आखिर क्यों महिलाओं को मिलती है पुरुषों से कम सैलरी? नोबेल पुरस्कार विजेता ने दिया जवाब

मिलती है पुरुषों से कम सैलरी? नोबेल पुरस्कार विजेता ने दिया जवाब

Update: 2023-10-10 09:42 GMT
हॉर्वर्ड प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को इकोनॉमिक्स में नोबेल प्राइज मिला है। इसकी घोषणा हाल ही में हुई है और लोग क्लॉडिया के बेमिसाल काम की तारीफ कर रहे हैं। क्लॉडिया लंबे समय से अर्थशास्त्र के विषय को पढ़ा रही हैं और उन्हें नोबेल जेंडर इकोनॉमिक्स को लेकर किए गए काम के लिए मिला है। क्लॉडिया वाकई बेमिसाल काम कर रही हैं और उन्होंने 'करियर एंड फैमिली: वुमेन्‍स सेंचुरी लॉन्‍ग जर्नी टुवर्ड्स इक्विटी' नामक किताब भी लिखी है।
क्लॉडिया 2013-14 में अमेरिकन इकोनॉमिक असोसिएशन की प्रेसिडेंट भी नहीं चुकी हैं और 1990 में हार्वर्ड इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट की पहली टेन्योर पानी वाली महिला प्रोफेसर भी बनी थीं।
क्लॉडिया NBER (नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक्स एंड रिसर्च) के जेंडर इकोनॉमिक स्टडी ग्रुप की को-डायरेक्टर और NBER के ही अमेरिकन इकोनॉमी प्रोग्राम (1989-2017) की डायरेक्टर रह चुकी हैं। क्लॉडिया को यह पुरस्कार उनकी सालों की कड़ी मेहनत के बाद मिला है और उन्होंने जेंडर पे गैप को लेकर बहुत अच्छा जवाब दिया है।
शुरुआत में बायोलॉजी से जुड़ना चाहती थीं क्लॉडिया गोल्डिन
साल 1946 में जन्मी क्लॉडिया बचपन में आर्कियोलॉजिस्ट बनना चाहती थीं, लेकिन 'The Microbe Hunters (1927)' नामक किताब हाईस्कूल में पढ़ने के बाद वह बैक्टीरियोलॉजी की तरफ आकर्षित हो गईं और उन्होंने अपने समर स्कूल कोर्स में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई भी शुरू कर दी। इसके बाद हाई स्कूल पूरा होते ही उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिया। हालांकि, पहले ही साल में कुछ ऐसा हुआ कि उनकी जिंदगी बदल गई।
उन्होंने एल्फ्रेड काहन की एक क्लास ली जिन्होंने ग्लोबल इकोनॉमिक्स को लेकर लेक्चर दिया और इस लेक्चर ने क्लॉडिया को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई की स्ट्रीम बदल ली और आखिर कॉर्नेल से इकोनॉमिक्स में बीए किया। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो से इकोनॉमिक्स में पीएचडी की और धीरे-धीरे उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इकोनॉमिक्स को समर्पित कर दी।
आखिर क्यों महिलाओं को मिलती है कम सैलरी, गोल्डिन ने दिया जवाब
जिस रिसर्च पेपर ने क्लॉडिया को नोबेल प्राइज 2023 दिलवाया है वह इसी बारे में बात करता है। क्लॉडिया की रिसर्च बताती है कि लेबर मार्केट में महिलाओं की इंडिपेंडेंट कमाई वर्ल्ड वॉर 2 के बाद पुरुषों की तुलना में घटी है। उनकी रिसर्च में 1980 के दौर में पे गैप की कहानी भी साफ झलकती है। 1990 में उन्होंने किताब लिखी थी 'अंडरस्टैंडिंग द जेंडर गैप: एन इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन वुमन' जिसमें उन्होंने यही बताया था कि किस तरह से बच्चे के बाद पुरुष और महिलाएं दोनों ही कुछ ना कुछ खोते हैं। पुरुषों का टाइम ज्यादा खर्च होता है और महिलाओं को अपने करियर से समझौता करना पड़ता है।
उनके मुताबिक बच्चों के बाद ही पुरुषों और महिलाओं की कमाई में सबसे ज्यादा अंतर दिखना शुरू होता है। गोल्डिन की रिसर्च के मुताबिक जॉब मार्केट सीधे नहीं बढ़ा है, बल्कि सोसाइटी के पैमानों के आधार पर महिलाओं को काम और घर के बीच मैनेज करने में दिक्कत होती है। यही कारण है कि जेंडर पे गैप बढ़ता है। क्लॉडिया की रिसर्च मानती है कि जेंडर पे गैप 1980 में बढ़ा था और इसका कारण बर्थ कंट्रोल पिल और बदलती हुई उम्मीदों को माना गया है।
उनका मानना है कि जेंडर पे गैप कम नहीं हो रहा है और पैंडेमिक के समय अधिकतर महिलाओं ने वर्कफोर्स छोड़ दी और उनकी रैंक भी गिरी। 2021 को NPR के एक इंटरव्यू में क्लॉडिया ने कहा था कि पुरुष और महिलाओं का पे गैप कम करने के लिए ज्यादा सरकारी फंडिंग और चाइल्ड केयर की जरूरत है।
Tags:    

Similar News

-->