कभी इस नेशनल खिलाड़ी के मैदान में उतरते ही दर्शक मचाने लगते थे शोर

Update: 2023-09-03 17:59 GMT
बिहार: बिहार के सीवान जिला के एक ऐसे फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी की बात करने जा रहे हैं जो कई बार गोल्ड मेडल जीतने के साथ बिहार को भी को भी कई दफा गोल्ड मेडल दिलाया है. इस खिलाड़ी के ग्राउंड पर उतरते हीं दर्शक शोर पचाने लगते थे और पूरा ग्राउंड गूंज उठता था.परिस्थिति कुछ ऐसी आन पड़ी कि यह नेशनल खिलाड़ी ठेला लगाकर फल बेचने को मजबूर है. दरअसल, हम जिस खिलाड़ी की बात कर रहे हैं वह कोई और नहीं बल्कि संदीप कुमार छेत्री है.
संदीप कुमार छेत्री सीवान जिला के मैरवा प्रखंड अंतर्गत कुम्हार टोला के रहने वाले हैं. सुनील ने 2009 में महज 11 वर्ष के उम्र में फुटबॉल खेलना शुरू किया था. उन्होंने फुटबॉल में गोलकीपर के रूप में अपनी शुरुआत की. इस दौरान जिला से लेकर स्टेट लेवल के कई प्रतियोगितामें खेलते हुए आगे बढ़ते गए और कई मेडल और ट्रॉफी अपने नाम किया. संदीप का फुटबॉल के प्रति दीवानगी कम नहीं हुआ है. यह बात जरूर है कि परिवार की जिम्मेदारी कंधों पर आज जाने के बाद ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं.
संदीप कुमार छेत्री की प्रतिभा और काबिलियत का अंदाजा इससे हीं लगाया जा सकता है कि 2014 से 15 के बीच बिहार अंडर-17 टीम के कप्तान बनाए गए. उन्होंने विभिन्न प्रांतों में जाकर बिहार टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए कप्तान की भूमिका निभाई और टीम के को चैंपियनशिप बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. साथ हीं कई ट्रॉफी बिहार के झोली में डालने का काम किया. बिहार सरकार ने संदीप को नगद राशि और ट्रॉफी के साथ मेडल देकर सम्मानित किया था.
संदीप फुटबॉल में लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और आगे भी बढ़ रहे थे. वहीं संदीप के जीवन में उस वक्त नया मोड़ आया जब 2021 में उनके पिता की अचानक मौत हो गई. जिससे संदीप को गहरा सदम लगा और उससे वे उबर नहीं पाए. सदमे के चलते फुटबॉल के उनकी दूरियां बढ़ती चली गई. घर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं होने की वजह से नेशनल खिलाड़ी और बिहार फुटबॉल टीम के कप्तान रह चुके संदीप कुमार छेत्री फल बेचने को मजबूर हो गए. हालांकि संदीप ने खेलना बंद नहीं किया है, लेकिन पहले की तरह समय नहीं दे पाते हैं.
संदीप कुमार छेत्री ने बताया कि 2009 में फुटबॉल की शुरुआत गोलकीपर के रूप में की. इस तरह बीच 12 से 15 नेशनल मैच खेले. वर्ष 2014-15 में बिहार अंडर-17 टीम के कप्तान रहे. इस बीच 10 ट्राफी, दर्जनों मेडल, चार बार नगद पुरस्कार भी मिला. वहीं पारिवारिक स्थिति बेहतर नहीं होने की वजह से खेल पर फोकस नहीं कर पाया. परिवार में बहन सहित सात सदस्यों का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर है. काफी मुश्किल भरे दौर से गुजरना पड़ रहा है.
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