हम सब हो रहे है 'ठंडे', इंसानों के शरीर का तापमान लगातार हो रहा है कम, जाने साल 1860 से अब तक क्या हुआ?

Update: 2021-02-03 07:53 GMT

धरती पर मौजूद इंसानों के शरीर का तापमान पिछले 160 सालों में लगातार घटता जा रहा है. हम जानते हैं कि इंसानी शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. लेकिन साल 1860 से अब तक इंसानी शरीर का औसत तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस कम हो गया है. इसके पीछे जो वजह बताई जा रही है वो बेहद हैरान करने वाली है, क्योंकि इंसानी शरीर के तापमान में आने वाली गिरावट कई कारणों से दर्ज हो रही है. 

KQED में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इंसानी शरीर के तापमान में गिरावट पिछले 160 सालों से जारी है. इसकी वजह एंटीबायोटिक्स, वैक्सीन, साफ पीने योग्य पानी है. साथ ही सेंट्रल हीटिंग और एयर कंडिशनिंग की वजह से भी शरीर का तापमान कम होता जा रहा है. पिछले साल हुई इस स्टडी को अब भी आगे बढ़ाया जा रहा है. 
साल 1851 में साइंटिस्ट्स ने 37 डिग्री सेल्सियस यानी 98.6 फैरेनहाइट तापमान को इंसानी शरीर का औसत तापमान तय किया था. तब से लेकर अब तक इसमें 0.6 डिग्री सेल्सियस की कमी आई है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. जूली पार्सोन्नेट ने कहा कि जो तापमान सेट किया गया था, हम उसपर हमेशा टिके तो नहीं रह सकते. 
डॉ. जूली ने कहा कि लोग अब ज्यादा समय एसी में बिताते हैं. घरों या दफ्तरों में रहते हैं. सूरज की किरणों से सीधा संपर्क नहीं होता. इसलिए शरीर उसी हिसाब से ढलता चला गया. इतने सालों में शरीर का तापमान इतना गिरा है तो इसके पीछे आधुनिक जीवन और लोगों का आराम के प्रति रवैया है.
पहले जो तापमान 98.6 डिग्री फैरेनहाइट था, अब यह घटकर 97.9 डिग्री फैरेनाहाइट हो गया है. स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने कहा कि 160 साल पहले अमेरिकियों के शरीर का तापमान अब घट रहा है. सिर्फ उन्हीं का नहीं बल्कि कई देशों के इंसानों के शरीर का तापमान ऐसे ही कम हो रहा है. 
डॉ. जूली पार्सोन्नेट ने कहा कि इंसान अपना जेनेटिक मेकअप नहीं बदल सकता. लेकिन समय के साथ-साथ शरीर की बाहरी चीजों में फिजियोलॉजिकल बदलाव हो सकता है. लोग लंबे होते हैं, लोग मोटे होते हैं, इसलिए उनके शरीर का तापमान बदल रहा है. ये एक लंबी प्रक्रिया है. इसे होने में काफी समय और कई वजहें लगती हैं. (फोटोःगेटी)
डॉ. जूली के अनुसार आधुनिक और आलसी जीवन की वजह से लोग अपने शरीर पर ध्यान नहीं देते. अब लोग कम बीमार होते हैं. क्योंकि दवाइयां मौजूद हैं. साफ पानी मौजूद है. वैक्सीन और सैनिटाइजेशन है. एंटीबॉयोटिक और हाइजीन है. इसलिए ऐसे में लोग वो काम नहीं करते जिससे उनके शरीर के तापमान में बदलाव हो. (फोटोःगेटी)
शरीर का तापमान मेटाबॉलिक रेट पर भी निर्भर करता है. मेटाबॉलिक रेट ज्यादा है तो जीवन छोटा हो जाएगा. कम है तो आदमी मोटा होने लगेगा. इसलिए इसका संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है. 
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