प्रेस क्लब चुनाव, चक्रव्यूह के अभिमन्यु

Update: 2024-02-22 07:02 GMT

चुनाव के चर्चित चेहरे

इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पे ऐ बेखबर, शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं. 

रायपुर | इतना भी गुमान ना कर अपनी जीत पे ऐ बेखबर, शहर में तेरी जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के है गुलजार साहब का ये शेर ,, प्रेस क्लब के चुनाव के अप्रत्याशित परिणाम आने की वजह से ढेर हो गए उन शेरों के पर फिट बैठता है । जिन्होंने दमदारी से चुनाव लडा । प्रेस क्लब चुनाव पर निगाहें गड़ाएं रखने वाले पत्रकार और प्रशासनिक , राजनीतिक हलको के लोगों में इन्हीं के परिणामों को जानने कि उत्सुकता थी,, जीता कोई भी हो लेकिन इन उम्मीदवारों का क्या हुआ,? क्यों हुआ ? ,को लेकर कौतूहल आज भी बना हुआ है,, आज हम उन्हीं उम्मीदवारों का जिक्र कर रहे हैं उन्होंने न केवल दमदारी से चुनाव लड़े बल्कि उनका चुनाव चुनावी समीकरण के लिहाज से किसी चक्रव्यूह से कम नहीं था,, इस चक्रव्यूह से नहीं निकल पाने की वजह से इन चर्चित नाम को अभिमन्यु गति प्राप्त हुई. 

प्रेस क्लब के चुनाव के बाद जहां विजय श्री हासिल करने वाले जीत के जश्न में डूबे हुए हैं वही प्रेस जगत की गलियारे में इस कई लोगों की हार चर्चा में बने हुए हैं,

आइए जानते हैं प्रेस जगत के इन धाकड़ नाम को जिन्हे चुनावी सफलता नहीं मिली लेकिन इनकी हार चर्चित रही

1 दामू अम्बाडारे -

5 साल प्रेस क्लब की कमान संभालने वाले दामू अम्बाडारे इस बार भी दमदारी से चुनावी मैदान में थे, उनको इस बात का भरोसा था की 5 साल में पत्रकारों के सुख-दुख में साथ देने का फायदा मिलेगा,, खासकर लोगों को मकान मुहैया करना और कोरोना कल में हर तरह की मदद के लिए दौड़ भाग कराना उनके पक्ष में रह सकता था लेकिन पिछले कार्यकाल का बेवजह लंबा खींच जाना उनके लिए भारी पड़ गया,, विरोधी पैनलों ने उनके खिलाफ इनकमबेंसी को मुद्दा बनाकर लोगों के बीच जमकर दुष्प्रचार किया । जिससे सरल छबि के दामू अम्बाडारे प्रेस जगत में कब्जाधारी अध्यक्ष के रूप में दुष्प्रचारित हो गए और यही उन्हें भारी पड़ गया,, चुनाव के दौरान ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सारे पैनल उन्हें ही टारगेट करके चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान दामू अम्बाडारे खुद को और उनके पैनल के लोगो को हुआ,, चुनाव परिणाम आते तक इस बात को लेकर चर्चा थी कि दामु का वोट फिक्स है और दूसरे का वोट जब बटेगा तो दामू की जीत होगी लेकिन परिणाम पर दामू के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का असर रहा और उनको हार का सामना करना पड़ा,, प्रेस क्लब के चुनाव जानने वाला हर शख्स जरूर एक बार पूछता है कि दामू का क्या हुआ,, उनके हार के चर्चे है.

