इसके पहले राजद, कांग्रेस एवं वामदलों के साथ संयुक्त बैठक कर नीतीश कुमार ने नई सरकार बनाने के लिए राज्यपाल फागू चौहान को 164 विधायकों का समर्थन पत्र सौंपा, जिसपर स्वीकृति मिल गई। महागठबंधन दल की बैठक होने के कुछ देर बाद ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने फोन पर मुख्यमंत्री को बधाई दी। इसके बाद अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बधाई दी। नीतीश कुमार ने दोनों नेताओं को कांग्रेस के सहयोग लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के सहयोग से बिहार प्रगति के पथ पर निरंतर बढ़ता रहेगा। इससे पहले गठबंधन बदलने की पहल मंगलवार को नीतीश कुमार के आवास में जदयू विधायकों-सांसदों की बैठक से शुरू हुई, जिसमें सबने एक राय से भाजपा से संबंध खत्म कर लेने का सुझाव दिया।
सर्वसम्मति बनने के बाद नीतीश ने भाजपा को छोड़ने का फैसला किया। जब नई सरकार बनाने की पहल की जा रही थी तो भाजपा खेमे में सन्नाटा पसरा हुआ था। कोई कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं था। पहले कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार भाजपा कोटे के मंत्रियों को सरकार से बाहर का रास्ता दिखाकर नई सरकार का रास्ता निकालेंगे, लेकिन उन्होंने त्यागपत्र देकर पूरी तरह से नई सरकार बनाना ज्यादा अच्छा समझा। बता दें, 26 जुलाई, 2017 को नीतीश कुमार ने राजद से रिश्ता तोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाई थी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा और जदयू ने गठबंधन में 2020 के विधानसभा चुनाव जीतकर फिर से एनडीए की सरकार बनाई।
महागठबंधन के नेता चुने गए नीतीश
राजभवन से निकलकर नीतीश कुमार सीधे राबड़ी देवी के आवास पहुंचे, जहां उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से मुलाकात कर आगे की रणनीति पर चर्चा की। महागठबंधन के विधायकों ने भी उनके नेतृत्व में भरोसा जताया। इसके बाद तेजस्वी यादव, विजय कुमार चौधरी, ललन सिंह, कांग्रेस के अजीत शर्मा एवं वामदलों के विधायकों के साथ नीतीश कुमार दोबारा राजभवन पहुंचकर 164 विधायकों के समर्थन का पत्र सौंपकर नई सरकार बनाने का दावा पेश किया। इसके पहले नीतीश कुमार के आवास पर जिस वक्त जदयू की बैठक चल रही थी, लगभग उसी समय राबड़ी देवी के आवास पर राजद, कांग्रेस और वामदलों के विधायक-सांसद भी नई रणनीति पर विमर्श कर रहे थे। सबने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विश्वास जताया और निर्णय का अधिकार उन्हें सौंप दिया। इस तरह दोनों से महागठबंधन सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया।
एनडीए में हो रहे थे अपमानित, होना चाहते थे अलग
राज्यपाल को त्यागपत्र सौंपने के बाद राजभवन के बाहर नीतीश कुमार ने कहा कि जदयू के सभी नेता एनडीए से बाहर होना चाहते थे। इसलिए एनडीए के मुख्यमंत्री का पद छोड़ना जरूरी था। नीतीश कुमार ने भाजपा को छोड़ने का कारण बताते हुए कहा कि एनडीए में उन्हें अपमानित होना पड़ रहा था। षड्यंत्र रचकर जदयू का कद छोटा करने का प्रयास किया जा रहा था। अगर अभी भी सतर्क नहीं हुए तो पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा। इस पर जदयू के सभी नेताओं ने निर्णय का अधिकार नीतीश पर छोड़ दिया।
सोनिया भी लेती रहीं पल-पल की खबर
बिहार की राजनीतिक हलचल पर दिनभर सोनिया गांधी की भी नजर थी। बिहार प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास उन्हें पल-पल की खबर देते रहे। नीतीश कुमार पहले से भी सोनिया के संपर्क में थे। कहा जा रहा है कि सोनिया की सहमति मिलने के बाद ही उन्होंने भाजपा से संबंध तोड़ने की पहल की थी। राजद के साथ कुछ मसले थे, जिन्हें सोनिया की मध्यस्थता से सुलझाया जा सका।
