वीकेंड को खूबसूरत और यादगार बनाना चाहते हैं तो आइए पंगोट, फोटोजैनिक है खूबसूरती
वीकेंड को खूबसूरत और यादगार
वीकेंड को दिल्ली के किसी क्लब, बार या रेस्टोरेंट नहीं, बल्कि किसी शांत और सुकून वाली जगह जाकर बिताना चाहते हैं, तो पंगोट इसके लिए बहुत ही बेहतरीन डेस्टिनेशन है। जहां आप खुली हवा में सांस ले सकते हैं, नेचर को करीब से एंजॉय कर सकते हैं। इसके साथ ही अगर आपको बर्ड वॉचिंग और फोटोग्राफी का शौक है, तो उसे भी यहां आकर पूरा किया जा सकता है।
बर्डवॉचर्स के लिए जन्नत
पंगोट वैसे तो नैनीताल से सिर्फ 13 किमी दूर है। लेकिन ज्यादातर लोगों के उत्तराखंड की सैर नैनीताल, मसूरी तक ही सीमित होती है, जिस वजह से ये जगह अभी भी पर्यटकों की नजरों से दूर है। जिसके चलते यहां की खूबसूरती अभी भी बरकरार है। इस जगह आकर आप हरे-भरे जंगल और पेड़-पौधों पर चहलकदमी करते तरह-तरह के पक्षियों को देख सकते हैं। यहां 580 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं। यहां तक पहुंचने के रास्ते में आपको कई तरह की हिमालयी पशु-पक्षियों की प्रजातियां भी देखने को मिल सकती हैं, जैसे कि लैमरजियर, हिमालयन ग्रिफन, ब्लू-विंग्ड मिनाला, चित्तीदार और ग्रे फोर्कटेल, रूफ-बेल्ड वुडपेकर, रूफ-बेलिड नेल्टवा, तीतर, विभिन्न प्रकार के थ्रश आदि। ये जगह कई प्रकार के वनस्पतियों और जीवों के लिए बहुत ही अच्छी जगह हैं जिनमें तेंदुए, हिरण और सांभर शामिल हैं। कुमाऊं क्षेत्र में स्थित, पंगोट का नजारा दिल छू लेने वाला है।
मुक्तेश्वर मंदिर
कुमाऊँ की पहाडियों में 2286 मीटर (7500 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से नंदा देवी, त्रिशूल आदि हिमालय पर्वतों की चोटियाँ दिखती हैं। यहाँ एक पहाड़ी के ऊपर शिवजी का मन्दिर है जो की 2315 मीटर की ऊँचाई पर स्तिथ है। यह मंदिर मुक्तेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। यहां भगवान शिव के साथ ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती, हनुमान और नंदी जी भी विराजमान हैं। मंदिर के बाहर लंगूरों का जमावड़ा लगा रहता है।
मन्दिर के पास चट्टानों में चौली की जाली है। इसे 'चौथी की जाली' भी कहते हैं। ये जगह मुक्तेश्वर मंदिर के साथ ही है। यहां भी पहाड़ की थोड़ी-सी चढ़ाई करके पहुंचा जा सकता है। ऐसा विश्वास है कि यहां देवी और राक्षस के बीच युद्ध हुआ था। ये एक पहाड़ की चोटी है जिसकी सबसे ऊपर वाली चट्टान पर एक गोल छेद है। कहा जाता है कि अगर कोई निःसंतान स्त्री इस छेद में से निकल जाए तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। पहाड़ की चोटी से घाटी का सुंदर नजारा दिखता है।
अगर मौसम साफ हो तो मुक्तेश्वर में हिमालय की पर्वत चोटियों के पाछे से उगते सूरज का सुंदर नजारा देखा जा सकता है और नालकंठ, नंदादेवी और त्रिशूल आदि पर्वतश्रेणियां भी देखी जा सकती हैं। यहां इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट है जहां जानवरों पर रिसर्च की जाती है। ये इंस्टीट्यूट सन् 1893 में बनवाया गया था। यहां एक म्यूजियम और लाइब्रेरी भी है जहां जानवरों पर रिसर्च से संबंधित पुराने समय का समान और किताबें सुरक्षित रखी गई हैं।
भीमताल
भीमताल एक त्रिभुजाकर झील है। यह उत्तरांचल में काठगोदाम से 10 किलोमीटर उत्तर की ओर है। इसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर और गहराई 15 से 50 मीटर तक है। नैनीताल से भी यह बड़ा ताल है। नैनीताल की तरह इसके भी दो कोने हैं जिन्हें तल्ली ताल और मल्ली ताल कहते हैं। यह भी दोनों कोनों सड़कों से जुड़ा हुआ है। नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 कि. मी. है। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है।
