्यायाधीश डीपी सूद के निधन पर शोक
शिमला । प्रदेश के पूर्व न्यायाधीश डीपी सूद के आकस्मिक निधन पर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने शोक जताया है। मंगलवार को हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने अदालती कार्रवाई से अपने आप को अलग रखा। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। सोमवार को उनका निधन हुआ था। सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीपी सूद का जन्म 31 मार्च, 1933 को शिमला में हुआ था। उनका पैतृक गांव टिहरी परागपुर जिला कांगड़ा था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा डीएवी शिमला से प्राप्त की थी। कानून की पढ़ाई जालंधर से पूरी करने के बाद उन्होंने वर्ष 1956 में सुंदरनगर में बतौर अधिवक्ता वकालत शुरू की। वर्ष 1968 में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। उन्होंने कानून की लगभग हर शाखा में अभ्यास किया। उन्हें वर्ष 1978 में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। जून 1990 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप मेें पदोन्नत किया गया।

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