बार-बार नीतीश सरकार
पहली बार: तीन मार्च 2000 से 10. मार्च, 2000 तक
दूसरी बार: 24 नवंबर, 2005 से 24 नवंबर, 2010 तक
तीसरी बार: 26 नवंबर, 2010 से 17 मई, 2014 तक
चौथी बार: 22 फरवरी, 2015 से 19 नवंबर, 2015 तक
पांचवीं बार: 20 नवंबर, 2015 से 26 जुलाई, 2017 तक
छठी बार: 27 जुलाई, 2017 से 16 नवंबर, 2020
सातवीं बार: 16 नवंबर, 2020 से नौ अगस्त, 2022 तक
आठवीं बार: 10 अगस्त, 2022 से आगे
यूं भाजपा से दूर होते गए नीतीश
जदयू और भाजपा के बीच पिछले कुछ दिनों से तनातनी की स्थिति बनी हुई थी। दोनों के रिश्ते सहज नहीं दिख रहे थे। एक महीने में ही चार ऐसे मौके आए, जब नीतीश ने भाजपा के कार्यक्रमों से दूरी बनाई।
17 जुलाई : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में तिरंगे को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में नीतीश कुमार ने जाना जरूरी नहीं समझा।
22 जुलाई : तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की विदाई के मौके पर आयोजित भोज में नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया था, मगर नहीं गए।
25 जुलाई : नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के शपथ ग्रहण समारोह से भी नीतीश कुमार ने दूरी बनाई। हालांकि जदयू ने पक्ष में वोट दिया था।
सात अगस्त : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के लिए उन्हें बुलाया गया था, किंतु नहीं गए।
और राजद के यूं करीब आए नीतीश
22 अप्रैल : लालू परिवार की इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार ने शिरकत की। अपने आवास से राबड़ी देवी के आवास तक पैदल गए। तेजस्वी से अच्छे रिश्ते का संकेत दिया।
10 मई : जातीय जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने दिल्ली तक पैदल मार्च की घोषणा कर नीतीश सरकार पर दबाव बनाया। नीतीश ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया।
10 जून : अग्निपथ योजना को लेकर आंदोलन के दौरान बिहार भाजपा के दस नेताओं की सुरक्षा में केंद्रीय बल तैनात कर दिया गया। इससे भी भाजपा के प्रति अविश्वास बढ़ा।
31 जुलाई : भाजपा के सात मोर्चों की संयुक्त कार्यसमिति का पटना में आयोजन। अमित शाह का आना। जेपी नड्डा का यह कहना कि क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
बढ़ सकता है नीतीश का दायरा
नीतीश कुमार का मकसद मात्र गठबंधन बदलना भर नहीं है। बड़े लक्ष्य का संकेत है। 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष की ओर से भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभाल सकते हैं। प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी बन सकते हैं। विपक्ष के पास अभी कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं दिख रहा है। कांग्रेस का आधार सिमट रहा है। ममता बनर्जी ने प्रयास जरूर किया, लेकिन सफल नहीं हुईं। नीतीश इस रिक्ति को भर सकते हैं। उनके रिश्ते सबसे अच्छे हैं। भाजपा के साथ रहते हुए नीतीश का दायरा एक सीमा में कैद था। अब उनका फलक बड़ा हो सकता है। गैर भाजपा शासित राज्यों में स्वीकार्यता बढ़ सकती है। पड़ोसी राज्यों में जदयू का विस्तार करने में मदद मिलेगी।पहली बार: तीन मार्च 2000 से 10. मार्च, 2000 तक दूसरी बार: 24 नवंबर, 2005 से 24 नवंबर, 2010 तक
तीसरी बार: 26 नवंबर, 2010 से 17 मई, 2014 तक
चौथी बार: 22 फरवरी, 2015 से 19 नवंबर, 2015 तक
पांचवीं बार: 20 नवंबर, 2015 से 26 जुलाई, 2017 तक
छठी बार: 27 जुलाई, 2017 से 16 नवंबर, 2020
सातवीं बार: 16 नवंबर, 2020 से नौ अगस्त, 2022 तक
आठवीं बार: 10 अगस्त, 2022 से आगे