सर्दियों में नवजात शिशु का इस तरह रखें खास ख्याल, अपनाएं ये टिप्स

बदलता मौसम और तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव सामान्य तौर पर शरीर के लिए दिक्कतें पैदा करता है। उसपर आजकल कभी भी होने वाली बारिश स्थिति को और भी चुनौती से भरा बना देती है।

Update: 2021-11-23 04:02 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बदलता मौसम और तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव सामान्य तौर पर शरीर के लिए दिक्कतें पैदा करता है। उसपर आजकल कभी भी होने वाली बारिश स्थिति को और भी चुनौती से भरा बना देती है। वयस्कों के लिए ही यह मौसम कई शारीरिक समस्याओं की वजह बन सकता है। ऐसे में छोटे बच्चों पर तो इसका असर और भी ज्यादा हो सकता है। 0-6 साल की उम्र के बच्चे जो इस तरह के मौसम का पहली बार सामना कर रहे होते हैं, उनका खास ख्याल रखना जरूरी होता है। अक्सर माता-पिता यह समझ नहीं पाते कि ठंड के मौसम में बच्चों को किस तरह के कपड़े पहनाए रखे जाने चाहिए। वे या तो बहुत सारे कपड़े पहना देते हैं या फिर कई बार सामान्य पतले कपड़ों में ही बच्चे को रहने देते हैं। ये दोनों ही स्थितियां बच्चे के हिसाब से मुश्किल खड़ी कर सकती हैं। जन्म के पहले बच्चा माँ के भीतर एक सुरक्षित और आरामदायक कवच में रहता है। नौ महीने तक यही उसकी आदत में होता है। जब वह बाहर आता है तो उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती ही बाहर के वातावरण से सामंजस्य बैठाने की होती है। उसका शरीर धीरे-धीरे इस बाहरी वातावरण को अडॉप्ट करता है। इसलिए जन्म से कम से कम 6 माह तक बच्चों को इस मौसम में सुरक्षित रखना जरूरी है। आइए जानें कैसे।