भीमताल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सुन्दर घाटी में ओर खिले हुए अंचल में स्थित है। इस ताल के बीच में एक टापू है, नावों से टापू में पहुँचने का प्रबन्ध है। यह टापू पिकनिक स्थल के रूप में प्रयुक्त होता है। अधिकाँश सैलानी नैनीताल से प्रातछ भीमताल चले जाते हैं। टापू में पहुँचकर मनपसन्द भोजन करते हैं और खुले ताल में बोटिंग करते हैं। इस टापू में अच्छे स्तर के रेस्तरां हैं। उत्तर प्रदेश के मत्स्य विभाग की ओर से इस टापू पर एक मछलीघर (एक्वेरियम) भी बनाया गया है। मछली के शिकार की भी यहाँ अच्छी सुविधा है।
भीमताल उपयोगी झील भी है। इसके कोनों से दो-तीन छोटी - छोटी नहरें निकाली गयीं हैं, जिनसे खेतों में सिंचाई होती है। एक जलधारा निरन्तर बहकर गौला नदी के जल को शक्ति देती है। कुमाऊँ विकास निगम की ओर से यहाँ पर एक टेलिविजन का कारखाना खोला गया है। फेसिट एशिया के तरफ से भी टाइपराइटर के निर्माण की एक युनिट खोली गयी है। यहाँ पर पर्यटन विभाग की ओर से 34 शैय्याओं वाला आवास - गृह बनाया गया है। इसके अलावा भी यहाँ पर रहने - खाने की समुचित व्यवस्था है। खुले आसमान और विस्तृत धरती का सही आनन्द लेने वाले पर्यटक अधिकतर भीमताल में ही रहना पसन्द करते हैं।
नैनीताल की खोज होने से पहले भीमताल को ही लोग महत्व देते थे। परन्तु कुछ विद्वान इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु - पुत्र भीम से जोड़ते हैं। कहते हैं कि पाण्डु - पुत्र भीम ने भूमि को खोदकर यहाँ पर विशाल ताल की उत्पति की थी। वैसे यहाँ पर भीमेश्वर महादेव का मन्दिर है। यह प्राचीन मन्दिर है - शायद भीम का ही स्थान हो या भीम की स्मृति में बनाया गया हो। परन्तु आज भी यह मन्दिर भीमेश्वर महादेव के मन्दिर के रूप में जाना और पूजा जाता है।
सत्ताल
सत्ताल, जैसा कि नाम से पता चलता है, सात झीलों का एक समूह है और उत्तराखंड में दिसंबर में घूमने के लिए सबसे अच्छी जगहों में से एक है। प्रवासी पक्षियों का घर होने के नाते, प्रकृति के प्रति उत्साही और उत्सुक पक्षी देखने वालों को सत्ताल, एक आकर्षक गंतव्य स्थान के रूप में मिलेगा। साल भर सुखद मौसम और सर्दियों के मौसम में खासतौर पर जनवरी में सत्ताल की काष्ठ वनों का पता लगाने के असंख्य अवसर इसे उत्तराखंड के सबसे पसंदीदा गेटवे में से एक बनाते हैं। ओक और देवदार के पेड़ों के घने जंगलों के बीच स्थित, सत्ताल भारत के कुछ अदूषित और अदूषित मीठे पानी के बायोम में से एक है। ये झीलें प्रवासी पक्षियों के लिए जन्नत हैं । यह कुछ शिविरों का घर है जो ज्यादातर स्थानीय लोगों द्वारा संचालित किए जाते हैं जो बाहरी छुट्टियों की तलाश करने वाले पर्यटकों को पूरा करते हैं।
सत्ताल की सात झीलें
- पन्ना ताल या गरुड़ ताली
- नल दमयंती ताली
- हनुमान ताली
- सीता ताली
- राम ताली
- लक्ष्मण तलु
- सुखा ताल या भारत ताली
भारत के उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल ज़िले में स्थित एक नगर और महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल का विशेष महत्व है। यह 'छखाता' परगने में आता है। 'छखाता' नाम 'षष्टिखात' से बना है। 'षष्टिखात' का तात्पर्य साठ तालों से है। इस अंचल में पहले साठ मनोरम ताल थे। इसीलिए इस क्षेत्र को 'षष्टिखात' कहा जाता था। आज इस अंचल को 'छखाता' नाम से अधिक जाना जाता है। इसे भारत का लेक डिस्ट्रिक्ट कहा जाता है, क्योंकि यह पूरी जगह झीलों से घिरी हुई है। 'नैनी' शब्द का अर्थ है आँखें और 'ताल' का अर्थ है झील। बर्फ़ से ढ़के पहाड़ों के बीच बसा यह स्थान झीलों से घिरा हुआ है। इनमें से सबसे प्रमुख झील नैनी झील है जिसके नाम पर इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा है।