भगावन गणेश की पूजा चतुर्थी के दिन बहुत खास मानी जाती है. मान्यता है कि चतुर्थी का दिन भगवान गणेश का ही होता है और इस दिन पूजा करने से आपको गणेश जी की विशेष कृपा मिल सकती है. चतुर्थी का दिन साल मे 24 बार आता है और महीने में ये दिन दो बार होता है. ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाते हैं. भगवान गणेश की इस दिन पूजा करें और व्रत भी रखें. विधिवत पूजा में एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा जरूर पढ़ें.
क्या है एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा? (Ekdant Sankasthi Chaturthi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्मी जी के साथ सुनिश्चित हुआ. विवाह की तैयारी हो रही थी और सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया लेकिन भगवान गणेश को नहीं निमंत्रण नहीं गया. जब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय हुआ तोसभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में उपस्थित हुए लेकिन सभी ने देखा कि गणेशजी कहीं नहीं दिखे. अब देवतागण आपस में चर्चा करने लगे कि गणेशजी क्यों नहीं आए या गणेशजी को न्यौता ही नहीं गया क्या. ऐसी बातें करते हुए सभी आश्चर्य में थे. तभी सबने विचार किया कि इसका कारण भगवान विष्णु से पूछना सही रहेगा. जब सभी ने विष्णु जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता महादेव को न्योता भेज दिया था. अगर गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते हैं तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई जरूरत नहीं लगी.
दूसरी बात ये है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए होगा. अगर गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं है. दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा नहीं लगता. इस बातचीत पर एक ने सुझाव दिया कि अगर गणेशजी आ भी जाएंगे तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना. आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे. ये सुझाव सभी को पसंद आया और भगवान विष्णु ने भी इसपर समहती दे दी. गणेशजी आए और उन्हें समझाकर रखवाली के लिए बैठा दिया गया. बारात चली तब नारदजी ने देखा की गणेशजी दरवाजे पर बैठे हैं तो वह गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा. गणेशजी ने कहा कि भगवान विष्णु ने उनका अपमान किया है. नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें तो वह रास्ता खोद देगी. इससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे और आपको सम्मानपूर्वक बुलवाना पड़ेगा. गणेशजी ने ऐसा ही किया और जब बारात धरती में जाने वाले रथ धरती में धंस गए तो लाख कोशिश के बाद भी पहिए नहीं निकले.
इसके बाद सभी ने अपने अपने उपाय किये लेकिन कुछ सही नहीं हुआ. इसपर नारद जी ने कहा कि आप लोगों ने गणेशजी का अपमान करके अच्छा नहीं किया है. अगर उन्हें मनाकर लाया जाए तो कार्य सिद्ध हो जाएगा. गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया और तब रथ के पहिए निकल गए. अब रथ के पहिए निकले लेकिन टूट-फूट गए उन्हें सुधार कौन करेगा. पास के खेत में खाती काम कर रहा था उसे बुलवाया गया और खाती अपना काम करने से पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ बोला और गणेशजी की वंदना करने के बाद सभी पहिए ठीक हो गए.
तब खाती ने कहा कि आप लोगों ने जरूर सर्वप्रथम गणेशजी की वंदना नहीं की होगी इसलिए ये संकट आया. हम तो मूरख अज्ञानी, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं उनका ध्यान करते हैं. आप लोग तो देवतागण हैं फिर भी गणेशजी को कैसे भूल गए. अब आप लोग बारात निकालने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें. सभी ने ऐसा किया और बारात सफलतापूर्वक अपनी जगह पर पहुंच गई. इसलिए कहा गया है कि कोई भी काम से पहले भगवान गणेश की वंदना जरूर करें.
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजा (Ekdant Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन अपना मन पवित्र रखें और भगवान गणेश की पूजा के लिए सुबह ही स्नान करके संकल्प लें. पूजा शुरू करने से पहले पूजा स्थल की साफ-सफाई जररू करें. हाथ में जल लेकर भगवान गणेश के सामने अपने व्रत का संकल्प लें और उसके बाद गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं. तिलक लगाने के बाद फूल, धूब, दीपक, फल और मिठाई अर्पित करें. इसके बाद संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें. इसके बाद गणेश चालिसा पढ़ें और फिर आरती करें. अब चंद्र दर्शन करें और दूध-पानी का अर्घ्य दें. इसके बाद आपकी पूजा समाप्त होगी और अगले दिन पारण करें.