आज मनुष्य अपने मूल गुणों को भूल गया है l वह खुद दातार, सर्व शक्ति मान , शांत स्वरुप, सुख स्वरुप, प्रेम स्वरुप होने के बाबजूद अपेक्षाओं के कारण बाहर सुख, शान्ति और प्रेम की खोज कर रहा है और जब यह सब उसे नहीं मिलता वह दुख और पीड़ा का अनुभव करता है l जैसे मृग कस्तूरी की खोज में वन वन भटक रहा है और इस बात से अनजान है कि वो कस्तूरी तो उसके खुद के अंदर है ल हमारे संस्कार और हमारी प्रकृति वास्तविक दुनिया का निर्माण करती है l समय के साथ हमारे बदलते संस्कारों के कारण हमारी दुनिया सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलयुग में परिवर्तित हो गई l जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरते गुजरते हम आत्माएं भी कमजोर हो गई हैं और धीरे-धीरे देने की अपनी प्रकृति से चाहने की ओर स्थानांतरित हो गई हैं l
यदि हम संसार चक्र और चार ऋतु के चक्र के बीच एक समानांतर रेखा खींचते हैं तो सतयुग बसंत से मेल खाता है, जो देने, विकास पोषण और जोश के बारे में है l कलयुग सर्दी से मेल खाता है, जो कठिन और कठोर है l इसका मतलब है कि हमने बसंत का आनंद लिया है और वर्तमान में सर्दी का अनुभव कर रहे हैं ल बसंत पंचमी फिर से बसंत का स्वागत करने की याद दिलाती है l राम राज्य, जब प्रत्येक आत्मा शांति, प्रेम और खुशी की दाता थी, उसकी पुनः स्थापना के लिए ब्रह्मकुमारी सिस्टर शिवानी द्वारा बताए गए कुछ अनमोल विचार-
कैसे जागृत करें अपने अंदर यह भावना राम राज्य को फिर से लाने के लिए, कलयुग से सतयुग में आने के लिए, वह कौन सा बदलाव है जो मनुष्य को अपने अंदर लाना होगा? इसका उत्तर एक ही है – लेने के बजाय अपने अंदर देने की भावना पैदा करनी होगी l अपने मूल स्वरुप आत्मा की पहचान करनी होगी l जिस तरह प्रकृति की हर चीज देती है, उसी तरह मनुष्य को भी भगवान ने ऐसा ही बनाया है l यह गुण उसके अंदर स्वाभाविक है व इसके लिए उसे कुछ सोचना नहीं पड़ता l
पेड़ पर पत्थर मारो तब भी वह फल ही देता है l उसके नीचे बैठ जाओ तो वह छाया देता है l सूरज रोशनी देता है, नदी और झरने पानी देते हैं l इसी प्रकार चाहे कोई प्राकृतिक आपदा हो या आतंकी हमला, महामारी हो या कोई अप्रिय घटना, मानव मानव की मदद के लिए एक परिवार के रूप में एक जुट हो जाता है l जब हम सब कुछ देने की भावना से करते हैं तो जीवन सार्थक हो जाता है l यहां पर देने से मतलब है आत्मा के सात मूल गुण – शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता, ज्ञान, खुशी और शक्ति l
ईश्वरीय शक्ति से अपने को जोड़ें हर सुबह ध्यान में बैठे या फिर आत्मिक चिंतन के साथ स्वयं से जुड़े व उस शक्ति से जुड़े जिसे हम ईश्वर कहते हैं, और इन गुणो को अपने अंदर पैदा करें l क्रोध व दर्द में आवेग पूर्ण प्रतिक्रिया देने के बजाय, इन गुणों का इस्तेमाल करें और प्रतिक्रिया दें l अपने स्वभाव संस्कार को बदलने के लिए हमें कुछ दिन मेहनत करनी पड़ेगी फिर यह हमारा खुद का तरीका बन सकता है l उदाहरण के लिए जब हम खुद शांत रहना चुनते हैं तो हमारी शांति की ऊर्जा दूसरे व्यक्ति तक भी पहुंचती है और उसके भीतर भी शांति पैदा करती है l
यदि कोई चिंतित है तो हमारी शांति उसे सशक्त बनाती है l हमारे जीवन में हर बात हमें देने का अवसर देती है l अपेक्षाओं से स्वीकृति की ओर बढ़ते हुए, हम प्यार देते हैं l आलोचना के बजाय प्रशंसा करके हम दूसरों को सम्मान देते हैं l दूसरे की गलतियों को क्षमा करके हम करुणा देते हैं l इसी तरह ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा से हटकर यह समझने से कि हर किसी को उसके कर्मों के अनुसार मिल रहा है, हम सहयोग देते हैं l देने से हमारा आत्म बल और संतुष्टि बढ़ती है l इस तरह से हम दूसरों को भी संतुष्टि दे पाते हैं l