फ्रंट की जमीन हथियाने भू-स्वामी पर दवाब बना रहा बिल्डर

Update: 2022-10-20 05:58 GMT

भू-माफिया और बिल्डरों को अवैध कब्जे और भूस्वामियों के साथ फर्जीवाड़े की खुली छुट

बेजा कब्जाधाधियों को लाभ पुहंचाने ले-आउट के विपरीत किया गया निर्माण

570/71 खसरा का अवैध कब्जा आज तक नहीं हटाया

रसूखदारों के दबाव में जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट का निर्देश भी नहीं माना

रसूखदारों को लाभ दिलाने सड़क निर्माण में हुई गड़बड़ी

बड़े पैमाने पर सरकारी जमीन की बंदरबाट

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। बिल्डर और तथाकथित भूमाफिया ने अपनी पीछे की जमीन को आगे लाने के लिए नए-नए हथकंडे अपनाने का नया खेल शुरू किया है। बिल्डर माफिया मीडिया घराने की भूमि पर एनकेन किसी भी तरह कब्जा करना चाहता है। जनता से रिश्ता अखबार के दफ्तर की परिवर्तित भूमि जिस का नक्शा पास है उस संपत्ति पर भूमाफिया की बुरी नजर है। बिल्डर कीमती भूखंड होने के कारण अपने पीछे की जमीन आगे लाना चाहता है। बिल्डर को किसी प्रकार का भय और डर नहीं कानून का डर नहीं है और वह गुंडागर्दी पर उतारू है। बिल्डर पर राजधानी की पुलिस किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई करने से बच रही है। शायद पुलिस को अपराध दर्ज करने 307 या 302 होने का इंतजार है। अखबार प्रबंधन ने सभी संबधित जगहों पर शिकायत दर्ज कराई है वाबजूद विल्डऱ पर कोई कार्रवाई नही हो रही है।

खम्हारडीह में खसरा 570 के अवैध कब्जे बरकरार

खम्हारडीह में खसरा क्रमांक 570 का अवैध कब्जा आज तक हटाया नहीं जा सका है। कई वर्षों तक 37 एकड़ यह जमीन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज थी, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य गठन के दौरान वर्ष 2001 में लगभग यह जमीन अचानक निजी हाथों में चली गई. जमीन के बड़े हिस्से पर रसूखदारों के बंगले, इमारते, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और फ़्लैट बन गए। सरकारी जमीन की बड़े पैमाने पर बंदरबाट की गई। हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रशासन ने जांच तो की लेकिन रसूखदारों के दबाव में अदालत की आंखों में धूल झोंकने के लिए कई ऐसे तथ्यों पर पर्दा डाल दिया जिससे रसूखदार अवैध कब्जाधारी बेदखली से बच सके. दरअसल जांच में शामिल पटवारियों ने 37 एकड़ जमीन पर खसरा मिटाने में गोलमाल किया. उन्होंने खम्हारडीह और मुख्य सड़क से लगी जमीन को खसरा नंबर 570 और 571 में बैठा दिया। नतीजतन सरकारी जमीन भी निजी जमीन में शामिल होकर निजी हो गई।

नक्शे और ले-आउट के विपरीत सड़का का निर्माण

एमआर सड़क का निर्माण स्वीकृत नक्शे और ले-आउट के विपरीत अवैध कब्जाधारियों को लाभ पहुंचाने के लिए कतिपय लोगों ने करवाया जिसमें संबंधित विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ जमीन माफिया का अहम रोल रहा है। सड़क खसरा क्रमांक 570 और 571 से होकर गुजरती है जिसके लगभग 37 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है जिसे हटाने के लिए हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को निर्देश दिया था जिस पर आज तक अमल नहीं किया गया। एक ओर सरकारी विभागों और जमीन माफिया की मिलीभगत से बेजा कब्जाधाधियों को लाभ पुहंचाने सड़क का नियम व ले-आउट के विपरीत निर्माण किया गया वहीं अब ओवरब्रिज के निर्माण से भी उन्हीं अवैध कब्जाधारियों को मुआवजे का लाभ भी मिलेगा।

अवैध कब्जा हटाने का हाईकोर्ट ने दिया था निर्देश

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2017 में रायपुर के शंकर नगर इलाके में 37 एकड़ जमीन कब्जाधारियों से वापस लेने के निर्देश प्रशासन को दिए थे। कोर्ट ने कब्जाधारियों से छह माह के भीतर यह सरकारी जमीन खाली करने के लिए कहा था। स्थानीय निवासी खैरूनिशा फरिश्ता ने अपने अधिवक्ता के जरिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इस याचिका में शंकर नगर के खसरा नबर 570 और 571 के जमीन पर बेजा लोगों के द्वारा कब्ज़ा किये जाने की शिकायत की गई थी। मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद ही वैधानिक दस्तावेजों और उसमें निहित तथ्यों के आधार पर अदालत में सरकारी जमीन पर अवैध कब्ज़ा पाया। मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने जमीन के जांच के आदेश देने के साथ ही स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के निर्देश प्रशासन को दिए थे। प्रशासन के द्वारा अदालत में रिपोर्ट पेश की गई थी। सब डिविजनल मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई रिपोर्ट में कहा गया था कि कुछ निजी लोगों को यह जमीन संयुक्त मध्य प्रदेश के दौरान प्रशासन ने एलॉट की थी। रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई है कि पूर्व में यहां बड़े और छोटे झाडिय़ों का जंगल था। मामले की सुनवाई के उपरांत हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस व जस्टिस शरद गुप्ता ने यह फैसला दिया कि अब इस जमीन को सरकार वापस ले ले। अदालत ने जमीन आवंटन की प्रक्रिया को गलत पाया। यही नहीं, आवंटन प्रक्रिया के दौरान कई क़ानूनी औपचारिकताएं भी पूरी नहीं पाई गईं। लिहाजा कोर्ट ने 6 महीने के भीतर इस जमीन को वापस लेने का निर्देश दिया था।

