Chandigarh: मां से बेहतर नहीं पिता का प्यार: हाईकोर्ट

Update: 2024-08-30 08:20 GMT

चंडीगढ़: एक महिला द्वारा अपने ढाई साल के बच्चे की कस्टडी की मांग को लेकर दायर याचिका पर टिप्पणी करते हुए पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि एक पिता का प्यार मां के प्यार से बेहतर नहीं हो सकता. इस टिप्पणी के साथ हाई कोर्ट ने बच्ची की कस्टडी उसकी मां को सौंपने का निर्देश दिया है.

अंबाला निवासी एक महिला ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर आरोप लगाया कि उसके ढाई साल के बेटे को उसके पति ने अवैध रूप से हिरासत में रखा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे उसके पति और ससुराल वालों द्वारा परेशान किया जा रहा था और इस वजह से वह मई में अपने बेटे के साथ ससुराल छोड़कर अपने मामा के घर चली गई। 26 जून को उनका बेटा लापता हो गया। सीसीटीवी फुटेज की जांच करने पर पता चला कि याचिकाकर्ता का पति बेटे को अवैध तरीके से ले गया है. पति के खिलाफ बेटे के अपहरण की प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी थी.

हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंपने का आदेश नहीं दिया है. इसलिए आदेश के अभाव में कम उम्र में बच्चे की कस्टडी पिता के पास रखना कानूनी नहीं माना जा सकता.

हाई कोर्ट ने कहा कि मां का प्यार त्याग और समर्पण की परिभाषा है. दो-तीन साल की उम्र में बच्चे और मां के बीच का रिश्ता पिता के साथ के रिश्ते से भी ज्यादा बढ़ जाता है। हालाँकि अपने बच्चे के प्रति पिता की भावनाएँ हमेशा प्रबल होती हैं, लेकिन इस कम उम्र में वे माँ की भावनाओं से बड़ी नहीं हो सकतीं। जिस बच्चे को माँ का प्यार नहीं मिलता वह अपने जीवन में लापरवाह हो सकता है। इतनी कम उम्र में माँ के प्यार का कोई विकल्प नहीं है। इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने पुलिस को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अंबाला या जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा नामित किसी अधिकारी की उपस्थिति में नाबालिग बच्चे की हिरासत तुरंत पिता से याचिकाकर्ता-मां को सौंप दी जाए। 

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