आखिर पुरुषों में तेजी से क्यों बढ़ रही है इनफर्टिलिटी?
यह एक सामान्य धारणा है कि महिला में ही कोई कमी होगी, इसीलिए वह मां नहीं बन पा रही है
यह एक सामान्य धारणा है कि महिला में ही कोई कमी होगी, इसीलिए वह मां नहीं बन पा रही है. यह धारणा न केवल सच्चाई से कोसों दूर है, बल्कि सिक्के के सिर्फ एक ही पहलू को दर्शाती है. हम सिक्के के दूसरे पहलू की हकीकत को न ही देखना चाहते हैं और न ही समझना चाहते हैं. यहां हकीकत यह है कि करीब 40 फीसदी मामलों में इनफर्टिलिटी के लिए पुरुष पार्टनर को ही जिम्मेदार पाया जाता है. यहां चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से महज एक फीसदी पुरुष ऐसे होते हैं जो इनफर्टिलिटी के इलाज के लिए आगे आते हैं.
नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की सीनियर कंसल्टेन्ट डॉ. अस्वति नायर बताती हैं कि हमारे देश में लगभग 15 प्रतिशत कपल्स को इनफर्टिलिटी की समस्या है. मौजूदा समय में, गर्भधारण में असफल होने के बाद करीब 40 से 45 फीसदी कपल्स डॉक्टर्स से परामर्श के लिए पहुंचते हैं. कारण की बात करें तो इनफर्टिलिटी के बढ़ते मामलों के लिए शारीरिक गतिविधि का कम होना, अस्वास्थ्यकर आहार लेना, अल्कोहल और धूम्रपान की लत समेत जीवनशैली में बदलाव प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं. पुरूष में इनफर्टिलिटी की वजह चिकित्सकीय, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक भी हो सकती है.
कैसे होती है फर्टिलिटी की जांच
स्पर्म में कमी या खराब गुणवत्ता की वजह से भी पुरुष इनफर्टिलिटी का शिकार हो सकते हैं. ऐसी स्थिति में, विशेषज्ञ आपसे आपकी जीवनशैली, चिकित्सकीय इतिहास तथा यौन जीवन की जानकारी लेते हैं. इसके बाद, वह आपके सीमेन (वीर्य) की जांच कराई जाती है. सामान्य शारीरिक और सहज परीक्षण के बाद आगे की जांच की सलाह दी जाती है. किसी भी मेडिकेशन या सर्जरी से पहले वह वीर्य की गुणवत्ता सुधारने के विभिन्न प्राकृतिक तरीके बताए जाते हैं.
कैसे होती है हॉर्मोन की जांच
स्पर्म का बनना और पुरूष का प्रजनन पीयूष ग्रंथि, हाइपोथैलेमस और अण्डकोषों के द्वारा हार्मोन के नियंत्रण में होता है. इसलिये एजूस्पर्मिया, हाइपोगोनाडोट्रोपिक हाइपोगोनाडिज्म या समागम की समस्याओं वाले मरीजों में नपुंसकता आदि की पड़ताल के लिए खासतौर पर कुछ हॉर्मोन्स का स्तर देखने के लिये खून की कुछ जांच कराने की सलाह भी दी जाती है.
टेस्टोस्टेरॉन और प्रोलैक्टिन की भूमिका
टेस्टोस्टेरॉन पुरूष का मुख्य हॉर्मोन है, जिसे अण्डकोष बनाते हैं. यह हॉर्मोन कम होने से स्तंभन दोष और दूसरे शारीरिक परिणाम हो सकते हैं. वहीं, प्रोलैक्टिन पीयूष ग्रंथि से स्त्रावित होता है और इसका स्तर बढ़ने से टेस्टोस्टेरॉन का बनना कम हो सकता है और फिर जांच और उपचार की जरूरत पड़ती है.