कामकाजी आबादी में बढ़ोतरी, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट

Update: 2023-05-10 08:26 GMT

चंडीगढ़ न्यूज़: पिछले एक दशक के दौरान देश में कामकाजी आबादी में बढ़ोतरी हुई है, जबकि निर्भरता दर में कमी आई है. वर्ष 2011 में यह दर करीब 65 फीसदी थी, जो कि 2021 में 55 फीसदी रह गई. 2036 तक 54 फीसदी निर्भरता दर होने का अनुमान है. यानी सौ कमाने वाले लोगों पर कुल 54 बच्चे और बुजुर्ग ही निर्भर रहेंगे.

कार्यशील आबादी में बढ़ोतरी सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा हाल में एक रिपोर्ट ‘भारत में स्त्रत्त्ी-पुरुष 2022’ जारी की गई है. इसमें कहा गया है कि कामकाजी आबादी (15-59 साल) में लगातार बढ़ोतरी का दौर जारी है. इससे सामाजिक एवं आर्थिक फायदे हैं. देश में बुजुर्गों की आबादी में इजाफे के बावजूद कार्यशील आबादी बढ़ने से लगातार निर्भरता दर बढ़ने की बजाय घट रही है.

कैसे कम हो रही निर्भरता दर 2011 में 15-59 आयु वर्ग जिसे कामकाजी समूह माना जाता है उसकी संख्या 73.5 करोड़ थी. यह कुल आबादी का 60.7 फीसदी हिस्सा था. लेकिन, 2036 में यह समूह 98.85 करोड़ हो जाएगा और इस प्रकार 64.9 फीसदी आबादी कामकाजी सूमह में होगी. यानी कार्य करने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी और उन पर निर्भर रहने वालों की घटेगी.

फीसदी रह जाएगी 2036 तक निर्भरता

15

54

2011 64.6 फीसदी 50.8 13.8

2021 55.7 फीसदी 40 15.7

2036 (अनुमान) 54 फीसदी 31 23

कामकाजी आयु वालों की श्रेणी संयुक्त राष्ट्र से अलग

संयुक्त राष्ट्र के निर्भरता दर को लेकर जो मानक हैं, उनमें कामकाजी आयु वर्ग को 15-64 वर्ष माना जाता है, जबकि भारत में यह 15-59 वर्ष है. यदि यूएन के मानकों को आधार माना जाए तो भारत में निर्भरता दर घटकर 49 फीसदी तक आ गई है.

देश निर्भरता दर

चीन 42

रूस 51

ब्रिटेन 57

अमेरिका 53

(संयुक्त राष्ट्र मानकों के अनुसार, में)

क्या है निर्भरता दर

निर्भरता दर का सीधा अर्थ यह है कि प्रति 100 लोगों पर कितने लोग निर्भर हैं.

दर कम होने के मायने ●

● निर्भरता दर जितनी कम होगी, उतनी ही अर्थव्यवस्था और सामाजिक संकेतक बेहतर होंगे.

● इससे सामाजिक योजनाओं पर होने वाले सरकारी खर्च में कमी आती है.

● इससे आर्थिक फायदे होते हैं. परिवार पर निर्भर लोगों की कमी होने से संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होता है.

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