हरियाणा Haryana : अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम (एबीवीकेए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने देशभर के आदिवासी समाज से आह्वान किया कि वे अपना खुद का नैरेटिव बनाएं कि 'अरण्य संस्कृति' ही उनके समाज की मूल संस्कृति है। उन्होंने समाज को उन ताकतों से भी आगाह किया जो समाज को बांटने की कोशिश कर रही हैं। एबीवीकेए अध्यक्ष ने कहा, 'हम सबकी जड़ें जंगलों में हैं। वेदों की रचना में भी वनवासी समाज की अहम
भूमिका रही है। सभी आदिवासी समाज के त्योहार और पूजा पद्धतियां सनातनी परंपराओं से मिलती-जुलती हैं।' उन्होंने कहा कि बांटने की साजिश अंग्रेजों ने रची थी, जिन्होंने इतिहास को तोड़-मरोड़कर किताबों के जरिए गढ़ा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज संग्रह करने वाला नहीं है, वह प्रकृति से उतना ही लेता है, जितनी उसे जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि ऐसे आदिवासी समाज के अस्तित्व को बचाना हम सबका कर्तव्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक (प्रमुख) मोहन भागवत, जशपुर क्षेत्र के बिरहोर जनजाति के पद्मश्री जागेश्वर भगत और अन्य आदिवासी समुदाय के नेता समालखा के पट्टी कल्याण में सेवा साधना केंद्र में आयोजित तीन दिवसीय "अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन, समावेत-2024" के लिए एकत्र हुए थे।