वन संरक्षण संशोधन विधेयक का विरोध

Update: 2023-07-25 12:00 GMT

चंडीगढ़ न्यूज़: संसद में वन संरक्षण संशोधन विधेयक को पेश किए जाने की संभावनाओं के साथ विधेयक का विरोध कर रहे पर्यावरण विदों ने अपने प्रदर्शन तेज कर दिए हैं. उत्तर पश्चिम भारत की जीवन रेखा के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने के लिए नागरिकों ने दिल्ली के अरावली जंगल में, हरियाणा में गुरुग्राम, दक्षिणी राजस्थान के पाली जिले में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया.

अरावली से जुड़े सभी राज्यों के पर्यावरण विदों की मांग है कि सरकार वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 को उसके मौजूदा स्वरूप में रद्द कर दे क्योंकि अरावली के बड़े हिस्से को संभावित रूप से बिना किसी नियामक निरीक्षण के बेचा, हटाया, सा़फ किया जा सकता है यदि नया संशोधन विधेयक पारित हो जाता है.

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन के संस्थापकों का कहना है कि इस विधेयक के प्रभाव विनाशकारी होंगे, देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग 25 प्रतिशत इस अधिनियम से अपनी सुरक्षा खो देगा. इको-पर्यटन और चिड़ियाघरों से संबंधित बुनियादी ढांचे को भी मंजूरी प्रक्रिया से छूट मिल जाएगी. इसको लेकर तीन दिन पहले ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान भी चलाया गया था.

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने कहा कि यह अनुमान लगाया गया है कि भारत भर में लगभग 39,063 हेक्टेयर वन, उपवनों के अंतर्गत हैं, जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा वनों के रूप में संरक्षित और प्रबंधित किया जाता है, भले ही वे वर्तमान में वनों के रूप में अधिसूचित नहीं हैं. फरीदाबाद में मांगर बनी का पुरातन जंगल पहाड़ के रूप में दर्ज है और हरियाणा द्वारा जंगल के रूप में मान्यता की प्रतीक्षा कर रहा है.

एफसीए संशोधन विधेयक 690 किलोमीटर लंबी अरावली शृंखला सहित पूरे भारत में ऐसी भूमि को नष्ट कर देगा. हरियाणा अरावली की 50,000 एकड़ जमीन भी खतरे में है. अरावली की भूमि उपयोग की गतिशीलता के आकलन पर राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 1975 से 2019 तक 44 वर्षों की अवधि में, अरावली में जंगलों में 7.6 प्रतिशत की कमी आई है .

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