प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में गड़बडिय़ों की अनदेखी

Update: 2022-05-20 04:29 GMT
  1. सीईओ ने जांच कराने की बात कही थी, आज तक टीम गठित नहीं हुई
  2. जनता की टैक्स की गाढ़ी कमाई का पैसा लूट रहे अधिकारी-ठेकेदार
  3. मीडिया में आ रही खबरों और शिकायतों को कर रहे नजरअंदाज
  4. फर्जी रिपोर्ट तैयार कर योजना के बेहतर क्रियान्वयन का दिखावा
  5. विभागीय मंत्री और उच्च अधिकारी खामोश


जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भारी भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के बाद राज्य सरकार के संबंधित विभाग और मंत्री का इसे संज्ञान में नहीं लेना दर्शाता है कि अधिकारियों और ठेकेदारों को जनता के पैसों को लूटने की खुली छूट दे दी गई है। शायद इसीलिए मीडिया में लगातार आ रही गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की खबरों और लोगों की शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। कार्रवाई के नाम पर उच्चाधिकारी महज जांच करवाएंगे या दिखवा रहे हैं का रटा-रटाया जवाब देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। जनता से रिश्ता में लगातार सड़कों की दुर्दशा को लेकर प्रकाशित रिपोर्ट पर योजना के सीईओ आलोक कटियार ने टीम गठित कर गुणवत्ता जांच कराने की बात कही थी लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं किया गया है। बीते दिनों उनसे पुन: इस संदर्भ में जानकारी चाहने पर उन्होंने फिर से टीम गठित की जा रही है की बात कहकर फोन रख दिया।

उल्लेखनीय ग्रामीण इलाकों में बनाए जा रहे प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की सडक़ों के निर्माण में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। क्षेत्रीय अफसर और ठेकेदार मिलीभगत कर कम लागत में दोयम दर्जे की निर्माण कर शासन के करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। विभागीय अधिकारियों को या तो इनकी कारगुजारियों का पता नहीं है या फिर पता होने के बाद भी कमीशनखोरी के चक्कर में कोई कार्रवाई अथवा जांच नहीं हो रही है। सडक़ों के निर्माण में मापदंडों और गुणवत्ता का कहीं भी ख्याल नहीं रखा गया है। मटेरियलों के इस्तेमाल में भी तय मापदंड नहीं अपनाए गए हैं। ऐसा प्रदेश के एक जिले या विकासखंड ही नहीं पूरे छग प्रदेश में आदिवासी और दूरस्थ इलाके के गांवो में भी इस योजना के तहत बनी और बनाई जा रही सडक़ों में व्यापक गड़बडिय़ों की शिकायतें मिल रही हैं। संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी न तो निर्माण कार्यो की समय-समय पर मॉनिटरिंग करते हैं न ही वस्तु स्थिति से विभागीय मंत्री को अवगत कराते हैं। विभाग टेंडर जारी कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और सारा काम निचले स्तर के अधिकारियों की देखरेख में होता जो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को घटिया निर्माण का अवसर देते हैं। विभागीय मंत्री को तत्काल इस पर संज्ञान लेकर गड़बडिय़ों की जांच करवाकर दोषी अधिकारी-ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

पुल-पुलियों का भी घटिया निर्माण

इस इलाके में बनाई गई सडक़ों में बनाए गए पुलों का निर्माण भी घटिया स्तर का है। सडक़ें बनकर तैयार हुई हैं और कई जगहों पर पुलियों में दरार नजर आ रही हैं। मटेरियल की मिक्सिंग भी अत्यंत दोयम दर्जे की है जिसके कारण पुल धंसकने भी लगे हैं। सडक़ों पर पुराने पुलियों का नया निर्माण भी नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन पुल-पुलियो का नया निर्माण होना चाहिए था। कई सडक़े तो ऐसी है जिसका मरम्मत आज तक नहीं हुआ है एक बार सडक़ बनने के बाद ठेकेदार को कम से कम पांच साल मेंटेनेंस करना होता है लेकिन अधिकारियो से सेटिंग कर दोबारा उस ओर देखना तक मुनासिब नहीं समझते। बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां हुई हैं यह विभाग के संज्ञान में नहीं है, आपने संज्ञान में लाया है अब इस पर जानकारी लेकर जांच और कार्रवाई की जाएगी। सडक़ों के निर्माण में गुणवत्ता का पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए ऐसा नहीं हुआ है तो यह गलत है।

