वूमेन एम्पावरमेंट और जेंडर इक्वालिटी में भारत की महिलाएं क्यों हैं पीछे
महिलाएं क्यों हैं पीछे
महिलाओं के अधिकारों का हनन करना अब बहुत आम बात हो चली है। हमारे घरों में होने वाली गैरबराबरी, आर्थिक गैर बराबरी या फिर किसी फैसले को लेने में होने वाली गैरबराबरी, अब ग्लोबली प्रॉब्लम बनता जा रहा है। ऐसा मैं नहीं कहता, यूएन वूमन यानी यूनाइटेड नेशन वूमेन के जरिए पेश की गई डब्ल्यूईआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाएं कई मामलों में आज भी पीछे हैं।
आपको बता दें हाल ही में यूएन वूमेन यानी यूनाइटेड नेशन वूमेन और यूएनडीपी यानी यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी किया है। इसमें महिला सशक्तिकरण यानी डब्ल्यूईआई और वैश्विक लैंगिक समानता यानी जीजीपीआई के इंडेक्स के मुताबिक दुनियाभर में 90 प्रतिशत महिलाओं की आबादी यानी कुल 3.1 अरब महिलाएं ऐसी हैं, जो इन देशों में रहती है, जहां महिला सशक्तिकरण का रेशियो सबसे कम है।
हैरान करने वाली बात ये है कि इस रिपोर्ट के मुताबिक जिन देशों में महिला सशक्तिकरण का दर सबसे ज़्यादा और लैंगिक अंतर कम है, वहां 1% से भी कम महिलाएं और लड़कियां रहती हैं। यानी आम भाषा में अगर समझे तो दुनिया में सिर्फ 1 प्रतिशत महिलाएं ही सशक्त हैं। ग्लोबल लेवल पर महिलाएं अपनी क्षमता का मात्र 60 प्रतिशत ही संसाधन हासिल कर पाती हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत का नाम भी उन 114 देशों में शामिल हैं जहां महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानत का स्तर सबसे कम आंका गया है।
यह रिपोर्ट महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए एक चिंताजनक तस्वीर पेश करती है। दुनिया भर में महिलाओं को अभी भी कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच की कमी, घरेलू हिंसा और भेदभाव। इन चुनौतियों को दूर करने के लिए सरकारी नीतियों पर, व्यवसाय के संसाधनों पर नागरिक समाज को मिलकर काम करना समाधान हो सकता है।
जबकि इस रिपोर्ट के इतर भारत फाइनेंशियल इनकल्युसन में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, महिलाओं के एक बड़े वर्ग के पास अपने खुद के निजी बैंक खाते हैं और देश में महिलाएं लोकल एडमिनिस्ट्रेशन में भागीदारी निभा रही हैं, ये रिपोर्ट इस बात पर जोर डालती है कि कौशल निर्माण यानी स्किल बिल्डिंग, कामकाज में महिलाओं की उपस्थिति में अभी भी बड़े अंतर देखे जा सकते हैं। बाजार, राजनीतिक भागीदारी और निजी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व पुरुष के अनुपात में काफी कम रेशियो है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि विकास के आयाम, जैसा कि जीजीपीआई के जरिए मापा गया है, अधिक महिला सशक्तिकरण और कम लिंग अंतर वाले देश में 1% से भी कम महिलाएं और लड़कियां रहती हैं। वहीं डब्ल्यूईआई के जरिए मापा गया है, मानव समाज में पुरुषों की तुलना में 28 प्रतिशत कम है। ग्लोबल लेवल पर महिलाएं अपनी पूरी क्षमता का केवल 60% संसाधन ही प्राप्त कर पाती हैं।
भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए कुछ चुनौतियों में शामिल हैं:
लिंग आधारित भेदभाव: भारत में महिलाओं को अभी भी कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जैसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में कमी, घरेलू हिंसा और आर्थिक असमानता।
सामाजिक रूढ़ियां: भारतीय समाज में महिलाओं के बारे में कुछ रूढ़ियां हैं, जो उनके अधिकारों और समानता के मार्ग में बाधा बनती हैं।
आर्थिक असमानता: भारत में महिलाएं अक्सर पुरुषों की तुलना में कम आय कम करती हैं। यह आर्थिक समानता महिलाओं को अपने अधिकारों को प्राप्त करने और अपनी क्षमता को पूरा करने से रोकती है।
भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। इनमें शामिल हैं:
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: यह अभियान बेटियों के अधिकारों और महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था।
महिला सशक्तिकरण योजना: यह योजना महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए शुरू की गई थी।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम: यह अधिनियम महिलाओं के खिलाफ जातिगत हिंसा को रोकने के लिए बनाया गया था।
हालांकि, इन पहलों के बावजूद, भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए अभी भी बहुत काम करना बाकी है। सरकार, व्यवसाय और नागरिक समाज को मिलकर काम करके यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि भारत की महिलाएं अपनी क्षमता को पूरा कर सकें और एक समान समाज में रह सकें।
यहां कुछ ऐसे मानक दिए गए हैं कि भारत में महिला सशक्तिकरण को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है?
लिंग आधारित भेदभाव को दूर करने के लिए कानूनों और नीतियों को लागू करते रहना।
सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाते रहना।
महिलाओं को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच प्रदान कराना।
महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कार्यक्रम और पहल शुरू करना।
महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देना।
अगर देखा जाए तो महिला सशक्तिकरण एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए संघर्ष करना मुनासिब हो सकता है। एक मजबूत और सशक्त महिला समाज, एक अधिक न्यायपूर्ण और समृद्ध समाज का परिणाम हो सकता है।
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