साल में 24 एकादशी पड़ती है और हिंदू धर्म में इसके बहुत मायने बताए गए हैं. हर महीने 2 एकादशी पड़ती है जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की होती है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है. 16 अप्रैल 2023 को वरुथिनी एकदाशी है और वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की ये बहुत शुभ एकादशी मानी जा रही है. इस वरुथिनी एकादशी में 2 ऐसे दुर्लभ योग बन रहे हैं जिसमें अगर आपने भगवान विष्णु की सही दिशा में पूजा कर ली तो आपके सभी बिगड़े काम बनने लगेंगे और साथ ही सभी कष्ट भी दूर हो जाएंगे. वैसे वरुथिनी एकादशी का व्रत कष्टों से मुक्ति के लिए ही किया जाता है.
वरुथिनी एकादशी पर बन रहा है ये 2 दुर्लभ योग (Varuthini Ekadashi 2023 Shubh Yog)
वैशाख 2023 के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं. इस साल ये व्रत 16 अप्रैल दिन रविवार को रखा जाएगा. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करे से रोग-दोष मिट जाते हैं. व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विष्णु जी के वैकुंठ लोक में स्थान मिलता है. वरुथिनी एकादशी की शुरुआत 15 अप्रैल 2023 की रात 8.45 बजे होगी और इसकी समाप्ति 16 अप्रैल 2023 की शाम 6.14 बजे होगी.
इस दिन शुक्ल, ब्रह्मा और त्रिपुष्कर योग का संयोग है जो काभी दुर्लभ माना जाता है. इन तीनों योग में भगवान विष्णु की पूजा विधिवत और सच्चे मन से करो तो बहुत फलदाई मानी जाती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, शुक्ल योग में प्रभू और गुरू की पूजा अक्षय पुष्ण प्राप्त कराती है इसमें मंत्र साधना भी सिद्ध हो सकती है.
वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि (Varuthini Ekadashi Vrat Puja Vidhi)
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान कर लें. हो सके तो स्नान गंगाजी में करें अगर संभव नहीं है तो गंगाजल नहाने के पानी में दो बूंद डालकर नहा सकते हैं. इसके बाद हाथ में थोड़ा गंगाजल और अक्षत लेकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लें और उन्हें प्रणाम करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं. अब भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने बैठ जाएं. उन्हें तिलक करें, अक्षत, फूल, धूप-दीप और भोग अर्पित करें.
भगवान विष्णु के पूजन में तुलसी की पत्तियों को जरूर शामिल करें वरना पूजा अधूरी मानी जाती है. पूजान के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: का जाप जरूर करें. इसके बाद रात में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. पूरे दिन समय समय पर भगवान का नाम लेते रहें और रात में पूजा स्थल के पास कीर्तन या जागरण कर सकते हैं.