रायपुर: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महासचिव तारिक अनवर (Tariq Anwar) छत्तीसगढ़ दौरे पर रायपुर आ रहे है. जानकारी के मुताबिक केरल और लक्षद्वीप के कांग्रेस इंचार्ज तारिक अनवर 14 से 15 दिसंबर तक प्रदेश के दौरे पर रहेंगे. जहां वे राजधानी में कौमी तंजीम के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे. कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर 14 दिसंबर की शाम में रायपुर पहुंचेंगे.
कौन हैं तारिक अनवर
16 जनवरी 1951 को पटना में जन्मे तारिक अनवर ने सियासत में बहुत कम उम्र में ही कदम रख दिया था. महज 25 वर्ष की उम्र में 1976 में उन्हें बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. यह जिम्मेदारी तब ज्यादा चुनौतीपूर्ण इसलिए थी क्योंकि देश का युवा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के कंधे पर सवारी कर रहा था. वहीं बिहार छात्र आंदोलन का केन्द्र भी बना हुआ था. जार्ज फर्नांडीज जैसे फायरब्रान्ड नेता और चंद्रशेखर जैसे युवा तुर्क छात्रों के आदर्श बने हुए थे. यह छात्र आंदोलन के चरमोत्कर्ष का दौर था. इस दौरान इमरजेन्सी लग चुकी थी. जाहिर है कांग्रेस के विरोध में खड़ी युवा पीढ़ी को कांग्रेस से जोड़ने में जब संजय गांधी और रूखसाना सुल्ताना (फिल्म अभिनेत्री अमृता सिंह की मां और लेखक खुशवंत सिंह की देवरानी) जैसे लोग नाकाम रहे तो तारिक अनवर की भला क्या बिसात थी. इसी दौर में बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष चचा सीताराम केसरी हुआ करते थे. सीताराम केसरी की बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र से एकदम नहीं बनती थी. डॉ जगन्नाथ मिश्र को उनके बड़े भाई ललित नारायण मिश्र की हत्या के समय मुख्यमंत्री रहे अब्दुल गफुर को हटाकर मुख्यमंत्री बनाया गया था. गफुर साहब की ईमानदारी के कायल जयप्रकाश नारायण भी थे लेकिन एक तथ्य ये भी था कि जेपी पर लाठी भी गफुर सरकार ने ही चलवाई थी.
जब जगन्नाथ मिश्र और सीताराम केसरी का विवाद बढ़ा तो तारिक अनवर ने सीताराम केसरी का साथ दिया. 1978 में जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष स्वर्ण सिंह ने इन्दिरा गांधी को कांग्रेस से निकाल दिया, तो इंदिरा ने एक नई पार्टी खड़ी कर दी. उसे कांग्रेस (आई) या इन्का भी कहा जाता था. उस वक्त तारिक अनवर के मेंटर सीताराम केसरी दिल्ली में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बनाए गए. 1980 के चुनाव में संजय गांधी और सीताराम केसरी की बदौलत तारिक अनवर को चुनाव लड़ने के लिये पटना से 300 किलोमीटर दूर कटिहार की लोकसभा सीट दी गई. इतनी दूर जाकर लड़ने में तारिक सकपकाए जरूर लेकिन चुनाव लड़े और फिर जीत हासिल की. बिहार प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष (अब इन्का की युथ विंग) के रूप में तारिक अनवर का कार्यकाल 1981 तक रहा. संजय गांधी की मौत के बाद तारिक अनवर राजीव गांधी के करीबी हो गए. इसी दौर में युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष (1982-85) भी बना दिए गए.
तारिक ने ही शुरू की थीं शाही इफ्तार पार्टियां
आजकल दिल्ली में जो शाही इफ्तार पार्टियों का चलन है, उसे 1982-83 में युवक कांग्रेस के अध्यक्ष तारिक अनवर ने ही शुरू किया था. 1984 में तारिक कटिहार से दोबारा सांसद बने. 1988 में जब भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री थे, तारिक अनवर को बिहार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. 1989 में लोकसभा चुनाव हुए, तो तारिक अनवर फिर से कटिहार से चुनाव लड़े. लेकिन तारिक अनवर चंद्रशेखर के करीबी और कटिहार में भारत यात्रा केंद्र चलाने वाले जनता दल के उम्मीदवार युवराज सिंह से चुनाव हार गए. 1991 के जब लोकसभा चुनाव होने थे तो अजीत सिंह और उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव चाहते थे कि बिहार के राज्यपाल युनूस सलीम कटिहार से चुनाव लड़ें. ऐसा ही हुआ और युनूस सलीम ने राज्यपाल के पद से इस्तीफा देकर कटिहार से चुनाव लड़ा. नतीजा ये हुआ कि एक बार फिर से तारिक अनवर चुनाव हार गए.
मोदी लहर में लालू ने दिया साथ और चौथी बार सांसद बन गए तारिक अनवर
2014 की मोदी लहर के बावजूद लालू यादव के समर्थन की बदौलत तारिक अनवर कटिहार से 5वीं बार संसद पहुंचने में कामयाब रहे. और इस कामयाबी का सिला ये था कि वो लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता बने. लेकिन 28 सितंबर को खबर आई किक तारिक अनवर ने लोकसभा और पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया है. अगर तारिक के राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो एक बात तो साफ है कि अपने राजनीतिक जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देख चुके तारिक अनवर कभी बड़े जनाधार वाले नेता नहीं रहे. कभी लहर पर सवार होकर तो कभी गठबंधन के जातीय समीकरण के भरोसे लोकसभा पहुंचते रहे. व्यक्तिगत संबंधों के दम पर तीन बार राज्यसभा का भी सफर तय किया.