सीएम बघेल ने किया मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ी पर्व सम्मान निधि योजना का शुभारंभ
कवर्धा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार को अपने निवास कार्यालय में आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना की तर्ज पर राज्य के गैर-अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ’मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ी पर्व सम्मान निधि योजना’ का शुभारंभ किया। इस अवसर पर कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे, छत्तीसगढ़ राज्य खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन भी उपस्थित थे। आदिम जाति विकास विभाग के मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह और वन मंत्री मोहम्मद अकबर कबीरधाम जिले से कलेक्टर जनमेजय महोबे, जिला पंचायत सीईओं संदीप अग्रवाल, ग्राम पंचायत के सरपंच, स्व-सहायता समूह की दीदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम से जुड़े थे। मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ी पर्व सम्मान निधि योजना कबीरधाम जिले के 468 ग्राम पंचायतों में लागू होगी। जिसमें कवर्धा विकासखंड के 105, सहसपुर लोहारा 96, बोड़ला 123 और पंडरिया के 144 ग्राम पंचायत शामिल है। तीज-त्यौहार मनाने के लिए इस योजना में भी हर ग्राम पंचायत को दो किश्तों में 10 हजार रुपए की राशि दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने पहली किश्त के रूप में आज योजना के अंतर्गत आने वाली जिले के सभी 468 ग्राम पंचायतों को 05-05 हजार रुपए के मान से कुल 23 लाख 40 हजार रुपए की राशि जारी की।
मुख्यमंत्री बघेल ने इसके साथ-साथ मुख्यमंत्री आदिवासी परव सम्मान निधि के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्र के 14 जिलों की 03 हजार 793 ग्राम पंचायतों को आज 05-05 हजार रुपए के मान से कुल 01 करोड़ 89 लाख 65 हजार रुपए की राशि जारी की। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बघेल ने 13 अप्रैल को बस्तर में आयोजित भरोसा सम्मेलन में मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना का शुभारंभ करते हुए बस्तर संभाग की 1840 ग्राम पंचायतों को योजना की पहली किश्त के रूप में 5-5 हजार रुपए के मान से अनुदान राशि जारी की थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के विकास में यहां की संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का काम अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य में तीजा, हरेली, भक्तिन महतारी कर्मा जयंती, मां शाकंभरी जयंती (छेरछेरा), छठ और विश्व आदिवासी दिवस जैसे पर्वो पर सार्वजनिक अवकाश दिया जा रहा है। राज्य शासन की यह भावना है कि तीज-त्यौहारों के माध्यम से नयी पीढ़ी अपने पारंपरिक मूल्यों से संस्कारित हो और अपनी संस्कृति पर गौरव का अनुभव करे। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव, युवा महोत्सव, छत्तीसगढ़िया ओलंपिक, बासी-तिहार जैसे आयोजनों के पीछे भी हमारा यही उद्देश्य है। लोक-संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से ही देवगुड़ियाँ और घोटुलों के विकास का काम भी किया जा रहा है।