अधिकारियों-ठेकेदारों का सांठगांठ

गरियाबंद के देवभोग ब्लाक में जिस सड़क का निर्माण 16 करोड़ की लागत से की गई है उसमें भी तमाम मापदंड ताक पर रखे गए हैं। गुणवत्ता का जरा भी ख्याल नहीं रखा गया है। विकासखंड में प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में व्यापक भ्रष्टाचार होने की बात न सिर्फ ग्रामीण बल्कि सडक़ों को देखकर भी पता चलती है। बताया जा रहा है कि उक्त विकासखंड में सालों से जमे कार्यपालन यंत्री के सांठगांठ से ठेकेदार घटिया निर्माण कर लागत राशि का बंदरबाट कर रहे हैं। मजे की बात है की वर्षों से जमे अधिकारियों ने ठेकेदारों के साथ मिलकर न केवल घटिया सडक़ का निर्माण करवाया बल्कि ठेकेदारों का भुगतान भी कर दिया। गरियाबंद जिले सहित प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ को लेकर कई माध्यमों से शिकायतें प्राप्त हो रही थी। जनता से रिश्ता को भी इसकी शिकायत मिली थी। जनता से रिश्ता प्रतिनिधि ने इसकी तहकीकात की एवं इस सम्बन्ध में ग्रामीणों से भी चर्चा की। सड़क की हालत देखने में ऐसा लग रहा है निर्माण सामग्री का ठीक ढंग से उपयोग नहीं किया गया है। ग्रामीणों ने एकस्वर में कहा कि घटिया निर्माण हुआ है। कहीं डामर कम लगाया तो कहीं गिट्टी कम डाली गई। मामले की अगर निष्पक्षता से जाँच की जाये तो कई अधिकारी इसके लपेटे में आएंगे।कई मार्ग में योजनाबद्ध तरीके से भ्रष्ट्राचार करने के इरादे से कार्य में लीपापोती की गयी है।

क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी वहीं

के रिटायर्ड अधिकारी

प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनाई गई सडक़ों की गुणवत्ता जांचने दो प्रकार की टीम होती है पहली टीम नेशनल क्वालिटी मॉनिटर जिसे एनक्यूएम बोला जाता है जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होते हैं. दूसरी टीम स्टेट क्वालिटी मॉनिटर जिसे एसक्यूएम कहा जाता है। जिनका काम प्रधानमंत्री सडक़ योजना में हो रहे घोटालों की जाँच करते हैं। मजे की बात ये है कि ये सब अधिकतर उसी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी होते हैं जो एक प्रकार से ओब्लाइज़्ड होते हैं। अब होता ये है कि प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के सीईओ द्वारा बनाये गए स्टेट क्वालिटी मॉनिटर कैसे सीईओ के या विभाग के खिलाफ रिपोर्ट देंगे। एक तो 62 वर्ष पार किये होते हैं साथ ही थके हुए भी। अब इनसे क्या उम्मीद किया जा सकता है। होटल के एसी रूम से ही थैली झोंककर ओके रिपोर्ट दे देने की भी जानकारी है। विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है। ग्रामीणों और आम जनता को पीएमजीएसवाय में हुआ लीपापोती दिखाई दे रहे है, लेकिन एनक्यूएम और एसक्यूएम के अधिकारियों को कैसे नहीं दिखाई दे रहा है। इस मामले में विभागीय सूत्रों ने बताया जिसकी पुष्टि जनता से रिश्ता नहीं करता कि सडक़ की गुणवत्ता जांचने वाले टीम के लिए एक-एक लाख की राशि फिक्स कर दिया है जिसके कारण उनके आंखों में हरियाली का चश्मा चढ़ा हुआ रहता है। एसक्यूएम के अधिकारियों को सब कुछ पता है कि कही कोई सडक़ बना ही नहीं है, उसके बाद भी एसक्यूएम बनाने के एहसास के तले दबे है। जिसके कारण जांच रिपोर्ट अधिकारी के कहे अनुसार ही बनाकर देते है। क्योंकि अगर एसक्यूएम ने विभाग के खिलाफ रिपोर्ट दिया तो दूसरे दी उन्हें घर बैठने का लेटर भी थमा दिया जाता है। क्योंकि उसकी नियुक्ति ही विभाग द्वारा किया जाता है। इस प्रकार क्वालिटी कंट्रोल को जांचने वाले अधिकारी ने भी बिना देखें क्वालिटी कंट्रोल का मानक प्रमाण पत्र दे देते हैं। जो घोर आश्चर्य की ओर इंगित करता है गांव वाले आम जनता ठेकेदार के दादागिरी से और छुटभैय्या नेताओं की दबंगई से डर के मारे विभाग ने शिकायत करने से भी डरते हैं क्योंकि विभाग के अधिकारियों ने मनमाने ढंग से शिकायतों का निपटारा बिना कार्रवाई किए स्थानीय स्तर पर कर देते हैं।

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