हर साल क्यों मनाया जाता है क्रिसमस, कौन थे पहले सांता क्लॉज...जानिए इसका इतिहास
भारत एक ऐसा देश है जहां अलग-असग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. यहां जितनी धूमधाम से दिवाली मनाई जाती है उतनी ही धूमधाम से ईद और क्रिसमस भी मनाया जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भारत एक ऐसा देश है जहां अलग-असग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. यहां जितनी धूमधाम से दिवाली मनाई जाती है उतनी ही धूमधाम से ईद और क्रिसमस भी मनाया जाता है. भारत में ईसाई धर्म को मनाने वाले भी बहुत लोग रहते हैं. इसलिए पूरे विश्व के साथ ही भारत में क्रिसमस को काफी धूमधाम से मनाया जाता है. ईसाई धर्म में क्रिसमस को बड़ा दिन कहा जाता है. क्योंकि माना जाता है कि इस दिन प्रभु यीशु का जन्म हुआ था. क्रिसमस के दिन लोग एकदूसरे को तोहफे देते हैं और घरों को सजाते हैं इस दिन लोग घरों में केक भी बनाते हैं. इस मौके पर आइए जानते हैं क्रिसमस के इतिहास के बारे में-
क्रिसमस का इतिहास
एक बार ईश्वर ने ग्रैबियल नामक अपना एक दूत मैरी नामक युवती के पास भेजा. ईश्वर के दूत ग्रैबियल ने मैरी को जाकर कहा कि उसे ईश्वर के पुत्र को जन्म देना है. यह बात सुनकर मैरी चौंक गई क्योंकि अभी तो वह कुंवारी थी, सो उसने ग्रैबियल से पूछा कि यह किस प्रकार संभव होगा? तो ग्रैबियल ने कहा कि ईश्वर सब ठीक करेगा. समय बीता और मैरी की शादी जोसेफ नाम के युवक के साथ हो गई. भगवान के दूत ग्रैबियल जोसेफ के सपने में आए और उससे कहा कि जल्द ही मैरी गर्भवती होगी और उसे उसका खास ध्यान रखना होगा क्योंकि उसकी होने वाली संतान कोई और नहीं स्वयं प्रभु यीशु हैं. उस समय जोसेफ और मैरी नाजरथ जोकि वर्तमान में इजराइल का एक भाग है, में रहा करते थे. उस समय नाजरथ रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था. एक बार किसी कारण से जोसेफ और मैरी बैथलेहम, जोकि इस समय फिलस्तीन में है, में किसी काम से गए, उन दिनों वहां बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई. काफी थक−हारने के बाद उन दोनों को एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ. अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी. गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया.
यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने पूरे गलीलिया में घूम−घूम कर उपदेश दिए और लोगों की हर बीमारी और दुर्बलताओं को दूर करने के प्रयास किए. धीरे−धीरे उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती गई. यीशु के सद्भावनापूर्ण कार्यों के कुछ दुश्मन भी थे जिन्होंने अंत में यीशु को काफी यातनाएं दीं और उन्हें क्रूस पर लटकाकर मार डाला. लेकिन यीशु जीवन पर्यन्त मानव कल्याण की दिशा में जुटे रहे, यही नहीं जब उन्हें कू्रस पर लटकाया जा रहा था, तब भी वह यही बोले कि 'हे पिता इन लोगों को क्षमा कर दीजिए क्योंकि यह लोग अज्ञानी हैं.' उसके बाद से ही ईसाई लोग 25 दिसम्बर यानि यीशु के जन्मदिवस को क्रिसमस के रूप में मनाते हैं.
सांता क्लॉज का इतिहास
सांता निकोलस को सांता क्लॉज के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म ईसा मसीह की मृत्यु के लगभग 280 साल बाद हुआ था. माना जाता है कि सांता निकोलस ने अपना पूरा जीवन यीशू को समर्पित कर दिया था. वह हर साल यीशू के जन्मदिन के मौके पर अंधेरे में जाकर बच्चों को तोहफे दिया करते थे. तभी से लेकर आज तक भी यह चलन चलता आ रहा है. आज भी लोग सांता क्लॉज बनकर बच्चों को तोहफे बांटते हैं.