महिलाओं को रखनी चाहिए उनके लिए बनें कानूनों की जानकारी

Update: 2023-05-27 18:10 GMT

भारत में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार या अपराधों के खिलाफ भारतीय संविधान में कई तरह कानून और अधिकार दिए गए हैं। हमारे समाज में उन अधिकारों के बारे में बेहद कम ही लोग जानते हैं। महिलाएँ अपने कानूनी अधिकारों के प्रति अधिक सजग नहीं रहती हैं। यही कारण है कि पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने से लेकर आपबीती बयान भी दर्ज करवाने से भी महिलाएँ कतराती हैं। अधिकांश महिलाओं के साथ तो पुलिस भी बदसलूकी करने से नहीं चूकती है और महिलाओं की अधिकांश रिपोर्ट दर्ज भी नहीं की जाती है। ऐसे में यदि महिलाएँ इन अधिकारों से अवगत रहेंगी तो इसे अपने रक्षा के लिए एक हथियार के रूप में प्रयोग कर सकती हैं। आज हम अपने पाठकों को कुछ ऐसे भारतीय कानूनों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो हर भारतीय महिला को पता होने चाहिए।

घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार

ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है। आप या आपकी ओर से कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है।

पिता की संपत्ति का अधिकार

भारत का कानून किसी महिला को अपने पिता की पुश्तैनी संपति में पूरा अधिकार देता है। अगर पिता ने खुद जमा की संपति की कोई वसीयत नहीं की है, तब उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति में लडक़ी को भी उसके भाईयों और मां जितना ही हिस्सा मिलेगा। यहां तक कि शादी के बाद भी यह अधिकार बरकरार रहेगा।

समान वेतन का अधिकार

एक पुरुष वर्ग और महिला वर्ग अगर समान पड़ पद पर कार्यरत हैं तो उन्हें समान वेतन का अधिकार है, समान वेतन अधिनियम,1976 में एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान है। अगर कोई महिला किसी पुरुष के बराबर ही काम कर रही है, तो उसे पुरुष से कम वेतन नहीं दिया जा सकता, और अगर ऐसा होता है तो महिला अपने अधिकार के तहत लिखित शिकायत कर सकती हैं।

लिव-इन रिलेशन में अधिकार

लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन का हक मिला हुआ है। अगर उसे किसी भी तरह से प्रताडि़त किया जाता है तो वह उसके खिलाफ शिकायत कर सकती है। लिव-इन में रहते हुए उसे राइट-टू-शेल्टर भी मिलता है। यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है।

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