2 संदीप पुराणिक -

संदीप पुराणिक महामंत्री के पद में रहते हुए प्रेस क्लब मैं अपने कार्यों से अपनी पहचान बनाने वाले शख्स में से एक रहे हैं , अध्यक्ष के पद पर उन्हें पहले भी एक बार हार का भी सामना करना पड़ा है,इस बार फिर से ब्राह्मण पारा पैनल से उनको उम्मीदवार बनाया गया था, तो उम्मीद थी कि सहनुभूति और पेनल का नाम इनको जीता देगा,, ऐसी उम्मीद थी कि उनकी छोटे बड़े अखबारों में पकड़ और पैनल के फिक्स वोट का संदीप को जबरदस्त फायदा होगा समीकरण से लग रहा था कि उनके टक्कर में कोई नहीं टिक पाएगा,, उनके प्रचार प्रसार की कमान इस बार बड़े-बड़े दिग्गजों ने संभाली थीं,, संदीप को जीतने प्रेस जगत के दिग्गजों ने बुद्धेश्वर मंदिर में पुराने नए पत्रकारो की एकता स्थापित करने के लिए एक बैठक भी बुलाई थी। जोश के साथ होश के नारे को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों को अपने पैनल में ज्यादा जगह देखकर चुनाव लड़ा, हालांकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का वोट नहीं मिलने और पुराने दिग्गजों की इसे नाराजगी इनको भारी पड़ गई,, लेकिन पूरे चुनाव के दौरान संदीप चर्चा में बने रहे , परिणाम जानने को उत्सुक लोग संदीप को मिले वोटो को लेकर चर्चा जरूर करते हैं, अध्यक्ष पद पर दूसरा स्थान करने वाले संदीप का हार अपनों के धोखे के कारण हुई.

3 अनिल पुसद्कर -

प्रेस क्लब की चुनावी चर्चा अनिल पुसदकर के बिना अधूरी है, चुनावी मैदान में अनिल पुसदकर के उतरते ही चुनावी समीकरण बदल जाते हैं,, अपने अध्यक्षी कार्यकाल में अपने कामों की वजह से चर्चित अनिल पुसदकर के मैदान में उतरते ही विरोधियों ने उनका टारगेट में लेना शुरू कर दिया था,, सभी विरोधी पैनल इस बार दामू के साथ अनिल भैया के खिलाफ अपने प्रचार को अपने एजेंडे मे रखा,, जिसके कारण उन्हें खासा नुकसान भी उठाना पड़ा, पत्रकार जगत के साथ-साथ प्रदेश भर में अनिल पुसदकर के परिणाम जानने की उत्सुकता रही,, अध्यक्ष में सबसे चर्चित उम्मीदवार अनिल भैया ही रहे, इन्होंने दमदारी से जोरदार ढंग से चुनाव लड़ा हार जीत से उनकी छवि पर कोई असर नहीं कर पाई ये हमेशा की तरह पत्रकार जगत में लोकप्रिय बने रहेंगे.

4 मोहन तिवारी -

चुनाव में सफलता पाने वाले चर्चित नामो में एक नाम मोहन तिवारी का भी है,, इस बार प्रेस क्लब के चुनाव में महासचिव के लिए त्रिकोणी मुकाबला था, इसमें मजबूत पैनल के खिलाफ चुनाव दमदारी से लड़ने वालों में युवा उम्मीदवार मोहन तिवारी अग्रणी थे ,विजेता ब्राह्मणपारा पैनल की ओर से जोरदार ताकत लगाई गई, विरोध मे उतरे सारे वरिष्टों ने वोट मांगा, ताकत लगाने मतदान के अंतिम घंटे तक मतदान केंद्र जमे रहे,,, मोहन की ओर से उनके अपने वरिष्ठ पत्रकारों की टोली उनके खिलाफ लगी रही , पर उन्होंने नए पैनल के साथ अपने मित्र मंडलियों के साथ जोरदार टक्कर दी,, लेकिन अलग-अलग पैनल के वोटो के बंटवारे में उलझ गए, विरोधी पैनल की चक्रव्यूह रचना वरिष्ठ पत्रकारों की लाम बंदी के आगे अभिमन्यु की तरह फंसकर इनको मामूली अंतर से हार का सामना करना पड़ा पर उनकी हार चर्चित रही.

फिलहाल प्रेस क्लब के चुनाव तो हो गए हैं लेकिन कार्यकाल 1 साल का है इसलिए ये दिग्गज हार जरूर गए हैं इनकी अनदेखी नही की जा सकती,, ये सारे लोग वो समुंदर हैं जो किनारे पर फिर लौट कर आते हैं.

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