जमुई में पानी बचाने का संदेश देती जलयात्रा में 10 गांवों के लोग हुए शामिल
पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन और पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं. यही वजह है कि पानी बचाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं
पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन और पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं. यही वजह है कि पानी बचाने के लिए कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं. बीते कई साल से जिले के लोग अपने तरीके से पर्यावरण और जल संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चला रहे हैं. पानी बचाने के संदेश के लिए यहां अनोखे अंदाज में जलयात्रा करते हैं. हर साल जिले के अलग-अलग प्रखंडों में यह यात्रा होती है. जहां जल है – तो कल है, जल ही जीवन है, जैसे नारों के अलावा पानी के महत्त्व से जुड़े लोकगीत गाती हुई महिलाएं और पुरुष भी इस जलयात्रा में शामिल होते हैं.
इस जल यात्रा में पर्यावरण के जानकार लोग पानी को बर्बाद होने बचाने की जरूरत के बारे में बताते हैं. किसी नदी से पानी भरकर उस कलश को अपने सिर पर रख लोकगीत गाती महिलाएं पैदल ही पानी के दूसरे स्रोत पर पहुंचती हैं और फिर कलश का पानी वहां प्रवाहित कर देती हैं.
पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए इस साल छठी यात्रा में जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड के 10 गांव के ग्रामीणों ने हिस्सा लिया. कुंडघाट से घड़े में पानी भरकर 5 किलोमीटर पैदल चलते हुए दूसरी नदी में पानी प्रवाहित किया. पानी बचाने की इस मुहिम में इलाके की महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. इस यात्रा का उद्देश्य पानी की बर्बादी रोकना है और इसके लिए दूसरों को भी जागरूक करना है.
इस यात्रा में शामिल बाबा नंद ने बताया कि पानी की बर्बादी रोकने के लिए लोगों को जागरूक होना जरूरी है. गर्मी के मौसम में लोग पानी की किल्लत को झेलते हैं. इस यात्रा का उद्देश्य है कि इस मौसम में इस किल्लत को लोग समझें, महसूस करें और फिर पानी बर्बाद होने से बचाएं. ताकि हमारा भविष्य पानी के लिए परेशान न हो. जलयात्रा को लेकर नंदलाल सिंह ने बताया कि अलग-अलग इलाकों में हर साल जलयात्रा निकाली जाती है. यात्रा का असर भी दिख रहा है, जब जिले के सभी प्रखंडों में जलयात्रा हो जाएगी, तब इस यात्रा को दूसरे जिले में पहुंचाया जाएगा.
बता दें कि इस यात्रा के बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं. 3 साल पहले जमुई जिले के सदर प्रखंड के मंझवे पंचायत में जलयात्रा निकाली गई थी. जिसके बाद गांव के लोगों की सोच बदली और पानी बर्बाद होने से बचाने लगे. जिसका नतीजा है कि नल जल योजना हो या फिर पानी के अन्य स्रोत ग्रामीण लोग जल समिति बनाकर पानी बर्बाद होने से बचाते हैं. यहां तक की गांव में दो बड़े तालाब में अब पानी गर्मी के दिन में भी लबालब भरा होता है.