कौन थीं महारानी ताराबाई? जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये बातें
कौन थीं महारानी ताराबाई
भारतवर्ष वीरांगनाओं की भूमि है। यह मां दुर्गा और मां काली की भूमि है। यहां आजादी की लड़ाई में सिर्फ झांसी की रानी ने ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों की कई रानियों और वीरांगनाओं ने अपना बलिदान दिया था। आज हम उन्हीं में से महारानी ताराबाई के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में जानेंगे-
छत्रपति शिवारी महाराज की बहू ताराबाई भोंसले मराठा साम्राज्य की एक महान वीरांगना थीं। ताराबाई ने मराठा साम्राज्य को पतन से बचाया। उन्होंने मुगलों को भारत से मार भगाया था और औरंगजेब जैसे क्रूर शासक को झुकाया था।
कौन है रानी ताराबाई?
ताराबाई का जन्म 1675 में महाराष्ट्र के तलबीड़ में हुआ था। उनका पूरा नाम ताराबाई भोंसले था। पुर्तगाली उन्हें मराठाओं की रानी कहकर बुलाते थे। ताराबाई ने अपने पिता हंबीरराव मोहिते से बचपन में ही राजनीति और युद्ध कौशल में महारत हासिल कर ली थी। ताराबाई भोंसले का विवाह छत्रपति राजाराम महाराज से हुआ था।
1700 में अपने पति, राजा राम महाराज की मृत्यु के बाद तारा बाई सरकार की प्रमुख बनी थीं। उन्होंने अपने बेटे शिवाजी द्वितीय को ताज पहनाया और मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनीं। उस समय शिवाजी द्वितीय की उम्र सिर्फ 4 साल थी। रानी ताराबाई को मुगलों के खिलाफ मराठा स्वतंत्रता संग्राम को कायम रखने और मराठों के क्षेत्रों की रक्षा करने के लिए याद किया जाता है।
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औरंगजेब का किया कड़ा विरोध
मराठा साम्राज्य की रानी एक फुर्तिली महिला थीं, जिन्होंने अपने पति की मृत्यु पर आंसू बर्बाद नहीं किए। उन्होंने लोगों में जोश भर दिया और औरंगजेब (उस समय के भारत के सबसे शक्तिशाली राजा) का कड़ा विरोध किया।
स्वराज की दिशा की तरफ कदम बढ़ाते हुए 1700 से 1707 तक औरंगजेब की सेना के खिलाफ कड़ा मुकाबला किया था। ताराबाई भोंसले ने मुगलों को अपनी रणनीतियों में उलझाकर रखा था, तभी तो औरंगजेब का पूरे भारत पर कब्जा करने का सपना महज सपना मात्र रह गया।
उन्होंने 7 सालों तक अकेले अपने दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई सरदारों को एक-एक करके वापस मराठा साम्राज्य बनाने में मदद की। उस वक्त उन्होंने सूरत और मालवा पर आक्रमण करके उसे जीत लिया था।
ताराबाई की मृत्यु
1750 तक मराठा साम्राज्य पंजाब तक पहुंच चुका था। लेकिन 14 जनवरी 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार के बावजूद जून 1761 में बालाजी बाजीराव की मृत्यु हो गई और उसके बाद ही दिसंबर 1761 में ताराबाई का भी निधन हो गया।
ताराबाई भोंसले की मृत्यु 1761 में महाराष्ट्र के सतारा के किले में हुई थी। उन्होंने लगभग 85-86 वर्षों का जीवन जिया और इसमें बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखें।
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ताराबाई ने कष्ट के समय में मराठा साम्राज्य को पतन से बचाया था। उन्होंने पति राजाराम प्रथम की कम उम्र में ही मृत्यु हो जाने पर भी हिम्मत नहीं हारी। ताराबाई मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक थीं। उन्होंने 7 वर्षों तक औरंगजेब से लड़ाई लड़ी। यह उनकी महानता और दूरदर्शिता को दर्शाता है।
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