अचानक बदलता मौसम
ठंडी और रूखी हवा, रात में और सुबह अचानक तापमान का गिरना, दिन की तीखी धूप और अचानक हो जाने वाली बारिश। ये सब कुछ सर्दियों में हो सकता है और पिछले कुछ सालों में तो मौसम का यह बदलाव और भी तीव्र हो गया है। आजकल ज्यादातर पैरेंट्स सिंगल फैमिली के रूप में रहते हैं ऐसे में उन्हें असरदार पारंपरिक नुस्खे बताने वाला भी कोई नही होता। उसपर छोटे से बच्चे और उसकी देखभाल को लेकर पहले ही उनके मन में कई सवाल चल रहे होते हैं। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखना मददगार साबित हो सकता है।
बच्चे को होने वाली समस्याएं
ठंड के मौसम में केवल सर्दी-जुकाम ही नहीं है जो बच्चों को परेशान कर सकता है। इसके अलावा बुखार, उल्टी, दस्त, स्किन इंफेक्शन या रैशेज और फुंसियां, पेट दर्द, ड्राय कफ, डिहाइड्रेशन, निमोनिया, वायरल इंफेक्शन और कुछ मामलों में सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम के शिकार भी बच्चे हो सकते हैं। सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम की स्थिति जरूरत से ज्यादा कपड़े में बच्चे को लाद देने से हो सकती है। इसके अलावा शरीर के टेम्परेचर का एकदम घट जाना यानी हाइपोथर्मिया की स्थिति भी बन सकती है। कई बार बहुत तेज धूप बच्चे को सूरज की हानिकारक किरणों से होने वाले नुकसान भी दे सकती है। इसके अलावा घर में गर्मी के लिए अपनाए गए आर्टिफिशियल साधन जैसे हीटर या सिगड़ी आदि के ज्यादा उपयोग से भी तकलीफ हो सकती है।
सुरक्षा रखें लेकिन इतनी नहीं
ठंड से बच्चों का बचाव करने का सबसे आम तरीका होता है ढेर सारे गर्म कपड़े बच्चे को पहना देना। साधारण कपड़ों के ऊपर गर्म या ऊनी कपड़े, टोपी, मोजे और कुछ मामलों में तो डबल मोजे, बच्चे को पहना दिए जाते हैं। गर्म कपड़े सर्दियों में बच्चे को सुरक्षित रखते हैं लेकिन ज्यादा कपड़े उसके लिए दिक्कत बीबी पैदा कर सकते हैं। जरूरी यह है कि बच्चे के लिए कपड़ो की सही लेयर के साथ उसकी नियमित पोषक खुराक और मालिश आदि जैसी सभी चीजों को भी ध्यान में रखा जाए। बच्चे को कड़क और चुभने वाले कपड़ों की जगह नरम कपड़ों की तीन लेयर पहनाएं। इसमें बनियान या शमीज जैसा कोई कपड़ा, एक पूरी बांहों का कोई टीशर्ट या ऊपरी कपड़ा और एक सॉफ्ट पजामा या ज्यादा ठंड हो तो वार्मर और एक स्वेटर पहनाएं। दिन में और रात में सोते समय हल्के कपड़े ही पहने रहने दें। स्वेटर और मोजे, टोपी आदि उतार दें। क्योंकि यदि बच्चे को पसीना आयेगा तो उसमें ठंडी हवा लगना तकलीफ दे सकता है। कोशिश करें कि बच्चे को मच्छरदानी में ही सुलाएं। इससे मच्छर और ठंड दोनो से उसका बचाव हो सकेगा। जब आप बच्चे को घर से बाहर ले जाएं तो कार में भी तेज हीटर न चलाएं। अगर बाहर तेज ठंड है तो बच्चे को स्वेटर, टोपी, मोजे आदि पहनाएं। ठंडी हवा में खासकर बच्चे का सिर, मुंह, नाक और छाती ढंकी रहे यह ध्यान रखें। बच्चों को इस मौसम में ऊनी या सिंथेटिक कपड़ों से एलर्जी भी हो सकती है, इस बात का ध्यान रखें और कपड़ों को धोते समय बहुत साबुन का इस्तेमाल न करें।
जब हो जाए बच्चा बीमार
तमाम सावधानियों के बावजूद कई बार बच्चे पर मौसम का असर हो सकता है या किसी और से बच्चे तक संक्रमण आ सकता है। ऐसे में सर्दी-जुकाम होने पर भी बच्चे को पर्याप्त मात्रा में लिक्विड देते रहें। इसके लिए डॉक्टर की सलाह लें। माँ का दूध इस समय भी जारी रखा जा सकता है। छह महीने के बच्चे को तो आप दाल का पानी या मैश किये हुए फल आदि भी दे सकते हैं। अगर कोई फॉर्म्युला यूज़ कर रहे हैं तो डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
-हीटर जैसे किसी भी साधन का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही करें।
-बच्चे के सिर सहित पूरे शरीर की हलके हाथों से की गई मालिश उसकी स्किन को मॉइश्चर से भरपूर रखती है। साथ ही ब्लड सर्कुलेशन को भी सही रखती है। इससे बच्चे को नींद भी अच्छी आती है और उसका पूरा विकास होता है। मालिश के बाद कुछ देर बच्चे को हल्की धूप में जरूर ले जाएं। इसके बाद साबुन रहित गुनगुने पानी से नहला दें। मालिश के लिए इस मौसम में सरसों का तेल सबसे अच्छा होता है। इसके अलावा आप जैतून या बादाम का तेल भी चुन सकते हैं।
-विशेषज्ञों की मानें तो एक नवजात का साल भर में 6-10 बार सर्दी-जुकाम का शिकार होना आम बात है। इसलिए परेशान न हों लेकिन हां, डॉक्टर की सलाह जरूर लें और थोड़े सामान्य उपाय भी अपनाएं।

-केवल कोरोना काल में ही नहीं, यह बात हर समय ध्यान में रखने की है कि छोटे बच्चों के कमरे में पूरी साफ-सफाई हो, उनके कमरे में खाने-पीने की चीजें खुली न रखें, उनके सभी कपड़े नियमित धोएं और अपने हाथ अच्छे से धोकर ही उसके पास जाएं।





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