अम्बिकापुर। खेलो इंडिया खेलों की शुरूआत से सरगुजा जि़ले की लड़कियों ने जि़ले संभाग और प्रदेश का नाम रौशन किया है। खऱाब खेल मैदान और सुविधाओं के अभाव के बाद भी अब तक सरगुजा की 6 खिलाडिय़ों ने प्रदेश का नेतृत्व देश स्तर के खेलो इंडिया गेम्स में किया है। खास बात ये है कि आदिवासी इलाक़े की ये सभी खिलाड़ी छत्तीसगढ़ बास्केटबॉल की खिलाड़ी हैं. इससे भी बेहद ख़ास बात है कि इस बार छत्तीसगढ़ की टीम फ़ाइनल पहुँची और खेलो इंडिया बास्केटबॉल चैंपियनशिप में उपविजेता रहीं। सोमवार को उपविजेता टीम की हिस्सा साक्षी भगत और कोच राजेश प्रताप सिंह मेडल लेकर वापस अम्बिकापुर लौट रहे हैं। खेलो इंडिया खेल की शुरूआत आज से पाँच साल पहले हुई थी, लेकिन दो साल कोरोना काल में इन खेलों का आयोजन नहीं हो पाया। मतलब पिछले पाँच साल में इन खेलों का आयोजन तीन साल ही हो सका है।
सबसे पहले जब 2018 में पहली बार इन खेलों का आयोजन हुआ, तब आदिवासी इलाक़े की तीन आदिवासी समाज की तीन महिला खिलाड़ी छत्तीसगढ़ बास्केटबॉल टीम का हिस्सा बनकर खेलो इंडिया गेम्स का हिस्सा बनीं। इनमें सुलोचना तिग्गा, शबनम एक्का और बबिता तिग्गा जैसी होनहार बास्केटबॉल खिलाड़ी थी। इसके बाद 2019 में इस खेल का आयोजन पुणे में हुआ। उस वक्त सरगुजा की उर्वशी बघेल छत्तीसगढ़ टीम का हिस्सा बनकर खेलो इंडिया में शामिल हुर्इं। पुणे के बाद 2020 में इस खेल का आयोजन गोवाहाटी में हुआ। इस दौरान सरगुजा की निशा कश्यप खेलो इंडिया में छत्तीसगढ़ बास्केटबॉल टीम में शामिल थीं और इस वर्ष कोविड-19 के बाद 2022-23 में खेलो इंडिया गेम्स का आयोजन मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ और इस साल भी सरगुजा की साक्षी भगत छत्तीसगढ़ की टीम मे शामिल थीं और इस बार छत्तीसगढ़ की बास्केटबॉल टीम उप विजेता रही है।
खेलो इंडिया की शुरूआत से अब तक तीन बार खेलो का आयोजन हुआ, इन तीन सालो में सरगुजा की 6 महिला खिलाडिय़ों ने खेलो इंडिया जैसे प्रतिष्ठित खेल आयोजन में हिस्सा लिया, जिसके पीछे खेल प्रशिक्षक राजेश प्रताप सिंह की प्रत्यक्ष मेहनत है। ग़ौरतलब है कि मुख्यालय अम्बिकापुर के गांधी स्टेडियम में दरार पड़े और पुराने पैमाने पर ढले बास्केटबॉल मैदान में राजेश बच्चों को दो दशक से खेल प्रशिक्षण दे रहे हैं। सुविधाओं की बेहद कमी और संसाधनों के अभाव के बाद भी सुबह शाम बच्चों को बास्केटबॉल का हुनर सिखाकर राजेश प्रताप सिंह ने न केवल राष्ट्रीय स्तर पर सरगुजा का नाम रोशन किया है, बल्कि बास्केटबॉल की कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए खिलाडिय़ों को तैयार कर भेजा भी है, लेकिन इनकी मेहनत का इनाम उनको आज तक नहीं मिला। कोच राजेश प्रताप सिंह से बात करने पर उन्होंने शासन प्रशासन से गुहार लगाई है कि उनका ग्राउण्ड भी अन्य शहरों की तजऱ् पर रबड़ सिंथेटिक कोड से निर्माण हो जाए। ग़ौरतलब है कि अम्बिकापुर के इसी बास्केटबॉल ग्राउण्ड से तैयार खिलाड़ी निशा कश्यप और उर्वशी बघेल आज खेल कोटा से रेलवे में नौकरी कर रही हैं।
बताया जाता है कि अम्बिकापुर के बास्केटबॉल खेल के बीते विधानसभा चुनाव के पहले खेलो इंडिया के तहत इंडोर स्टेडियम के लिए 8 करोड़ रूपए की राशि स्वीकृत हुई थी, लेकिन वो राशि किस वजह से वापस हो गई और मैदान क्यों नहीं बना, इसकी जानकारी किसी को नहीं हुई। उसके बाद बास्केटबॉल मैदान के प्रपोज़ल पर भारतीय खेल प्राधिकरण के तहत बास्केटबॉल के इंडोर स्टेडियम के लिए दोबारा प्रोजेक्ट आया, लेकिन वो भी ठंडे बस्ते में चला गया। फि़लहाल अम्बिकापुर के गांधी स्टेडियम में एक इंडोर स्टेडियम बन रहा है, लेकिन ये तय नहीं हो पाया है कि वो किस खेल के लिए तैयार हो रहा है। ऐसे में बास्केटबॉल खिलाडिय़ों में बेहद मायूसी है। ग़ौरतलब है कि अम्बिकापुर में बास्केटबॉल और क्रिकेट ही ऐसे खेल हैं जिनमें खिलाड़ी दोनों टाइम खेल अभ्यास करने आते हैं और प्रशिक्षकों की निगरानी में खेल अभ्यास कराया जाता है, ऐसे में बास्केटबॉल खिलाडिय़ों के बेहतर भविष्य के लिए प्रशासन को ये तय करना होगा कि फि़लहाल बन रहा इंडोर स्टेडियम बास्केटबॉल खेल के लिए है या नहीं। दुर्भाग्य ये है साक्षी भगत और तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल खिलाड़ी कल से फिर खऱाब मैदान और संसाधनों के अभाव में खेल प्रशिक्षण लेने को मजबूर होंगे।