बिहार की नदियों के दियारा इलाके में जल्द नजर आएगी हरियाली, कटाव रोकने के लिए रेत पर होगी यह खेती

बिहार की नदियों के दियारा इलाके में जल्द हरियाली नजर आएगी। इसके लिए नदियों की रेत पर कैजुरीना के पौधे उगाए जाएंगे।

Update: 2022-07-02 03:07 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिहार की नदियों के दियारा इलाके में जल्द हरियाली नजर आएगी। इसके लिए नदियों की रेत पर कैजुरीना के पौधे उगाए जाएंगे। वहां हरियाली बिखेरने की जिम्मेदारी रांची के वन उत्पादकता संस्थान को दी गई है। संस्थान के वैज्ञानिक ने वैशाली के जढ़ुआ में इसके पौधे को लगाकर सफल परीक्षण किया है। परीक्षण में दो वर्ष में ही इसके पौधे की बढ़वार 30 से 40 फुट हो गई है। वहीं, पौधे की गोलाई डेढ़ फुट मापी गई है। वैसे, कैजुरीना के पौधे समुद्री इलाके में लगाए जाते हैं।

जदुआ के परीक्षण का प्रेजेंटेशन देखने के बाद वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव ने कोसी, गंगा, गंडक, बागमती व दूसरी नदियों के किनारे की बालू वाली जमीन पर पौधे लगाकर परीक्षण करने की मंजूरी दी है। अब राज्य के विभिन्न इलाकों में इसके पौधे लगाने की तैयारी में वैज्ञानिक जुटे हैं। कैजुरीना दक्षिण भारत व ओडिशा के समुद्र के किनारे लगाए जाते हैं। यह एक बहुउपयोगी पौधा है। इसका कागज व प्लाईवुड बनाने में मुख्य रूप से उपयोग होता है।
बलुई मिट्टी में होती है खेती: वैज्ञानिक के अनुसार, नदियों के किनारे के इलाके में कैजुरीना के पौधे लगाने से कटाव रोकने में मदद मिलेगी। इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ेगी। खाली पड़ी जमीन पर पौधरोपण से वन क्षेत्र बढ़ने से पर्यावरण भी सुधरेगा। किसान अपनी बलुई व परती पड़ी जमीन पर इसके पौधे लगाकर अतिरिक्त आमदनी कर सकेंगे।
इसकी खेती के फायदे
● कटाव रोकने में मदद मिलेगी, पर्यावरण भी सुधरेगा
● मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ेगी ही वन क्षेत्र भी बढ़ेगा
● इसकी लकड़ी से कागज व प्लाईवुड बनाया जाता है
● इसकी खेती करने से किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी
● कोसी, गंगा व गंडक की रेत पर कैजुरीना लगाने की योजना
दो प्रजातियों का होगा परीक्षण
बिहार की नदियों के तटवर्ती इलाके में कैजुरीना के दो प्रभेदों को लगाने की तैयारी की जा रही है। इसमें कैजुरीना एक्विसिटीफोलिया व जुंगुनियाना प्रभेद शामिल हैं। दोनों ही प्रभेदों को बिहार की जलवायु के लिहाज से उपयुक्त पाया गया है। अमूमन पांच से छह वर्ष में इसके पौधे तैयार हो जाते हैं।
परीक्षण के तौर पर वैशाली के जदुआ में कैजुरीना के पौधे करीब एक एकड़ में लगाए गए थे। परीक्षण सफल रहा है। बिहार के वन विभाग के प्रधान सचिव ने इसके विभिन्न जिलों की रेतीली जमीन पर लगाकर परीक्षण करने की हरी झंडी दी है। पिछले दिनों रांची में प्रधान सचिव ने कैजुरीना के सफल परीक्षण का प्रजेंटेशन भी देखा था। -आदित्य कुमार, वैज्ञानिक, वन उत्पादकता संस्थान, रांची
4.36 लाख हेक्टेयर है बंजर या गैरकृषि योग्य भूमि
आंकड़े के मुताबिक बिहार में गैर कृषि योग्य व बंजर भूमि का कुल रकवा 4.36 लाख हेक्टेयर है। जबकि 57.12 लाख हेक्टेयर में विभिन्न फसलों की बुआई होती है। गैर कृषि योग्य भूमि में नदियों की धारा में बह कर आने वाले रेत से बना इलाका भी है। अकेले गोपालगंज में करीब 40 हजार हेक्टेयर नदी के किनारे वाली बलुई जमीन है। बिहार के सहरसा, दरभंगा, सारण, मुजफ्फरपुर आदि जिले के कई इलाकों में बलुई जमीन का बड़ा हिस्सा है
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