5 एकड़ जमीन का कोई हिसाब-किताब नहीं

जांच के बाद प्रशासन द्वारा सीमांकन की कार्रवाई के बाद तैयार फाइनल रिपोर्ट में रसूखदारों का दबदबा साफतौर पर दिखा। 37 एकड़ जमीन में से पांच एकड़ जमीन का कोई हिसाब- किताब रिपोर्ट में ही दर्ज नहीं है. 37 एकड़ जमीन के दो अलग- अलग खसरों में सिर्फ 35 लोगों के नाम दर्ज है। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि नक्शे और खसरे जमीन में अंतर है। जितनी जमीन खसरे में दर्ज है उससे ज्यादा जमीन नक्शे में दिखाई दे रही है। जांच रिपोर्ट में 1917 से लेकर अब तक के दस्तावेज जमा किए गए है. लेकिन ये दस्तावेज पूरे नहीं है। इसका मकसद कुछ एक कब्ज़ा धारियों को लाभ दिलाना है। आधी अधूरी रिपोर्ट तैयार कर प्रशासन ने अपना पल्ला झाड़ लिया।

अब तक जमीन खाली नहीं हुई

बिलासपुर हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन द्वारा प्रस्तुत जांच रिपोर्ट के बाद छह महीने के भीतर अवैध कब्जा हटाने का निर्देश दिया था लेकिन आज पर्यन्त उक्त आदेश पर जिला प्रशासन ने अमल नहीं किया है। जाहिर है जिला प्रशासन जमीन माफिया और रसूखदारों के दबाव में है जिसके चलते कोर्ट के आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया गया।

राजस्व बढ़ाने की नई कार्य योजना तैयार  

सरकार ने मांगी खाली पड़ी जमीनों की जानकारी

प्रदेश के सरकारी विभागों के साथ निगम, मंडल, आयोग औैर कंपनियों की खाली पड़ी जमीनों से राज्य का संसाधन तथा राजस्व बढ़ाने की नई कार्य योजना तैयार की गई है। ऐसी जमीनों पर भवन, कॉम्पलेक्स और अन्य उपयोगी चीजें बनाकर उसका रिडव्हलपमेंट किया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी चार अलग-अलग एजेंसियों को दी गई है। जबकि आवास एवं पर्यावरण विभाग को इस योजना का नोडल विभाग बनाया गया है।

तीन स्तर पर परीक्षण करने के बाद जमीन का आवंटन निजी या सरकारी एजेंसियों को किया जाएगा। दरअसल नगरीय प्रशासन विभाग ने प्रदेश के सभी विभागों, निगम, मंडल, आयोगों, कंपनी औैर बोर्ड के स्वामित्व की अनुपयोगी सरकारी जमीनों के व्यवस्थित विकास औैर सदुपयोग के लिए रिडव्हलपमेंट के लिए चि_ी भेजी है। इसके तहत ऐसी जमीनों, भवनों औैर परिसरों की जानकारी मांगी गई है जो विभागीय गतिविधियों के लिए उपयोगी नहीं है। विभागीय अफसरों का कहना है कि शहरी क्षेत्र की ऐसी जमीनों के विकास के लिए यह बेहद जरूरी है।

शासकीय भवन, संरचना एवं परिसर के निर्माण के बाद शुरू के तीन साल तक शासन द्वारा कोई भी राशि खर्च नहीं की जाएगी। निर्माण में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी होने पर उसे दूर करने, मरम्मत करने की जिम्मेदारी निर्माण एजेंसी पर होगी। इसके लिए निर्माण एजेंसी से पांच साल तक के लिए परफार्मेंस गारंटी ली जाएगी। रिडव्हलपमेंट योजना में आर्थिक रुप से कमजोर तथा निम्न आय वर्ग के लिए भूखंड, मकानों की उपलब्धता कराना जरूरी होगा। इसके तहत शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के लिए अधिनियमों, नियमों में संशोधन के बाद छूट प्रदान की जाएगी। कमजोर लोगों को आवास के लिए एक रुपए में जमीन उपलब्ध कराई जाएगी। पीपीपी के प्रकरणों में लाइसेंस के आधार पर रजिस्ट्री के माध्यम से टेंडर किया जाएगा।

जमीनों का बेहतर उपयोग के लिए समितियों का गठन

इसके लिए तीन अलग-अलग समितियां गठित की गई हैं। जिसमें राज्य स्तरीय समन्वय समिति में आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव या भारसाधक संयोजक सचिव होंगे तथा राजस्व, वित्त, पीडब्ल्यूडी, विधि एवं विधायी कार्य संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव के साथ ही कलेक्टर औैर विभागाध्यक्ष इसके सचिव होंगे। राज्य स्तरीय परियोजना समिति और जिला स्तरीय परियोजना समिति भी गठित की जाएगी जिसमें संबंधइत विभाग के अफसर शामिल होंगे। में पीडब्ल्यूडी के कार्यपालन यंत्री संयोजक सदस्य होंगे तथा नगर तथा ग्राम निवेश के उप संचालक स्तर के अफसर ,एसपी , निगम आयुक्त तथा संबंधित विभाग के प्रमुख इसके सचिव होंगे।

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